बोलती तस्वीरें- “उड़ान (1989)”

डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk

हमारे देश में, नारी सम्मान की अनेक कथाएं हैं और उनके महत्व की तो इतनी बातें हैं कि आज की स्थितियों में, सहज इन वर्णनों पर विश्वास कर पाना कठिन सा लगता है। आज भी तथाकथित कवि सम्मेलनों में, महिलाओं के ऊपर जुमले कह कर, छुटभैये कवियों को ठहाके लगाते देखा जा सकता है। पिछले कुछ समय में जो हिंसात्मक प्रवृत्ति, महिलाओं के प्रति देखने को मिली है, वो समाज के लिए अत्यंत लज्जाजनक है। इसके लिए पुरूषों को तो सजग होना ही पड़ेगा, लेकिन साथ-साथ, प्रस्तुतियों के सशक्त माध्यमों, जैसे टेलीविज़न और सिनेमा को और स्वयं महिलाओं को कामुकता दर्शाने का माध्यम मात्र बनने से भी बचना होगा, क्योंकि सृष्टि का सृजन भले ही ईश्वर ने किया हो, उसे बसाया स्त्री ने ही है और सुन्दर भी बनाया है।

सिनेमा और टेलीविज़न का बहुत गहरा प्रभाव जनमानस पर, हमारे देश में पड़ता है और इसी का ध्यान रखते हुए, 80 के दशक में टेलीविज़न पर ऐसे धारावाहिक प्रस्तुत किए गए, जिन्होंने न केवल महिलाओं को प्रेरित किया, उन्हें सजग भी बनाया। 1985 में धारावाहिक “रजनी” से ये शुरू हुआ और 1989 में, इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए, एक नई प्रस्तुति हुई, जिसे हम आज भी याद करते हैं, और इसका नाम था “उड़ान”।

ये धारावाहिक, कई अर्थों में विशेष था। इसकी पटकथा, कहानी और निर्देशन, कविता चौधरी के ज़िम्मे था और वे ख़ुद ही धारावाहिक की मुख्य पात्र भी थीं। इस धारावाहिक की कहानी, कंचन चौधरी भट्टाचार्या जी के जीवन पर आधारित थी, जो कि कविता चौधरी की बड़ी बहन और देश की प्रथम महिला DGP थीं। इस धारावाहिक में कविता चौधरी (कल्याणी सिंह) की कहानी है जो कि सभी विषम परिस्थितियों से लड़ती हुई, IPS ऑफिसर बनती हैं। विक्रम गोखले ने इनके पिता की भूमिका निभाई।

“यह धारावाहिक इस लिए भी बहुत ख़ास है, क्योंकि इसमें शेखर कपूर जैसे फ़िल्मकार ने भी भूमिका निभाई और अखिलेन्द्र मिश्रा, जो कि 90 के दशक से लेकर अब तक कई अविस्मरणीय किरदारों में, टेलीविज़न और फ़िल्मों में ख्याति अर्जित करते रहे हैं, पहली बार दर्शकों को दिखें। यह उनका पहला धारावाहिक था। उनका किरदार ठाकुर हृदयपाल सिंह का था, जो खलनायक था।”

सतीश कौशिक जैसे दिग्गज अभिनेता भी इस धारावाहिक में थे। इनके अलावा, उत्तरा बाओकर, संदीप बसवाना, डॉ० अनिल रस्तोगी और सूरज थापर जैसे कलाकारों के सधे हुए अभिनय ने भी इसे सजाया। कविता चौधरी (कल्याणी सिंह) के बचपन से उनके बड़े होकर सफल होने तक की कहानी को इस धारावाहिक में दिखाया गया। कहानी बताने की इस शैली को ‘Bildungsroman’ कहते हैं।

इस धारावाहिक में एक अधिकारी के ऐसे व्यवहार को दिखाया गया, जिसमें जन कल्याण की भावना है और जो अपना मानवीय पक्ष, हमेशा प्रमुख रखता/रखती है।

उड़ान के एक दृश्य में ‘शेखर कपूर’ और ‘कविता चौधरी’

ये धारावाहिक इतना प्रसिद्ध हुआ कि उस समय की पत्रिकाओं और अख़बारों ने कई बार ये लिखा कि अधिकारियों को इस धारावाहिक से व्यवहार कुशलता सीखनी चाहिए।

इस धारावाहिक का कला निर्देशन, सुब्रतो घोष ने किया और इसके निर्माता, मदन मोहन एवं देव भट्टाचार्या थे। धारावाहिक का एक टाइटल ट्रैक था, जो उस समय में प्रचलित, सिल्वेस्टर स्टैलोन की “रैम्बो” के जैसा ही प्रेरणादायक था। ये संगीत शारंग देव ने दिया था।

अखिलेन्द्र मिश्र (फ़ाइल फ़ोटो)

इस धारावाहिक के प्रसारण के बाद बहुत सी लड़कियों ने एक साहसिक स्वप्न देखना शुरू किया और अपना जीवन संवारा।

आज भी ऐसी प्रस्तुतियों की आवश्यकता है ताकि समाज के लोग, विशेषकर महिलाएं ये समझें और जानें कि रेत-घड़ी के आकार के अलावा भी उनके कई वर्णन और अर्थ हो सकते हैं और कपड़ों के छोटा-बड़ा होने को लेकर किए जाने वाले शोर को क्रांति और अधिकार की लड़ाई नहीं कहते, उनके सपने और उसके लिए की जाने वाली तपस्या ही संघर्ष है और वही वांछित क्रांति का शंखनाद भी।

“उड़ान” को एक शानदार और सार्थक धारावाहिक के रूप में हमेशा याद रखा जाएगा।

(लेखक जाने-माने साहित्यकार, फ़िल्म समालोचक, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)

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