शिखा पाण्डेय । Navpravah.com
दलित वोटों को सदा से अपना ‘धर्मसिद्ध’ अधिकार समझने वाली बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती ने फिर एक नया ‘दलित कार्ड’ खेला है। आज राज्यसभा में अपनी बात पूरी न कर पाने से क्रोधित मायावती पहले राज्यसभा से इस्तीफा देने की बात कहते हुए सभा से तिलमिलाई हुई बहार निकल गईं। फिर प्रेस कांफ्रेंस कर अपने इस्तेफे का ऐलान किया और झट-पट इस्तीफा दे भी दिया।
मानसून सत्र के दूसरे दिन मंगलवार को मायावती ने उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में हो रहे दंगों पर राज्यसभा में तीखी प्रतिक्रिया दी। सदन की कार्यवाही के दौरान जब उपसभापति ने कहा कि उन्हें केवल मुद्दा उठाने का समय मिला है,वे भाषण न दें, बाकी लोगों को भी बोलना है, इस पर मायावती भड़क गईं। इसके बाद क्रोधित होकर उन्होंने कहा कि अगर उन्हें उस समुदाय का मुद्दा सदन में उठाने का मौका नहीं मिलता, जिससे वे आती हैं, तो सदन में रहने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है। इसके बाद उन्होंने दिन में संसद परिसर में प्रेस कान्फ्रेंस कर कहा कि अगर उन्हें अपने समुदाय के लोगों का मुद्दा नहीं उठाने दिया जायेगा, तो वे इस्तीफा दे देंगी और शाम होते होते बसपा सुप्रीमो ने सभापति हामिद अंसारी को अपना इस्तीफा सौंप भी दिया है।
मायावती ने कहा कि विपक्ष के कई सांसदों ने उन्हें इस्तीफा नहीं देने को कहा लेकिन वह अपने फैसले से पीछे नहीं हट सकतीं। उन्होंने कहा, “जब सत्ता पक्ष मुझे अपनी बात रखने का भी समय नहीं दे रहा है,तो मेरा इस्तीफा देना ही ठीक है।” उधर भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने मायावती के इस कृत्य को, साल की शुरुआत में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में मिली हार की हताशा करार दिया। उन्होंने तो यहां तक कहा कि इस्तीफे की धमकी देकर उन्होंने चेयरमैन का अपमान किया और उन्हें इसके लिए माफी मांगनी चाहिए।
क्या है परदे के पीछे की सियासत-
दरअसल राज्यसभा में मायावती का कार्यकाल 2 अप्रैल 2018 को पूरा हो रहा है। यूपी में उनकी पार्टी के पास सिर्फ 19 सीटें हैं, इसलिए वह 2018 में भी दोबारा चुनकर राज्यसभा नहीं पहुंच सकतीं। वॉकआउट में मायावती का साथ देने वाली कांग्रेस ने अगर उन्हें समर्थन दिया, तभी वह अगले साल उच्च सदन में पहुंच पाएंगी। लोकसभा में पार्टी का सूपड़ा पहले ही साफ हो चुका है। ऐसे में इस्तीफे के बाद उनके पास उत्तर प्रदेश में पार्टी के पुराने जनाधार को एक बार फिर से अपने पक्ष में लाने का ही काम रह जाएगा।
इस इस्तीफे के बाद वह 2019 लोकसभा और 2022 विधानसभा चुनाव के लिए अच्छे से तैयारी कर सकती हैं।इसीलिए नरेंद्र मोदी-अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा के उत्तरप्रदेश में मजबूत उभार के बाद मायावती के लिए यही अच्छा मौका था, जब वह सहारनपुर में दलितों पर हुए अत्याचार के मुद्दे पर इस्तीफा दे दें और अपने इस कोर वोट बैंक से फिर से जुड़ें और मोदी व अमित शाह द्वारा दलित वोट बैंक में लगाई गई सेंध का हिसाब किताब बराबर कर सकें।