अनुज हनुमत,
“तुम्हारा नाम क्या है?”
“मेरा नाम आज़ाद है।”
“तुम्हारे पिता का क्या नाम है?”
“मेरे पिता का नाम स्वाधीन है।”
“तुम्हारा घर कहाँ पर है?”
“मेरा घर जेलखाना है।”
ये शब्द थे बालक चन्द्रशेखर के मजिस्ट्रेट खरेघाट के सामने । चन्द्रशेखर जी उस समय मात्र चौदह वर्ष आयु के थे। मजिस्ट्रेट मि. खरेघाट इन उत्तरों से चिढ़ गए। उन्होंने चन्द्रशेखर को पन्द्रह बेंतों की सज़ा सुना दी।जल्लाद ने अपनी पूरी शक्ति के साथ बालक चन्द्रशेखर की निर्वस्त्र देह पर बेंतों के प्रहार किए। प्रत्येक बेंत के साथ कुछ खाल उधड़कर बाहर आ जाती थी। पीड़ा सहन कर लेने का अभ्यास चन्द्रशेखर को बचपन से ही था। यही चंद्रशेखर आगे चलकर भारतीय स्वतंत्रता के के लिए चलाये गए अभियान के अगुवा बने।
जी हाँ भारत माता के ऐसे वीर सपूत को भी षड़यंत्र का सामना करते हुए अपनी जान गंवानी पड़ी। इस षड्यंत्र के पीछे किसका हाथ है, इसकी पूरी जानकारी लखनऊ मे रखी फाइलों मे दर्ज है लेकिन आज तक उसका जिक्र किसी ने नहीं किया। आज पंडित चंद्रशेखर आजाद की जयंती है।
कहा जाता है कि आजाद के इस तरह अपनी जान दे देने का रहस्य एक फाइल में छुपा है। दरअसल चंद्रशेखर आजाद की मौत की कहानी भी उतनी ही रहस्यमयी है, जितनी की नेताजी सुभाष चंद्र बोस की। कहते हैं कि आजाद की मौत से जुडी एक गोपनीय फाइल आज भी लखनऊ के सीआइडी ऑफिस में रखी है। इस फाइल में उनकी मौत से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें दर्ज हैं। फाइल का सच सामने लाने के लिए कई बार प्रयास भी हुए, पर हर बार इसे सार्वजनिक करने से मना कर दिया गया। इतना ही नहीं भारत सरकार ने एक बार इसे नष्ट करने के आदेश भी तत्कालीन मुख्यमंत्री को दिए थे। लेकिन, उन्होंने इस फाइल को नष्ट नहीं कराया।
आजाद की मौत से जुड़ी इस फाइल में इलाहाबाद के तत्कालीन अंग्रेज पुलिस अफसर नॉट वावर के बयान दर्ज है। उसमें कहा गया है कि नॉट वावर की ही टुकड़ी ने इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क मे बैठे आजाद को घेर लिया था और एक भीषण गोलीबारी के बाद आजाद ने खुद को गोली मार ली थी। नॉट वावर ने अपने बयान मे कहा है कि वह उस समय खाना खा रहे थे। तभी उन्हें भारत के एक बड़े नेता का मैसेज आया। आज भी ये महज एक प्रश्न बनकर ही रह गया है कि आखिर कौन था वो बड़ा नेता जिसकी सूचना पर चंद्रशेखर आजाद को पार्क में पुलिस ने घेर लिया ।
नॉट वावर को बताया गया कि आप जिसकी तलाश कर रहे हैं, वह इस समय अल्फ्रेड पार्क मे है और वह वहां तीन बजे तक रहेगा। फिर नॉट वावर ने बिना देरी किए पुलिस बल लेकर अल्फ्रेड पार्क को चारों ओर से घेर लिया और आजाद को आत्मसमर्पण करने को कहा। आजाद ने अपना माउजर निकालकर एक इंस्पेक्टर को गोली मार दी। इसके बाद नॉट वावर ने पुलिस को गोली चलाने का आदेश दिया। उन्होंने अपने बयान में बताया है कि पांच गोली से आजाद ने हमारे पांच लोगों को मारा फिर छठी गोली अपनी कनपटी पर मार ली। कुलमिलाकर पण्डित चंद्रशेखर आजाद ने जिस ‘आजाद’ अंदाज में अपनी पूरी जिंदगी को जिया और बाद में मृत्यु को भी उसी ‘आजाद’ अंदाज में प्राप्त किया, ऐसे अमर सपूत मरा नही करते बल्कि हर दिल अमर हुआ करते हैं।
27 फ़रवरी को चन्द्रशेखर आज़ाद के रूप में देश का एक महान क्रान्तिकारी योद्धा देश की आज़ादी के लिए अपना बलिदान दे गया, शहीद हो गया। लेकिन आज भी उन फाइलों में एक ऐसा सच दबा है, जिसको अभी तक फाइल से बाहर नही लाया गया। जिस किसी ने चन्द्रशेखर आजाद जी के खिलाफ षड्यंत्र करके पुलिस की मुखबिरी की थी, जिसकी वजह से उनकी जान चली गई थी। ऐसे लोगों की करतूत, उसका असली चेहरा सबके सामने आना चाहिए।