‘कॉमन सिलेबस और कॉमन एग्जाम पैटर्न’ पर जल्द होगा फैसला

इंद्रकुमार विश्वकर्मा,
विद्यालय स्तरीय शिक्षा व्यवस्था की एक बड़ी समस्या है, अलग-अलग एजुकेशन बोर्ड द्वारा चलनेवाला अलग-अलग पाठ्यक्रम। इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में सभी एजुकेशन बोर्ड की बनी एक कमिटी द्वारा एक जैसा पाठ्यक्रम और एक जैसा एग्जाम पैटर्न रखने की सिफारिश की गई है, जिस पर जल्द ही एचआरडी मिनिस्ट्री दूसरे दौर की मीटिंग बुलाने की तैयारी में है।
अपनेे बच्चों की पढ़ाई के सन्दर्भ में अभिभावकों की सबसे बड़ी समस्या होती है कि वे किस एजुकेशन बोर्ड के विद्यालय में बच्चों को प्रवेश दिलाएं। कौन-सा बोर्ड उनके बच्चों के उज्वल भविष्य का निर्माण कर सकने में सक्षम होगा! इस तरह के अनेक प्रश्नों में विद्यार्थी व अभिभावक उलझे रहते हैं। ऐसे में यदि सभी एजुकेशन बोर्ड एक ही पाठ्यक्रम और एक समान एग्जाम पैटर्न रखें, तो यह समस्या हल हो सकती है। एचआरडी मिनिस्ट्री के एक अधिकारी के अनुसार, इस दिशा में कार्य चल रहा है। ऑल इंडिया और स्टेट एजुकेशन बोर्ड इस प्रस्ताव से सहमत हैं। उन्हीं की एक कमिटी ने यह प्रस्ताव रखा है कि कॉमन सिलेबस और कॉमन एग्जाम पैटर्न होने से विद्यार्थियों की बहुत सी दिक्कतें दूर हो जाएँगी। अब इस विषय पर अगली मीटिंग में बात होगी और जल्द ही इस पर फैसला लिया जाएगा।
उन्होंने बताया कि पाठ्यक्रम एक जैसा करने का प्रयास जारी है। गणित, रसायनशास्त्र और भौतिकी विषयों में तो यह बेहद ज़रूरी है। इसी के साथ सभी बोर्ड के लिए एक ही प्रकार के प्रश्नपत्र का प्रारूप बनाने की कोशिश भी की जा रही है। एचआरडी के ही एक अधिकारी के मुताबिक थिअरी और प्रैक्टिकल के अंक सभी बोर्डों में अलग-अलग है। कहीं प्रैक्टिकल के 50 प्रतिशत अंक हैं तो कहीं 30 प्रतिशत। इससे अलग-अलग बोर्ड के विद्यार्थियों के पूर्णांक में काफी अंतर हो जाता है। इसे समान करने की कोशिश की जा रही है। सभी जगह प्रात्यक्षिक को समान वेटेज मिले यह तय किया जाना है।
मनमानी वसूली जा रही फीस-
देश भर में अलग-अलग बोर्ड के नए-नए शिक्षा संस्थान खुल रहे हैं। जहाँ विभिन्न बोर्ड के पाठ्यक्रम में भिन्नता के कारण, किसी विशेष बोर्ड के पाठ्यक्रम को उच्च स्तर की शिक्षा बताकर के संस्थानों द्वारा मनमाना फीस वसूला जाती है। कुछ संस्थान ऐसे भी हैं, जो प्राथमिक स्तर पर ही 2 से 3 लाख रूपए वार्षिक फीस वसूल करते हैं, जो एक निम्न वर्गीय या मध्यमवर्गीय विद्यार्थी के लिए संभव नहीं है। इससे सभी वर्ग के विद्यार्थियों को समान शिक्षा का अवसर मिल पाना संभव नहीं है।
सरकारी व राज्य स्तरीय अनुदानित विद्यालयों में आईसीएसई व सीबीएसई पाठ्यक्रम की अपेक्षा निम्न स्तरीय पाठ्यक्रम के कारण विद्यार्थियों की संख्या घटती जा रही है। यदि सभी बोर्ड एक ही पाठ्यक्रम व समान एग्जाम पैटर्न का पालन करेंगे, तो निश्चित रूप से सरकारी शिक्षा संस्थानों में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ सकती है व निजी शिक्षा संस्थानों की मनमानी पर अंकुश लग सकता है।
पूरे देश में एक समान पाठ्यक्रम व एक समान एग्जाम पैटर्न ‘सर्व शिक्षा अभियान’ के उद्देश्यों को सफल कर पाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।

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