‘अतुल्य भारत’ में अब भी अनेकों दलित व आदिवासी बालिकाएं शिक्षा से वंचित!

अनुज हनुमत,
कहने को तो हमारा देश चाँद और मंगल तक उड़ान तय कर चुका है लेकिन आज भी इस अतुल्य भारत की कई ऐसी तस्वीरें देखने को मिल जाती हैं, जो दिल और दिमाग दोनों को झकझोर देती हैं।  ये तस्वीर हमारे देश के कुछ ऐसे पिछड़े इलाकों की हैं जहाँ दलित व आदिवासी बालिकाओं की शिक्षा सामान्य वर्ग की बालिकाओं से काफी पीछे है।

आपको बता दें की देश कि सामाजिक बनावट व आर्थिक श्रेणीबद्धता ‘सभी के लिए एक जैसी शिक्षा’ के सिद्धांत के सामने हमेशा यही यक्ष प्रश्न रहा है और शिक्षा हमेशा स्तरीय खांचों में बंटी रही है लेकिन सबसे बदहाल स्थिति ये है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद शिक्षा के मामले में आज तक दलित और आदिवासी बालिकाओं की स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं आया है ।

unnamed

सामान्य जनसंख्या के सापेक्ष दलित बालिकाओं का ड्रॉप आउट अंतर बहुत ज्यादा है। उच्च शिक्षा में भी दलित वर्ग की बालिकाओं का अनुपात सामान्य वर्ग की बालिकाओं की तुलना में बहुत पीछे है।
उच्च शिक्षा में सकल नामांकन दर 13.8% है, जबकि अनुसूचित जाति की बालिकाओं की दर 1.8 % एवं अनुसूचित जनजाति की बालिकाओं की दर 1.6% मात्र है। 6 से 14 आयु वर्ग के 35.1 लाख आदिवासी बच्चों में 54 प्रतिशत अभी भी स्कूलों से बाहर हैं। इस आयु वर्ग में 18.9 लाख बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं।

आदिवासी मामलों के जानकार बुन्देलखण्ड के प्रसिद्ध शिक्षाविद् शंकर प्रसाद द्विवेदी का मानना है कि
आदिवासी बालिकाओं में शिक्षा के प्रति अभिरुचि पैदा करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को जनता के साथ मिलकर लोगों में जागरूकता पैदा करने की जरुरत है। अनुसूचित जाति एवं जनजाति की बालिकाएं शिक्षा के मामले में अपने वर्ग के बालकों एवं सामान्य वर्ग की बालिकाओं से बहुत पीछे हैं।

शिक्षाविद् श्री द्विवेदी आगे बताते हैं कि शिक्षा में इस बात का बहुत महत्व है कि बालिकाओं का कितना अनुपात पढ़ाई पूरी किए बगैर स्कूल छोड़कर घर बैठ जाता है। शिक्षा के सभी स्तरों पर दलित बालिकाओं की ड्रॉप आउट दर सामान्य जनसंख्या के अनुपात में बहुत ज्यादा है। द्विवेदी ने आगे बताया कि विद्यालयों में आदिवासी बालिकाओं के नामांकन में पर्याप्त कमी आयी है जो बेहद चिंताजनक है। आदिवासी एवं दलित समुदाय में बालिका शिक्षा की स्थिति काफी बुरी है। आदिवासी समुदाय की कुल 41.4 प्रतिशत लड़कियां शिक्षित हैं। सहरिया और बैगा समुदाय में तो यह स्थिति और भी बुरी है। मात्र 15.9 प्रतिशत सहरिया लड़कियों का प्रतिशत ज्यादा है। 45.36 प्रतिशत स्कूल के बाहर लड़कों की तुलना में 54.64 प्रतिशत लड़कियां स्कूल से बाहर थीं और कुल 10 प्रतिशत स्कूल से बाहर पाए गए।

आपको बता दें कि प्राथमिक स्तर पर प्रवेश लेने वाली बालिकाओं में से 24.82 प्रतिशत कक्षा 5 तक की पढ़ाई पूरी नहीं कर पातीं और उन्हें विद्यालय छोड़ना पड़ता है। उच्च प्राथमिक स्तर पर 50.76 प्रतिशत बालिकाओं को बीच में ही विद्यालय छोड़कर घरेलू कार्यों में संलग्न होना पड़ता है।  कुल मिलाकर ये आंकड़े सभी सरकारों की पोल खोलने भर के लिए पर्याप्त हैं। आखिरकार देश को स्वतन्त्रता मिले 70 वर्ष बाद भी हम ऐसे आंकड़ों की सच्चाई से मुंह क्यों मोड़ लेते हैं? इसमें जितनी गलती तमाम सरकारों की है, उतनी ही उन गैर सरकारी संगठनो की भी है जो इसके बहाने हजारों करोड़ों की रकम डकार जाते हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.