इलाहाबाद: आपने अभी तक छोटे-छोटे बच्चों को ट्रेनों में और सड़क पर भीख मांगते ,दीवारों पर पोस्टर चिपकाते, होटलों में काम करते तो देखा होगा लेकिन क्या आपने कभी किसी बच्चे को चुनावों में प्रयोग किये जाने वाले विजिटिंग कार्ड्स बीनते हुए देखा है? गौरतलब है कि इस समय इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनावों की तैयारियां जोरों पर हैं । लगभग सभी प्रत्याशियों द्वारा प्रतिदिन हजारों की संख्या में विजिटिंग कार्ड बांटे जा रहे हैं ।इन्ही कार्डों को शाम को छोटे-छोटे बच्चे बीनते हुए नजर आते हैं।
इन कार्डों के बदले उन बच्चों को रूपये दिए जाते हैं ।बच्चों के अनुसार,” हमें इससे कोई मतलब नहीं कि कार्ड किसका है। हमें तो बस इन कार्डों के बदले मिलने वाले रुपयों से मतलब । हमें 100 कार्डों के बदले 10 रूपये मिलते हैं।” जब बच्चों से पूछा गया कि ये कार्ड आप कहाँ पर देते हो ? उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा “हम अपने मालिक को दे देते हैं।” आगे कुछ पूछने से पहले ही वे बच्चे वहां से भाग गए।
जब हमने इसकी पड़ताल की तो हमारे सामने बहुत ही चौंकाने वाली बातें सामने आईं। हमने छात्र नेताओं ,विजिटिंग कार्ड बनाने वाले दुकानदारों , कबाड़ वालों से बात की तो कुछ प्रमुख बातें पता लगीं, जिनमें पहली बात यह कि बच्चे जो कार्ड बीनते हैं उन कार्डों को फिर रिसाइकिल की प्रक्रिया द्वारा पुनः प्रयोग में लाया जाता है।
दूसरी बात यह कि कुछ छात्र नेताओं द्वारा इन कार्डों को पुनः अपने प्रयोग में लाया जाता है । इस पर अधिकांश छात्र नेतओं का कहना था कि अगर यह दोबारा इस्तेमाल होता है तो यह तो अच्छी बात है । कम से कम कागज से बने इन कार्डों की बर्बादी तो नहीं होती। उन्हीं कार्डों को पुनः प्रयोग में लाया जा सकता है।
पुनः प्रयोग किए जाने या रीसायकल किए जाने की बात अपनी जगह है, लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न यह कि आखिर इन कार्यों में इतने छोटे बच्चों को क्यों शामिल किया जाता है ? जिस उम्र में इन्हें शिक्षा के मंदिर में किताबें लेकर पढ़ने जाना चाहिये उस उम्र में ये शिक्षा के मंदिर में कार्ड बीनने आते हैं, वो भी महज चन्द रुपयों के लिए!
आपको बता दें कि इस समय इलाहाबाद विश्वविद्यालय में चारों तरफ छात्र संघ चुनावों की तैयारियां चल रही हैं। पूरा कैम्पस पैम्पलेट्स ,पोस्टरों से भरा पड़ा है । सभी प्रत्याशियों द्वारा हजारों की मात्रा में प्रतिदिन विजिटिंग कार्ड बाटें जा रहे हैं । जैसे- जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है, वैसे- वैसे इलाहाबाद पैम्पलेट्स ,बैनर्स से ढंकता जा रहा है। कैसी विडंबना है, उधर प्रत्याशियों द्वारा पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है और इधर ये बच्चे मात्र 10 रुपये के लिए दिन रात पसीना बहाने को मजबूर हैं!