AnandDwivedi@Navpravah.com
पठानकोट हमले में शहीदों की चिताएं सर्द भी न पडीं कि सियासती लोगों ने दांव पेंच खेलने शुरू कर दिए। कोई इसे प्रधानमंत्री मोदी को नवाज़ शरीफ़ की तरफ़ से मिला पठानकोट रिटर्न गिफ्ट मानता है, तो कोई अजीत डोवाल की नाकामी। विपक्ष तो पुरवाई भांपते ही शुरू हो जाता है। इस सबके बावजूद देश की अखंडता के प्रति कुछ उद्विग्न मन हैं, जिन्हें आतंकी हमले का जवाब पाकिस्तान पर सैन्य हमला बिलकुल नहीं दिखता। पाकिस्तान पूरी तरह से सैन्य नियंत्रण में है, लोकशाही के वहां कोई मायने नहीं। पीएम नवाज़ सेना के हिसाब से ही काम कर सकते हैं, भारत से उनकी कोई तुलना नहीं क्योंकि, भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था जैसा दूसरा लोकतंत्र इस विश्व में कहीं नहीं है।
देखा जाए तो ये भी सही है कि पठानकोट की घटना ने मोदी सरकार और उसकी नीतियों पर भी सवालिया निशाँ खड़े कर दिए हैं। सवाल बड़े वाज़िब जान पड़ते हैं, क्योंकि मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान भाजपा नेता उन्हें नाकारा कहते थे। पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देने का वादा करने वाले नरेंद्र मोदी आज तक देशवासियों को यह नहीं बता पाए हैं कि उनकी पकिस्तान नीति क्या है जबकि वह रेडियो पर नियमित रूप से ‘मन की बात’ कार्यक्रम के अंतर्गत देश की जनता को संबोधित करते हैं। हुर्रियत नेताओं से भेंट के पीछे क्या सोच है? सत्तारूढ़ होने पर परिस्थितियों में परिवर्तन हो जाता है, मंच और कुर्सी में ये बारीक फर्क है।
खबर आ रही है कि भारत दोनों देशों के विदेश सचिवों की इस माह होने वाली बातचीत को टाल सकता है। कहा जा रहा है कि मोदी सरकार, नवाज़ शरीफ सरकार को कुछ समय देना चाहती है ताकि बातचीत होने से पहले वह जैश-ए-मुहम्मद के खिलाफ कार्रवाई कर सके। संदेह इस बात का भी है कि क्या नवाज़ शरीफ सरकार, इस संगठन के खिलाफ कोई कदम उठा पाएगी क्योंकि पाकिस्तानी फौज उन्ही आतंकी संगठनों के खिलाफ़ कार्रवाई के पक्ष में है जो पाकिस्तानी हितों के खिलाफ़ काम करते हैं। जिन संगठनों के निशाने में भारत रहता हैं, उन्हें पाकिस्तानी सेना का हमेशा से समर्थन मिलता रहा है। कई सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तानी सरकार से हुई किसी भी बातचीत और समझौते का तब तक कोई अर्थ नहीं है, जब तक उसे वहां की सेना की मंजूरी ना मिले। वैसे तो जब पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष परवेज मुशर्रफ़ वहां के राष्ट्रपति भी थे, तब 6 जनवरी, 2004 को उन्होंने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई जी को लिखित आश्वासन दिया था कि पाकिस्तान के नियंत्रण वाली ज़मीन को भारत-विरोधी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल नहीं होने दिया जाएगा, लेकिन इस आश्वासन का कितना ध्यान रखा गया ये 26 /11 के मुंबई हमलों और पठानकोट हमलों से साफ़ हो जाता है।
