भयानक प्रलय की ओर बढ़ता संसार

JitendraPandey@Navpravah.com

 

भारतीय संस्कृति में पृथ्वी को माता की संज्ञा दी गई है -” माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः।” अर्थात् पृथ्वी हमारी मां है और हम पृथ्वी के पुत्र हैं। अथर्ववेद का यह सूत्र वर्तमान काल में प्रत्येक के लिए मंत्र-रूप होना चाहिए। अब जलवायु परिवर्तन भविष्य की समस्या नहीं रही। मौजूदा हालात में इसके लक्षण दिखाई देने लगे हैं। विश्व के ऊपर गहराते संकट एक भयानक प्रलय का न्योता दे रहे हैं।

‘काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरमेंट एन्ड वाटर’ द्वारा जारी एक शोध में कहा गया कि वैश्विक तापमान वृद्धि में पैदा हुए मुद्दों का युद्धस्तर पर निवारण नहीं किया गया तो 2050 तक गेहूं, चावल और मक्के की 200 अरब डॉलर फसलों का नुकसान हो सकता है। ऋतुचक्र में परिवर्तन, ग्लेशियर्स में सिकुड़न, सुनामी, सूखा, बाढ़ आदि संकेत जीव-जगत के लिए विनाशकारी हैं। इसके अलावा समय-समय पर वैज्ञानिकों, पर्यावरण वेत्ताओं और थिंकर टैंकों ने इस सन्दर्भ में दुनिया की भीषण तबाही की चेतावनी दे दी है।

पेरिस सम्मेलन में इन चेतावनियों और प्रकृति के अशुभ संकेतों का असर देखने को मिला। विश्व समुदाय आपसी सहयोग व सहकारिता के लिए पृथ्वी के ताप को 1.5 डिग्री तक कम करने का लक्ष्य सामने रखा। इसके लिए समय-सीमा भी निर्धारित की गई। विकासशील देशों को कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए दी गई आर्थिक मदद यूरोपीय देशों की सदाशयता को दर्शाती है। हालाँकि भविष्य के लिए आर्थिक मदद को जारी रखना बाध्यकारी नहीं है, तथापि उम्मीद की किरण पुनः चमकने लगी। ये वही पश्चिमी देश हैं, जो विकास की अंधी दौड़ में प्रकृति का सर्वाधिक दोहन करते हैं। कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में इनकी 70 प्रतिशत की भागीदारी है। खैर, जलवायु परिवर्तन का उज्ज्वल पक्ष यह है कि आज विश्व समुदाय एकजुट है। प्रश्न यह उठता है कि क्या यह एकजुटता रंग लाएगी? मेरे विचार से यह तब सम्भव होगा, जब दुनिया की सबसे छोटी इकाई “आम इंसान” इस मिशन से जुड़ेगा। यह ऐसी इकाई है जो ठान लेती है, करती है और सरकारों से करवाती भी है। उल्लेखनीय है कि भारत सरकार अपने विभिन्न मंत्रालयों के सहयोग से “साइंस एक्सप्रेस” चलवाने की नायाब पहल की है। इसे “जलवायु परिवर्तन” के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए चलाया गया है। इस वातानुकूलित ट्रेन की अत्याधुनिक प्रदर्शनी को करोड़ों लोगों ने देखा और समझा। इस पहल से जलवायु परिवर्तन के लिए “सम्पूर्ण क्रांति” की आहट महसूस की जा सकती है।

वैश्विक ताप के कारण और दुष्परिणामों के प्रति आम नागरिकों में जागरूकता पैदा करना प्रत्येक राष्ट्र का पहला कदम होना चाहिए ताकि उनका सहयोग भी लक्ष्य-प्राप्ति के लिए लिया जा सके। आधुनिक तकनीकी जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे बड़ा हथियार है। माना कि अतिभोग आधुनिक तकनीकी का एक कारण है किन्तु इसकी सकारात्मक उपयोगिता वैश्विक संकल्प को पूरा करने में उपयोगी साबित होगी। इसी के सहारे हम वैकल्पिक ऊर्जा को कारगर बना सकते हैं। भारत में पवन ऊर्जा के लिए समुद्र से अपरिमित सम्भावनाएं हैं। यह देश का सौभाग्य है कि इसे 7600 किलोमीटर तक का समुद्री तट उपहार के रूप में मिला है। इसीलिए सरकार ने इसे विशेष आर्थिक क्षेत्र घोषित कर दिया है, ताकि यहां से गैर पारंपरिक ऊर्जा का अधिकाधिक दोहन किया जा सके। इसके अलावा भारत के 13 राज्यों के 190 से अधिक स्थानों को पवन ऊर्जा के स्रोतों के रूप में चिन्हित किया गया है। ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन में 80 प्रतिशत कटौती के लक्ष्य को भारत सौर ऊर्जा से भी पूरा कर सकता है। विश्व के 102 देश ऐसे हैं जो “सूर्य पुत्र” कहलाते हैं।अर्थात् सूर्य का प्रकाश इन देशों को सीधे तौर पर प्रभावित करता है। भारत सहित ये देश सौर ऊर्जा का उत्सर्जन करके संकल्पित लक्ष्य की तरफ बढ़ सकते हैं। 600 मेगावाट की क्षमता वाले सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना करके गुजरात भारत में ही नहीं बल्कि पूरी एशिया के लिए एक उदाहरण बन गया है। राहत और उम्मीद की बात यह है कि भारत की मौजूदा अक्षय ऊर्जा की क्षमता 25000 मेगावाट है, जबकि 2017 में इसका लक्ष्य दोगुना से भी ज्यादा 55000 मेगावाट रखा गया है।

