एनपी न्यूज़ डेस्क | Navpravah.com
उर्दू के लोकप्रिय शायर मिर्जा गालिब का जन्म 1797 में हुआ था। ग़ालिब उर्दू और पारसी भाषा के सबसे प्रसिद्ध कवि थे। उन्होंने ऐसे समय में लिखना शुरू किया, जब देश में मुगल साम्राज्य अपने अंतिम चरण में था और भारत, ब्रिटिश हुकूमत में जकड़ना शुरू हो गया था। गालिब की जयंती पर पेश है उनके कुछ चुनिंदा शेर:
ग़ालिब-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन-से काम बंद हैं,
रोइए ज़ार-ज़ार क्या, कीजिए हाय-हाय क्यों।
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमां, लेकिन फिर भी कम निकले।
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का,
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले।।
तुम सलामत रहो हजार बरस,
हर बरस के हों दिन पचास हजार।
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन,
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले।
दिल-ए-नादां, तुझे हुआ क्या है,
आखिर इस दर्द की दवा क्या है।
मेहरबां होके बुलाओ मुझे, चाहो जिस वक्त
मैं गया वक्त नहीं हूं, कि फिर आ भी न सकूं।
या रब, न वह समझे हैं, न समझेंगे मेरी बात,
दे और दिल उनको, जो न दे मुझको जबां और।
कैदे-हयात बंदे-.गम, अस्ल में दोनों एक हैं,
मौत से पहले आदमी, .गम से निजात पाए क्यों।
रंज से खूंग़र हुआ इंसां तो मिट जाता है गम,
मुश्किलें मुझपे पड़ीं इतनी कि आसां हो गईं।
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं काइल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।
इस कदर तोड़ा है मुझे उसकी बेवफाई ने गालिब,
अब कोई प्यार से भी देखे तो बिखर जाता हूं मैं।