अमित द्विवेदी,
राजनीती के ‘एंग्री बर्ड’ अरविंद केजरीवाल एक बार फिर गुस्से में पंख फड़फड़ा रहे हैं, क्योंकि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री के संसदीय सचिव बिल को लौटा दिया है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दिल्ली सरकार के उस बिल को मंज़ूरी देने से मना कर दिया है, जिसमें आम आदमी पार्टी (आप) के 21 विधायकों के संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद से अलग करने का प्रस्ताव था।
पार्टी ने इस स्थिति पर विचार करने के लिए केजरीवाल की अध्यक्षता में एक आपातकालीन बैठक की, जिसके बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोल दिया। केजरीवाल ने आरोप लगाया कि वह लोकतंत्र का सम्मान नहीं करते और ‘आप’ से डरते हैं। बैठक में कई आप नेताओं ने केंद्र की कड़ी आलोचना की और उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ने मोदी सरकार की सिफारिश पर विधेयक खारिज किया। केजरीवाल ने ट्विटर के जरिए अपनी नाराजगी जाहिर की।
केजरीवाल ने कहा कि किसी भी विधायक को संसदीय सचिव के रुप में उनकी क्षमता से एक भी पैसा, कार या बंगला नहीं दिया गया और उन्होंने कहा कि वे मुफ्त में सेवाएं दे रहे हैं। उन्होंने कहा, “मोदीजी का कहना है कि आप सभी घर पर बैठें, काम नहीं करें।” केजरीवाल ने कहा कि विधायकों को बिजली आपूर्ति, जलापूर्ति, अस्पताल एवं स्कूलों के संचालन पर गौर करने का काम दिया गया है। उन्होंने कहा, “मोदी जी का कहना है कि न काम करुंगा और न ही करने दूंगा।”
इस बिल के लौटाने के बाद अब संसदीय सचिव बनाए गए केजरीवाल के 21 विधायकों की सदस्यता पर तलवार लटक गई है। संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का मानना है कि चुनाव आयोग इस मामले पर आखिरी फैसला लेगा। अगर चुनाव आयोग निर्णय लेता है और सदस्यता खत्म होती है तो इन सीटों पर उपचुनाव का ही रास्ता बचता है।
गौरतलब है कि इस मामले में एक याचिका के जरिए चुनाव आयोग के पास विधायकों को संसदीय सचिव बनाए जाने की शिकायत की गई थी। दिल्ली सरकार ने इस बिल को मंजूरी दिलाने के लिए उप राज्यपाल नजीब जंग के पास भेजा था और जंग ने इसे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास भेज दिया था।