सौम्या केसरवानी । Navpravah.com
बाल मजदूरी भारत में बड़ा सामाजिक मुद्दा बनता जा रहा है, जिसे नियमित आधार पर हल करने की आवश्यकता है। ये केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि इसे सभी सामाजिक संगठनों, मालिकों, और अभिभावकों द्वारा भी समाधित करना चाहिए।
बाल मजदूरी का मुद्दा अब अंतर्राष्ट्रीय हो चुका है, क्योंकि देश के विकास और वृद्धि में ये बड़े तौर पर बाधक बन चुका है। स्वस्थ बच्चे किसी भी देश के लिये उज्जवल भविष्य और शक्ति होते हैं, अत: बाल मजदूरी बच्चे के साथ ही देश के भविष्य को भी नुकसान, खराब तथा बर्बाद कर रहा है। बचपन जीवन का सबसे यादगार क्षण होता है, जिसे हर एक को जन्म से जीने का अधिकार है। बच्चों को अपने दोस्तों के साथ खेलने का, स्कूल जाने का, माता-पिता के प्यार और परवरिश के एहसास करने का, तथा प्रकृति की सुंदरता का आनंद लेने का पूरा अधिकार है।
माता-पिता अपने बच्चों को परिवार के प्रति बचपन से ही जिम्मेदार बनाना चाहते है। वो ये नहीं समझते कि उनके बच्चों को प्यार और परवरिश की जरुरत होती है, उन्हें नियमित स्कूल जाने तथा अच्छी तरह से बड़ा होने के लिये दोस्तों के साथ खेलने की जरुरत है, हर माता-पिता को ये समझना चाहिए कि देश के प्रति भी उनकी कुछ जिम्मेदारी है। बड़े शहरों के साथ-साथ आपको छोटे शहरों में भी हर गली नुक्कड़ पर कई बच्चे मिल जाएंगे, जो हालातों के चलते बाल मजदूरी की गिरफ्त में आ चुके हैं और यह बात सिर्फ बाल मजदूरी तक ही सीमित नहीं है। इसके साथ ही बच्चों को कई घिनौने कुकृत्यों का भी सामना करना पड़ता है, जिनका बच्चों के मासूम मन पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है।
कई एनजीओ समाज में फैली इस कुरीति को पूरी तरह नष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसी ही एक संस्था चलाते हैं इलाहाबाद में रहने वाले अभिषेक शुक्ला, जिन्हें हाल में इनके इस कार्य के लिए सिटी स्टार सम्मान से नवाज़ा गया है। इनके संस्था का नाम है “शुरुआत एक ज्योति शिक्षा की” ये संस्था असहाय, गरीब व असक्षम बच्चों को शिक्षा देते हैं।
अभिषेक शुक्ला नवप्रवाह से बातचीत करते हुए बताते हैं कि, ‘जब मैंने बस्तियों में पढ़ाना शुरू किया, तब लोग अपने बच्चों को पढ़ाने नही भेजते थे, वे कहते थे कि पढ़कर ये सब क्या करेगें, कौन काम करके कमायेगा, क्योंकि लड़के दुकानों में और लड़कियाँ झाड़ू, बर्तन का काम करने घर-घर जाती थी, लेकिन मैंने हिम्मत नही हारी, उनके घरवालों को मनाया और लगातार प्रयास किया और आज धीरे-धीरे हमारी संस्था बच्चों को शिक्षा दे रही है। हमें अगर बालश्रम रोकना है, तो हमें पहले उनके परिवार को जागरूक करना होगा।
उन्होंने आगे कहा कि वे तीन बस्तियों में और एक फुटपाथ पर मिलाकर 80 से भी ज्यादा बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं, उन्होंने कहा कि कैलाश सत्यार्थी जी का भी कहना है कि बालश्रम का शिकार बच्चा सबसे पहले अपने घर से होता है, इसलिए हम सबको बाल दिवस के दिन ये ठान लेना होगा कि कोई भी बच्चा बालश्रम का शिकार न हो, और जितनी जागरूकताएँ हम समाज में फैला सकते हैं फैलाएँ, क्योंकि हमारे थोड़े से ही योगदान से बालश्रम को रोका जा सकता है।
इलाहाबाद में ही रहने वाले 16 वर्षीय राज ने बताया कि वो पेट पालने के लिए पिछले 5-6 साल से वेटर का काम करता है, ताकि उसका परिवार चल सके, वहीं 15 वर्षीय शिवम ने बताया कि वे कबाड़ बिनने का काम 4 साल से कर रहा है, ताकि वे दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर सके, इसी तरह देश के कोने-कोने में कई बच्चे बालश्रम का शिकार हैं।
सरकार ने आठवीं तक की शिक्षा को अनिवार्य और निशुल्क कर दिया है, लेकिन लोगों की गरीबी और बेबसी के आगे यह योजना भी निष्फल साबित होती दिखाई दे रही है। बच्चों के माता-पिता सिर्फ इस वजह से उन्हें स्कूल नहीं भेजते क्योंकि उनके स्कूल जाने से परिवार की आमदनी कम हो जाएगी।
माना जा रहा है कि आज 60 मिलियन बच्चे बाल मजदूरी के शिकार हैं, अगर ये आंकड़े सच हैं, तो सरकार को अपनी आंखें खोलनी होगी। आंकड़ों की यह भयावहता हमारे भविष्य का कलंक बन सकती है। इसलिए हम सबको बाल मजदूरी जैसी कुप्रथा को खत्म करने का प्रयास करना चाहिए, ताकि सभी बच्चों को उचित शिक्षा व खानपान मिल सके।
आपके लेख और आंकड़े जो है
उन्ही बस्तियों और फुटपाथों में मैं भी शिक्षा देने का काम करता हुँ।।
जिस पर मेरे कविता है। –
मैं भी बालक हूँ ऐ दुनियां
इस हाल में मुझे अब छोड़ ना
मैं जैसा भी हूँ तेरा ही हूँ,
कुछ अपनी जिंदगी सीमैं भी बालक हूँ ऐ दुनियां
इस हाल में मुझे अब छोड़ ना
मैं जैसा भी हूँ तेरा ही हूँ,
कुछ अपनी जिंदगी सी
मेरी जिंदगी को मोड़
काटो भरी राहों में अब छोड़ न
नाजुक हु मुझे तोड़ न
मैं भी बालक हूँ ऐ दुनिया। –
मेरी जिंदगी को मोड़ ना
काटो भरी राहों में अब छोड़ ना
नाजुक हूँ मुझे इस कदर तोड़ ना
मैं भी बालक हूँ ऐ दुनिया।
आदित्य सोनी