शिखा पाण्डेय,
मामला प्रेम में धोखे का हो या बलात्कार का, सजा अपराधी को मिले या न मिले, अंत में भुगतना उसी औरत को होता है, जो इस अत्याचार का शिकार होती है। यह सजा होती है उसके गर्भ में पलने वाला वह बच्चा, जिसे वह दुनिया में नहीं लाना चाहती, लेकिन कानूनी बंदिशें उसे गर्भपात का अधिकार नहीं देतीं।
देर से ही सही लेकिन अब केंद्र सरकार को अविवाहित महिलाओं का यह दर्द समझ में आ गया है और सरकार इन महिलाओं को कुछ खास परिस्थितियों में गर्भपात की इजाजत देने पर विचार कर रही है।
आपको बता दें कि ये सुविधा विवाहित महिलाओं को हासिल है। मौजूदा कानून में गर्भनिरोधक गोलियों और अनियोजित गर्भधारण के हालात में विवाहित औरतेें गर्भपात करा सकती हैं लेकिन ये सुविधा अविवाहित महिलाओं को नहीं हासिल है। अब केंद्र सरकार शीतकालीन सत्र के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा लाये गए इस प्रस्ताव पर मुहर लगा सकती है।
जानकारों का कहना है कि सरकार के इस योजना से अविवाहित महिलाओं को सामाजिक ताने को सुनने से आजादी मिलेगी, और वो सम्मान के साथ जी सकेंगी।
उनका मानना है कि इस कदम से दुष्कर्म की शिकार या शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का सामना कर रहीं अविवाहित महिलाओं को राहत मिलेगी। विशेषज्ञों का कहना है कि जिस तरह अकेली रहने वाली महिलाओं में यौन संबंधी इच्छा में बढ़ोतरी देखी जा रही है, उन हालातों में सरकार का ये कदम प्रगतिशील सोच को दर्शाता है।
1971 में बनाए गए नियमों के तहत एक गर्भवती महिला गर्भ में पल रहे बच्चे में किसी गंभीर बीमारी की पहचान के बाद गर्भपात करा सकती है। लेकिन उसके लिए 20 हफ्ते (करीब पांच महीना) का गर्भ होना जरूरी होता है। मौजूदा मेडिकल टर्मिनेशन प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत गर्भपात कराने के लिए डॉक्टर पुख्ता वजह बताता है।
इस प्रस्ताव को पारित करने के तहत स्वास्थ्य मंत्रालय ने होम्योपैथ के डॉक्टरों, नर्सों मिडवाइफ को ट्रेनिंग देकर गर्भपात करने की संस्तुति की है। IPAS के निदेशक के मुताबिक, सरकार के इस कदम से अविवाहित महिलाएं या वो महिलाएं जो किसी वजह से बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती हैं, उन्हें मानसिक तौर पर राहत मिलेगी। इसके अलावा महिलाएं अपनी सेक्सुअल और प्रजनन संबंधी अधिकारों से वाकिफ हो सकेंगी।