जटाशंकर पाण्डेय | Navpravah.com
साल 2017, नया साल , जिसका सारी दुनिया बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी, वो कई खुशियां लुटाता आया, लेकिन कई ग़म भी बिखेर गया। एक तरफ तुर्की के इस्तानबुल में साल का पहला आतंकवादी हमला हुआ, तो दूसरी ओर भारत में हुईं छेड़छाड़ की कई शर्मनाक घटनाएं। नए साल के मौके पर कहीं कहीं लोग जश्न के माहौल में पूरी रात खुशियां मनाते दिखे, तो बंगलुरु व दिल्ली से महिलाओं के खिलाफ हुई कुछ ऐसी घटनाएं सामने आईं, जिन्होंने हमारे सामाजिक प्राणी होने पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया।
सारा देश इन घटनाओं की निंदा कर रहा है। अक्षय कुमार, रितिक रोशन, आयशा टाकिया सहित बॉलीवुड के तमाम बड़े कलाकारों ने खुलकर इन घटनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया दी, लेकिन इस बीच महिलाओं को कुछ चीजों से परहेज करने की बात कहकर सपा नेता अबू आजमी बुरे फंसे गए। अबू आज़मी ने बयान दे दिया कि जो हुआ वो गलत तो है, अपराधियों को कड़ी सजा ज़रूर मिले, लेकिन महिलाओं को भी इतने छोटे कपड़ों में, इतनी देर रात तक, अकेले नहीं घूमना चाहिए। आज़मी का तर्क शायद कुछ ऐसा है कि यह प्रकृति का सामान्य सा नियम है कि महिलाएं यदि पुरुषों के सामने इतना अंग प्रदर्शन करेंगी, तो पुरुषों में उन्मादकता आएगी ही और वो भी नशेे के माहौल में तो मामला सोने पर सुहागे का है। इसीलिए अक्सर अपने विवादित बयानों के कारण सुर्ख़ियों में रहने वाले आज़मी मर्द और औरत की तुलना चींटी और शक्कर से या फिर आग और पेट्रोल से कर बैठे। अब सारा देश इस घटना के साथ-साथ अबू आज़मी पर भी थू-थू कर रहा है।
यह पूर्णरूप से सही है कि ख़ुशी हर इंसान चाहता है, लेकिन हर इंसान के लिए ख़ुशी की परिभाषा अलग अलग होती है। सज्जनों की ख़ुशी अलग, बुरे लोगों की ख़ुशी अलग, बच्चों की ख़ुशी अलग बूढ़ों की अलग। दार्शनिक दृष्टि से देखें, तो इस घटना से ठीक पहले, उत्सव मनाने के दौरान औरतें अपने हिसाब से आनंद उठा रहीं थीं, मर्द अपने हिसाब से और पुलिस वाले अपने हिसाब से। इसमें कितने आदमी होश में थे, कितने नशे में यह कहना मुश्किल है। साथ ही कितनी औरतें होश में थीं कितनी नशे में यह कहना भी उतना ही मुश्किल है। पुलिस वालों की भी ड्यूटी होती है, लेकिन वर्दी के भीतर वो भी इंसान ही होते हैं। उनके पास भी बीवी बच्चे होते हैं, उन्हें भी अपनी जान प्यारी होती है। दिल्ली में हुई घटना के दौरान पुलिस ने मनचलों को पकड़ा तो, लेकिन उनके साथ आये अन्य कई साथियों ने पुलिस को ही धूल चटा दी और बखेड़ा खड़ा कर अपने साथियों को लेकर चंपत भी हो गए। अब 100 आदमी, और एक पुलिस वाला! बहुत नाइंसाफी है। आखिर वह कितनी व्यवस्था थाम सकता है?
बंगलूरू की घटना की यदि बात करें, तो रात के ढाई बजे, एकदम सुनसान सड़क पर एक अकेली लड़की। बेशक गलती छेड़नेवालों की है, बेशक आज भी भारतीय समाज में मर्द और औरत में भेदभाव की भावना सशक्त है, बेशक औरतों को भी मर्दों जैसी स्वतंत्रता मिलनी ही चाहिए, बेशक उन दरिंदों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए, जिन्होंने खुले आम उस महिला के साथ दुर्व्यवहार किया, लेकिन क्या कहीं भी, एक पल के लिए ये विचार नहीं किया जा सकता कि एक प्रतिशत ही सही, गलती उस औरत की भी थी! सारी परिस्थितियों, विकल्प, समाधान, सुविधा, असुविधा, हर पहलू पर गौर कर के देखिये। ऐसा नहीं कि जहां महिलाएं पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं, वहाँ बलात्कार का स्तर शून्य प्रतिशत है। बलात्कार, छेड़खानी, बदतमीज़ी वहाँ भी होती है, तो भारत में तो स्थिति अभी बहुत बदतर है। तो क्या कहीं न कहीं महिलाओं को परिस्थितियों के प्रति स्वयं सतर्क नहीं होना चाहिए? यदि जवाब ‘हां’ है, तो निश्चित ही रात के ढाई बजे सूनसान सड़क पर आपके अकेले घूमने पर प्रश्न उठेगा। रात भर नशे में पार्टी मनाने पर उंगलियां महिलाओं पर भी उठेंगी।
विकासशील देशों की सूची से विकसित देशों की सूची की ओर तीव्रता से बढ़ता भारत कई मायनों में पाश्चात्य संस्कृति व तथ्यों को अपना चुका है। कई मायनों में यह सही भी है, लेकिन भारत की विश्व स्तर पर एक खास पहचान ‘भारतीय संस्कृति’ को लेकर है। वह भारतीय संस्कृति, जहां नारी को अगर नारायणी का दर्ज़ा दिया गया है, तो उसके लिए कुछ मर्यादाएं भी निर्धारित की गई हैं। और यदि आप ऐसी संस्कृति को रूढ़िवादी विचारधारा मानते हैं, तो पूर्णतः पाश्चात्य संस्कृति ही अपना लीजिये। आधुनिक भारतीय विचारधारा ‘धोबी के कुत्ते’ जैसी हो गई है, न घर की, न घाट की। और सारी समस्या की जड़ यही है।
सभी बातों का निचोड़ यह है कि ऐसे अपराधों को ख़त्म करना इतना आसान नहीं है। ऐसा अपराध मनुष्य की व्यक़्क्तिगत सोच विचार को बदलने से ख़त्म हो सकते हैं ।भाषण देने से या प्रशासन चुस्त दुरुस्त करने से नहीं। यदि पुरुषों को अपनी सोच और मानसिकता बदलने की ज़रूरत है, तो महिलाओं को भी परिस्थितियां बदलने तक, वर्तमान परिस्थितियों के हिसाब से खुद को सुरक्षित रखने की ज़रूरत है, किसी भी ‘मोड़’ पर दुर्घटना घटे, उससे पहले ही उस ‘मोड़’ पर जाने में सावधानी बरतने की ज़रूरत है। यदि महिलाएं इज़्ज़त को अपना गहना मानती हैं, तो सबसे पहले खुद अपनी हिफाज़त करने की ज़रूरत है। महिलाएं पहले खुद अपनी इज़्ज़त करें, तब दुनिया से उसकी उम्मीद करें। खुद को सशक्त अवश्य बनाएं, पर परिस्थितियों के अनुसार सावधान भी रहें, ताकि कल कोई आप पर प्रश्न उठाने का साहस न कर सके।