वर्षों में आती है रिपोर्ट, कैसे मिले दोषियों को सजा!

न्यूज़ डेस्क । Navpravah.com

रेल दुर्घटना की जांच में इतना लंबा समय लगता है और सजा देने का तंत्र इतना गोपनीय है, कि अफसरों को कड़ा डंड मिलना मुश्किल हो जाता है। दंड के नाम पर अक्सर छोटे कर्मियों पर कारवाई की जाती है, और बड़े अफसर बचकर निकल जाते हैं।

रेलवे में दुर्घटनाओं की जांच का जिम्मा रेलवे संरक्षा आयोग पर है, जो नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अधीन आता है। आयोग का मुखिया मुख्य संरक्षा आयुक्त होता है, जो पांच संरक्षा आयुक्तों की मदद से कार्य करता है, प्रत्येक संरक्षा आयुक्त के ऊपर एक जोन की जिम्मेदारी होती है।

कार्य में दिनों-दिन बढ़ोतरी के बावजूद संरक्षा आयोग के पास अक्सर संसाधनों की कमी रहती है। पहले कोई संरक्षा आयुक्त साल में 300-400 मामले देखता था, वहीं उसे अब 500-600 मामले निपटाने पड़ते हैं। यह आंकड़ा दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है, इसका असर दुर्घटनाओं की जांच पर पड़ रहा है, जिसमें अक्सर सालों लग जाते हैं।

जांच पूरी होने तक दोषियों पर कारवाई करना संभव नही होता, गड़बड़ी करने के बावजूद कर्मचारी कार्य करते रहते हैं, कभी कारवाई होती भी है तो बाकी कर्मचारियों पर उसका कोई डर नही होता।

रेल संरक्षा आयोग का गठन संसद से कानून बनाकर हुआ है, इसे नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अधीन इसलिए रखा गया था ताकि दुर्घटनाओं की स्थिति में निष्पक्ष जांच हो सके, लेकिन यह मकसद आज तक पूरा नही हुआ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.