जिस एयरबेस पर आतंकवादियों ने तड़के हमला बोला, पठानकोट का वह एयरफ़ोर्स स्टेशन हमेशा से पाकिस्तान को खटकता रहा है। इसका एक कारण 1971 की जंग की वो यादें भी हैं, जिनमें इसी एयरबेस से भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान को छठी का दूध याद दिला दिया था। और तो और पठानकोट के इस स्टेशन के बारे में जानकर आपको गर्व महसूस होगा। 5 दिसंबर 1971 को भारतीय वायुसेना ने सुबह 4 बजे इसी एयरफोर्स स्टेशन से उड़ान भरी थी। उस वक्त सीमा पर जंग छिड़ी हुई थी और पाकिस्तानी फ़ौज तेजी से आगे बढ रही थीं। सुबह तड़के जंग पर निकले चार विमानों ने पाकिस्तानी फ़ौज पर बम गिराए और साथ ही साथ वाल्टन एयरफील्ड पर एक पाकिस्तानी रडार को नष्ट कर दिया। उस दिन वायुसेना ने लाहौर सेक्टर तक पाकिस्तानी सेना को परेशान करके रख दिया था ! शाम को तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने युद्धविराम का ऐलान कर दिया।
ये दास्ताँ कुछ नई नहीं है, पाकिस्तान हर बार मुह की खाता है फिर भी बाज़ नहीं आता। नीयत में खोट दरअसल पाकिस्तानी सेना के है, जिसके हुक्मरान भारत पाक के बीच किसी भी शांतिवार्ता को सफ़ल नहीं होने देना चाहते। पकिस्तान सेना चीफ़ राहील शरीफ भारत के खिलाफ भड़काऊ टिपण्णी करते बाज नहीं आते। पीएम मोदी की इस यात्रा से कुछ समय पहले ही राहील शरीफ ने जंग की सूरत में भारत को अंजाम भुगतने की चेतावनी देते हुए कहा था , “हमारी फौज हर तरह के हमले के लिए तैयार है। अगर भारत ने छोटा या बड़ा किसी तरह का हमला कर जंग छेड़ने की कोशिश की तो हम मुहतोड़ जवाब देंगे और उन्हें ऐसा नुक्सान होगा जिसकी भरपाई भी मुश्किल होगी।” ये शब्द पाकिस्तानी सेना की 1971 वाली करारी शिकस्त से पैदा हुई अविस्मर्णीय झुंझलाहट के द्योतक हैं। आज पाकिस्तानी सेना भ्रष्टाचार, कालाबाजारी, स्मगलिंग और आतंकवाद में बुरी तरह उलझी हुई है। पकिस्तान की सारी संपत्ति का 56 फ़ीसदी सेना के अधिकारियों ने हथिया रखा है। पकिस्तान के जितने भी आर्मी चीफ रहे हैं, चाहे वो जिया उल हक हों या परवेज़ मुशर्रफ, सब धुर भारत विरोधी रहे हैं। ऐसी सेना का मनोबल कैसा होगा, ये अनुमान लगा पाना मुश्किल नहीं।
बहरहाल, युद्ध किसी भी समस्या का हल कतई नहीं। ये समय प्रधानमन्त्री मोदी के इम्तेहान का नहीं बल्कि पाकिस्तानी सरकार है, जिसे भारत ही नहीं बल्कि दुनिया को ये माकूल जवाब देना ही होगा कि और कितने पठानकोट,मुंबई, संसद भवन हैं जिनपर उन्हें अपने आतंकी कदम रखने पड़ेंगे ? क्या हासिल होगा मासूमों के क़त्ल से ? ज़मीन? वही ज़मीन जिसमे भारतीय सेना के शौर्य ने पाकिस्तानी सेना के जवानों को जाने कितनी बार दो गज नीचे दफ्न किया है। जरूरत हमारे देश के अवाम और नेताओं को भी एक सबक लेने की है, वो ये कि कोई भी नेतागिरी और सत्ता स्वार्थ देश के हित से ऊपर नहीं है। हमें एकजुटता और अखंडता से कभी मुह नहीं मोड़ना चाहिए। इससे सेना को बल मिलता है। सरहद पर जान देने वाला सिपाही मासिक वेतन के लिए नहीं बल्कि, राष्ट्रीय सुरक्षा में अपने प्राण देता है। कुछ लोग इसे मज़हब से भी जोड़ देते हैं। उनकी सोच कब बदलेगी ये तो पता नहीं, लेकिन दुनिया की सोच बदल रही है, भारतवर्ष के प्रति। अमेरिका ने भी इस हमले पर चिंता जताते हुए पकिस्तान से निष्पक्ष जांच की मांग उठाई है।
अमरीकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा, “हमें गहन, पूर्ण निष्पक्ष और पारदर्शी जांच प्रक्रिया की उम्मीद है और इसके परिणाम का इन्तेजार है। यह पता करना पकिस्तान का काम है कि जांच में कितना समय लगेगा। ”
दुनिया की नज़र भारत की तरफ़ है, पठानकोट ने पकिस्तान के आतंक प्रेम का चेहरा एक बार फिर दुनिया के सामने उघाड़ कर रख दिया है। ऐसे में हमें धैर्य और सामंजस्य बनाए रखने की महती आवश्यकता है।
शुक्रिया टीम नवप्रवाह.कॉम ।