शिखा पाण्डेय । Navpravah.com
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज विश्व के दूसरे सबसे बड़े बांध, ‘सरदार सरोवर बांध ‘ का उद्घाटन करने जा रहे हैं, जिसका स्वप्न 56 वर्ष पहले सरदार वल्लभ भाई पटेल ने देखा था। बांध की ऊंचाई 138 मीटर है। सरकार का दावा है कि इस बांध का फायदा गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र को मिलेगा। हजारों परिवारों के विस्थापन और दूसरे नुकसान की वजह से यह प्रोजेक्ट लंबे समय से विवादों में भी रहा है।
आज प्रधानमंत्री जिस सरदार सरोवर बांध का उद्घाटन करने जा रहे हैं, उस प्रोजेक्ट पर पिछले 30 साल से काम चल रहा है। समय चौंकानेवाले अवश्य है, लेकिन इसका कारण यह है कि साल 1961 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा इस बांध की नींव रखी तो गई, लेकिन तमाम विवादों के चलते इसका निर्माण1987 से शुरू हो सका।
गुजरात सरकार ने विधानसभा में 2015 में जानकारी दी थी कि समूचे नर्मदा प्रोजेक्ट पर अब तक 47,000 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। जबकि 48,000 किमी नहर का निर्माण किया जाना अभी बाकी है। नर्मदा प्रोजेक्ट पर अब तक हुए खर्च पर यदि नज़र डालें तो सरदार सरोवर बांध पर अब तक 5,777.6 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। मुख्य नहरों पर हुआ खर्च 6,427.5 करोड़ रुपये है, जबकि नहरों की शाखाओं पर 16,960 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। इसके अतिरिक्त अन्य खर्च 19000 करोड़ रुपये का है।
सरकार का दावा है कि सरदार सरोवर बांध से गुजरात के 9,000 गांवों में नहरों के नेटवर्क के जरिए पानी पहुंचाया जाएगा। इससे राज्य में 18 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई हो सकेगी। बांध के दो पावर हाउस से अब तक 4,141 करोड़ यूनिट बिजली पैदा हो चुकी है। पावर हाउस की बिजली पैदा करने की क्षमता 1250 मेगावाट और 250 मेगावाट है। यह बांध अब तक बिजली बेच कर 16000 करोड़ रुपए की कमाई भी कर चुका है।
नर्मदा बचाओ आंदोलन के तहत सामाजिक कार्यकर्ता इस बांध से बड़े पैमाने पर होने वाले विस्थापन और समुचित पुनर्वास न होने की वजह से इस बांध का जमकर विरोध कर रहे हैं। साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रीवर्स एंड पीपुल के कोऑर्डिनेटर हिमांशु ठक्क्र के अनुसार इस बांध से डूब वाले इलाकों से ही लगभग 50,000 परिवार विस्थापित हुए हैं। इनमें से सिर्फ 10,000 परिवारों का ही पुनर्वास हो पाया है, वो भी आधा अधूरा। इसके अलावा बांध बनने की वजह से निचले इलाकों में रहने वाले लगभग 10,000 मछुवारों की जीविका पर सकंट पैदा हो गया है। सरकार की और से अब तक इन्हें कोई मदद नहीं मिली है, जिस वजह से ये पलायन करने या किसी अन्य छोटे मोटे कामों के लिए मजबूर हैं।
नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़ी मेधा पाटकर भी इस प्रोजेक्ट के सख्त विरोध में हैं। उनका कहना है कि बांध के 30 गेट खुलते ही मध्यप्रदेश के 192 , महाराष्ट्र के 33 और गुजरात के 19 गांव इतिहास का हिस्सा बन जाएंगे। मेधा ने इसके विरोध में आंदोलन करते हुए जल समाधि की धमकी भी दे दी है।
आपको बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी का चॉपर मौसमी खराबी के कारण निश्चित स्थान पर नहीं उतरा जा सका। इसे डभोई में लैंड किया गया। पीएम डभोई से केवडिया सड़क मार्ग से जा रहे हैं। इस वजह से कार्यक्रम में थोड़ी देर होने की उम्मीद है।