जलवायु परिवर्तन जैसी खतरनाक वैश्विक स्थिति से निपटने के लिए कार्बन संग्रहण (सिक़्वेस्ट्रेशन) भी एक कारगर प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया भूगर्भीय तथा भूतलीय स्तर पर होती है। भूगर्भीय प्रक्रिया में बालू-पत्थर, बेसाल्ट, डोलोमाइट, शेल और कोयला खानों जैसे ठोस चट्टानों में कार्बन डाई ऑक्साइड को प्रविष्ट कराया जाता है। भूतलीय प्रक्रिया में इसका भंडारण पेड़-पौधों द्वारा जड़ों, शाखाओं एवं मिट्टी में कराया जाता है। बाद में यही मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाता है। कहने का आशय यह है कि कार्बन डाई ऑक्साइड को समाप्त करने में इसी गैस का उपयोग किया जा सकता है।
तापमान कम करने के लिए सफेद छतों का प्रयोग ज़रूरी है। इससे सूरज की रोशनी आकाश की तरफ मुड़ जाती है। शहरी पर्यावरण में इसके द्वारा फेर- बदल किया जा सकता है। इससे शहर की परावर्तकता (रिलेटिविटी) बढ़ती है। यह जियो इंजीनियरिंग का सबसे असरदार तरीका है। कई देश इस पद्धति का परम्परागत रूप से प्रयोग करते आ रहे हैं।

इकोफ्रैंडली इमारतों का निर्माण भी समय का तकाज़ा है। इनसे पैदा होने वाले ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन को 30 प्रतिशत तक रोकने में मदद मिलेगी। आवश्यकता यह भी महसूस की जा रही है कि इन हानिकारक गैसों पर निगरानी रखने के लिए वायुमंडल में उपग्रह स्थापित किए जाय, ताकि वे इनकी मात्रा व संकेन्द्रण की जानकारी मुहैया करा सके।इस सन्दर्भ में जापान द्वारा गोसैट उपग्रह का प्रक्षेपण सराहनीय कदम है। इसी तरह आईआईटी कानपुर में देश की सर्वाधिक अत्याधुनिक मशीनें सक्रिय हैं। ये वायुमंडल में मौजूद प्रदूषक कणों की जानकारी देती रहती हैं। ये वही कण हैं जिनसे आकाश की नीलिमा पर ग्रहण लगा है। कार्बन सोखने वाले वनों को बढ़ावा देकर जलवायु परिवर्तन की इस वैश्विक चुनौती को मात दी जा सकती है। मरीन क्लाउड का निर्माण करके धरती पर पड़ने वाली सूर्य की रोशनी को अंतरिक्ष में भेजा जा रहा है। हालाँकि यह मंहगा सौदा है।

पर्यावरण के प्रति हम प्राचीन काल से सचेत थे। लगभग सभी धार्मिक ग्रन्थ प्रकृति के संरक्षण का उपदेश देते हैं। वेदों में कहा गया है-“रक्षायै प्रकृति पातुं लोका। “अर्थात् प्राणिमात्र के लिए प्रकृति की रक्षा कीजिए। इसीलिए प्रकृति के प्रति मानव-प्रेम और जागरूकता बनाए रखने के लिए उसे हमारी जीवन -पद्धति के साथ जोड़ दिया गया। बाद में कर्मकांड रह गया और वैज्ञानिकता गायब हो गई। हो भी क्यों न ? इसे शिक्षा से अलग जो कर दिया गया। आवश्यकता है कि हमारी प्राचीन शिक्षा व्यवस्था को भी तरज़ीह दी जाय ताकि जलवायु परिवर्तन जैसी विध्वंशक स्थिति से निपटा जा सके। हमने कभी भी भोग को सर्वोपरि नहीं माना। यह तो जीवन को गति देने वाला एक पड़ाव था। दुनिया के साथ कदम मिलाने में हम इतने बेसुध हुए कि हमारा गुरु-बोध विस्मृत होता गया। हमारी ज्ञान-सम्पदा को छीनकर हमें परमुखापेक्षी बना दिया गया।

समय ने करवट ली। पसरा धुंध छंटता सा नज़र आ रहा है। जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक संकट में भारत का योगदान सराहा जा रहा है। पेरिस जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में निर्धारित लक्ष्य तक पहुंचना कठिन तो है किन्तु असम्भव नहीं।दुनिया में अमन-चैन कायम करने में भारत की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। इसके कई उदाहरण दुनिया ने देखा है। सबकी नज़रें भारत पर टिकी हैं। विश्वबाज़ार में विश्वग्राम की संवेदना जो जगानी है।

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