अरुणाभ सौरभ | Navpravah.com
मोटी रकम वसूलने वाले पब्लिक स्कूल क्या हमारे बच्चों की जान सुरक्षित रखने के प्रति संवेदनशील है? कुकुरमुत्ते की तरह हर शहर-कस्बे में उग आए पब्लिक स्कूल हमारे बच्चे को ना पब्लिक का बनाते हैं ना स्कूल का रहने देते हैं । सरकारी स्कूलों में अब वे बच्चे भेजे जाते हैं जिनके माता-पिता अपने बच्चे को पब्लिक स्कूल भेजने में असमर्थ होते हैं, या कहीं-कहीं उच्च गुणवत्ता वाले सरकारी स्कूल भी होते हैं जहाँ हर घर के बच्चे पढ़ने आते हैं ।
केंद्र सरकार द्वारा स्वायत्त विद्यालयों की स्थिति किसी भी स्टार पब्लिक स्कूल से बेहतर होती है ! भारत सरकार के केंद्रीय विद्यालयों,नवोदय विद्यालयों,आर्मी स्कूल, सैनिक स्कूल आदि की स्थिति अब भी स्टार पब्लिक स्कूल से बेहतर है । पर इन सबमें नामांकन की अपनी शर्तें हैं सो ठीक पर, गुणवत्ता और बच्चों की देखभाल में जरा सी कमी बेबर्दाश्त होतीं हैं । इसीलिए ध्यान रखने के मामले में सतर्क रहते हैं यहाँ के कर्मी ! अध्यापान,मूल्यांकन से लेकर सुरक्षा,खेलकूद आदि सभी स्तरों पर बच्चों का ख्याल रखा जाता है । इसके वाबाजूद सरकारी विद्यालय हाई-फ़ाई सोसाइटी में उपहास का विषय है। क्योंकि हमारे सरकारी विद्यालयों में मूल्यों की शिक्षा दी जाती है, कुछ जरूरी पाठ जरूर बता दिये जाते हैं जीवन में जिससे थोड़ी नैतिकता बची रहती है ।
राज्य सरकारों के स्कूल का भी जितना मज़ाक हाई-फ़ाई सोसाइटी वाले लोग उड़ाते हैं, उतना बुरा हाल है नहीं ! मत भूलिए कि हमारी मनोवृत्ति का निजीकरण है जो अपनी बुनियादी दुनिया में रहना ही नहीं चाहती ! स्टेटस सिंबल की बात होती है कि आपका बच्चा पढ़ कहाँ रहा है ? जिसका जो स्टेटस होता है उतनी मोटी रकम बच्चों की शिक्षा पर लुटाता है । हमने स्वयं इन पब्लिक और प्राइवेट स्कूलों को पनपाया है जिससे ये हमारी जेब खोखला कर दे और हमारे बच्चों की आत्मा ! ऊपर से हम अपने प्यारे बच्चे का बचपन छीन लेते हैं, मगर जान सुरक्षित नहीं है- ये कहाँ सोचते हैं ! हमारे बच्चे हाई-फ़ाई स्कूलों में पढे और अंग्रेजीदा माहौल में ढाल जाए, उसकी चाल-ढाल में अंग्रेज़ियत आ जाये थोड़ी सी यही कामना ईश्वर से भी करने लगते हैं । हम मोटी रकम अदा कर एक शानदार फुल एसी स्कूल में बच्चों को इसीलिए दाखिला देते हैं कि हमारा बच्चा फर्राटेदार अँग्रेजी बोले ! मगर क्या करें जमाना वही करता है !
सरकारी विद्यालयों की छवियाँ जान-बूझ कर खराब की गई कि निजी विद्यालय फूले-फले ! शिक्षा एक बेजोड़ कमाऊ सेक्टर हुआ कई कॉर्पोरेट घराने उतर गए शिक्षा के बाज़ार में ! और हमारी प्यारी सी शिक्षा को मेगा मार्केट होने में कोई ज्यादा दिन इंतज़ार नहीं करना पड़ा ! राज्य सरकार के बोर्ड की छवियों की धज्जियाँ इसीलिए लगातार उड़ाई जा रहीं हैं । हाँ अगर हाल बुरा है सरकारी स्कूलों का तो प्राइवेट का भी बहुत अच्छा नहीं है ! यहाँ मेरा मकसद सरकारी-प्राइवेट स्कूल का मुक़ाबला कराना नहीं है। वो सात साल का बेटा हमारा,हम सबका बेटा है, और भी वे बच्चे जो मारे जाते हैं वे हमारे नहीं हैं क्या ? उन तमाम मासूमों की मुस्कुराहट देखने का क्या दिल नहीं कराता हमारा ? बच्चे की एक मुस्कान एक पूरे दिन को खुशनुमा बना देती है। रोते हुए बच्चे को हँसाने की बात कहकर एक शायर चला गया ! प्रद्युम्न के गले पर चली चाकू की निशान एक अत्यंत भयभीत करनेवाली दुनिया में ले जाती है हमें ।
हम किस दुनिया में रह रहे हैं जहाँ लेखकों की जान कहीं भी ली जा रही है । आखिर बिना किसी तोड़फोड़ और मार-पीट करनेवाले लोग भी कुछ लोगों को हत्या करने लायक लगती है ? एक शांतिप्रिय अपनी साधना में लीन लेखक को मार देना उचित है, भले ही उसके विचार,जीवन,धर्म और दर्शन आपके जैसा नहीं हो ? किसी भी दूसरी विचारधारा के लोगों से संवाद बनाइये,तर्क-वितर्क कीजिए लगातार बहस हों–पर हत्या क्यों हो ? कहीं एक-दूसरे की राजनैतिक विचारधारा के विरोधी कार्यकर्त्ता एक-दूसरे की हत्या कर रहे हैं !
बेहतर होगा कि राजनैतिक दलों के कार्यकर्त्ता जनता के बीच अपने-अपने पार्टीगत उपलबद्धियों को गिनाएं एक दूसरे की राजनीतिक खींचतान करे –पर बहस की संस्कृति,आलोचना की संस्कृति बनाएँ रखें, जनता को पोलिटिकली मेच्योर होने दें ! कोई किसी तरह की हत्या क्यों करे ? और जहाँ कहीं भी हत्या होगी वहाँ स्थानीय प्रशासन की ही कमी कही जाएगी।
एक बच्चे के माँ-बाप के लिए नहीं हम सबके लिए उनके बच्चे की हिफाज़त के सतर्कता बनाने की जरूरत है ! यह समय प्रद्युम्न और बलात्कार की शिकार उस पाँच साल की स्कूली छात्रा के शोकाकुल परिवार के प्रति महज सहानुभूति रखने का नहीं है, हम सबको बच्चों की सुरक्षा के प्रति चिंतित होने का है। आखिर मोटी रकम वसूलने वाले स्कूलों में हमारे बच्चे की जान कितनी सुरक्षित है ? और इस निर्ममता पर क्या कहा जाये ? इतने घिनौने लोगों के बीच है हमारी दुनिया जिसमें बच्चे की जान निर्ममतापूर्वक ली जाती है,इस निर्ममता के आगे निशब्द होने के अलावा क्या कर सकते हैं हैं हम जिसमें पाँच साल की स्कूली छात्रा के साथ बलात्कार जैसी घटना हो ? बच्चे को बचने दीजिए,लिखने दीजिए लेखकों को अपने समय का इतिहास और अपना-अपना अनुभव जीवन का ! बहुरंगी दुनिया बनाने के लिए कलम को अनवरत चलना होगा किलकारियों को गूँजते रहने की जरूरत है।