शिखा पाण्डेय | Navpravah.com
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राष्ट्रीय जनता दल से गठबंधन तोड़ भारतीय जनता पार्टी का साथ थाम दोबारा बिहार के मुख्यमंत्री तो बन लिए, लेकिन अब केंद्र में मंत्रिमंडल विस्तार से पहले ‘दूल्हे के फूफा’ जैसे अड़ के बैठे हैं। इधर रविवार को मोदी मंत्रीमंडल का विस्तार होने वाला है, तमाम न्यूज़ चैनल अपने-अपने ‘चुनिंदा’ नेताओं को लेकर कयास पर कयास लगा रहे हैं, उधर जेडीयू के साथ मंत्री पद को लेकर पेंच फंस गया है।
शिवसेना तो पहले ही से मुंह फुलाये हुए है, अब जेडीयू भी मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर बीजेपी से ख़फ़ा दिख रही है। बीजेपी की तरफ से यह खबर आ रही थी कि जेडीयू एक कैबिनेट मंत्री और एक राज्यमंत्री के प्रस्ताव पर मान गई है, लेकिन सूत्रों के अनुसार अब तक मंत्रियों की संख्या और पोर्टफोलियो को लेकर बीजेपी और जेडीयू के बीच खींचतान जारी है। बीजेपी की तरफ से दिए गए प्रस्ताव से नीतीश कुमार संतुष्ट नहीं हैं। जेडीयू के अनुसार राम विलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी को भी एक कैबिनेट पद दिया गया है, और जेडीयू को भी मात्र एक ही कैबिनेट पद ऑफर करना! बहुत नाइंसाफी है। हालांकि बातचीत अभी भी जारी है और उम्मीद जताई जा रही है कि रविवार शाम तक मामला सुलझा लिया जाएगा।
सूत्रों के मुताबिक जेडीयू मोदी मंत्रिमंडल में कोई रुतबे वाला पोर्टफोलियो चाहता है और सभी जानते हैं कि इस वक़्त सबसे रुतबे वाली ‘एम्प्टी’ कुर्सी धरी गई है रेल मंत्रालय में। मज़े की बात यह है कि नीतीश कुमार खुद तो रेल मंत्री रह ही चुके हैं, उनके ‘कभी मित्र रह चुके’ उनके प्रतिद्वंदी लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान भी पहले रेल मंत्री रह चुके हैं।
जेडीयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी से जब मंत्रिमंडल विस्तार पर सवाल पूछा गया, तो वे कन्नी काट गए, यह कहते हुए कि हम लोगों को मंत्रिमंडल विस्तार के बारे में कुछ भी पता नहीं है। उनका कहना है कि उनकी पार्टी से किसी की बात नहीं हुई है। अब इतना बड़ा फैसला, और जेडीयू से कोई बात ही नहीं! इसी से साफ़ होता है कि जेडीयू या तो फैसले की जानकारी न होने से ख़फ़ा है, या खुद ‘फैसले’ से।
उधर न्यूज़ चॅनेल्स तमाम तरीकों से , तमाम प्रयासों में जुटे हैं कि कहीं से कोई ‘हो सकनेवाला’ जेडीयू मंत्री मिल जाये, तो मामला कुछ साफ़ हो, लेकिन जेडीयू के जिन सांसदों का नाम मंत्री बनने के लिए चर्चा में हैं, वे फ़िलहाल भूमिगत हो कर बैठे हैं। उन नेताओं को भी डर है कि ज़बान ज़रा सी भी ऊपर- नीचे हुई, तो ‘हो सकनेवाले’ मंत्री की लिस्ट से धड़धड़ाते हुए तुरंत ‘ हो सकते थे’ वाली लिस्ट में आ गिरेंगे।