डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
आना, बुलाया जाना, आ जाना, तीनों अलग बातें हैं लेकिन रुक जाना, ठहर जाना और बस जाना, इन तीनों में से किसी भी एक वजह से हो सकता है। बॉब क्रिस्टो आए थे, मुंबई में रुके, उन्हें मस्कट जाने के लिए वर्क परमिट चाहिए था, सो ठहरे और फ़िल्मों ने ऐसा लिया गिरफ़्त में कि यहीं बस गए।

बॉब क्रिस्टो का जन्म, 1938 में ऑस्ट्रेलिया में हुआ था और बचपन से ही इन्हें खेल कूद का बहुत शौक़ था। ये पढ़ने में भी उतने ही अच्छे थे और गणित में ये ख़ासकर बहुत बेहतरीन थे। अच्छी परवरिश और मेहनत का नतीजा ये हुआ कि बॉब, एक सिविल इंजीनियर बने।

काम के सिलसिले में, ये सारी दुनिया में घूमा करते थे। एक बार ऐसे ही काम के सिलसिले में, इनका भारत आना हुआ और ये मुंबई में रुके। जिस कंपनी के लिए बॉब काम करते थे, उन्होंने, इन्हें मस्कट किसी प्रोजेक्ट के लिए भेजने का फ़ैसला किया था और वर्क परमिट के लिए इन्हें कुछ दिन मुंबई में ही रुकना था।
“इसी दौरान, किसी ने बॉब की मुलाक़ात, मशहूर अदाकारा परवीन बाबी से कराई और कुछ ही दिनों में बॉब, फ़िल्मी दुनिया की पार्टियों में दिखने लगे। ये साल था 1980। ये वो दौर था जिसमें गोरे लोगों को बतौर विलेन ख़ूब रोल दिए जाते थे। टॉम आल्टर को दर्शकों ने बार-बार देखा था और एक नए चेहरे की तलाश थी।”
संजय ख़ान ने एक बार बॉब से पूछा, कि क्या वे उनकी फ़िल्म में काम करेंगे? बॉब ने बताया कि उन्हें ऐक्टिंग नहीं आती। लेकिन संजय कहाँ मानने वाले थे और वैसे भी, हिन्दी फ़िल्मों का ये वो दौर था, जहाँ ऐक्टिंग, फ़िल्मों में काम करने की आख़िरी शर्त थी और परिवारवाद का बीज डाला जा चुका था। बॉब मान गए और उसी साल आई फ़िल्म, “अब्दुल्ला” में ये दिखे। दर्शकों को बॉब ख़ूब भाए और इसके बाद तो, “कुर्बानी”, “कालिया”, “नास्तिक”, “मर्द” जैसी, 200 फ़िल्मों में ये दिखे।

बॉब हर घर में, ज़ालिम गोरे के रूप में पहचाने जाने लगे। भारत में रहकर हमने अपने देश से भले ही कुछ न लिया हो, लेकिन जो बाहर से आता है, वो यहां हैरत में पड़ जाता है। बॉब का शरीर तो पहले ही गठा था, ये कसरत करते थे, लेकिन यहां इन्होंने, योग भी सीखा।
इन्होंने, टीवी पर भी “द स्वोर्ड ऑफ़ टीपू सुल्तान” और “द ग्रेट मराठा” जैसे धारावाहिकों में भी काम किया। 2003 के बाद इन्होंने किसी फ़िल्म में काम नहीं किया। सन् 2000 से ही, ये बंगलोर में बतौर योग प्रशिक्षक, काम करते रहे। इन्होंने नरगिस नाम की महिला से शादी भी की।

2011 में बॉब क्रिस्टो चल बसे और अपने देश से बहुत दूर एक ऐसे देश में दफ़न हो गए, जहाँ लुटेरों के भी क़सीदे पढ़े जाते हैं और फिर बॉब ने तो इस देश से प्यार किया था।
बॉब क्रिस्टो, हर सिनेमा देखने और चाहने वालों की यादों में ज़िंदा रहेंगे।
(लेखक जाने-माने साहित्यकार, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)