रिपोर्ट- अनुज हनुमत,
संपादन- आनंद रूप द्विवेदी,
आज 26 नवंबर के दिन भारत अपना संविधान दिवस मना रहा है। दरअसल संविधान दिवस की शुरुआत मौजूदा सरकार के द्वारा 2015 से हुई, जब ड्राफ्टिंग कमेटी के अगुवा डॉ अम्बेडकर के जन्मवर्ष को 125 साल पूरे हुए। भारतीय संविधान विश्व का वृहत्तम संविधान है, जिसे बनाने में 2 साल 11 महीने 18 दिन लगे।
डॉ अम्बेडकर ने अपनी अस्वस्थता के चलते हुए इस समय अंतराल में बतौर ड्राफ्टिंग कमेटी अध्यक्ष संविधान का मसौदा डॉ राजेन्द्र प्रसाद को आज की तारीख (26 नवंबर 1949) पर ही सौंप दिया था। इसी दिन को हम संविधान दिवस के रूप में मनाते हैं।
क्या है गणतंत्र दिवस: 2 महीने बाद जब 26 जनवरी 1950 को संविधान पारित हुआ और गणतंत्र दिवस की शुरुआत हुई।
विशेषता: 25 भागों वाले इस वृहत्तम संविधान में 448 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियाँ और 101 संशोधन शामिल हैं। हाल में ही GST को लेकर संशोधन किया गया था।
क्या है प्रस्तावना और उसका उद्देश्य?:
संविधान कि शुरुआत प्रस्तावना से होती है। दरअसल प्रस्तावना महज एक नोट नहीं है, बल्कि इसके हर शब्द में भारत गणतंत्र की आत्मा को समाहित किया गया है। इसके माध्यम से संविधान का सार, अपेक्षाएं, उद्देश्य तथा लक्ष्य का निर्धारण किया गया है। प्रस्तावना यह घोषणा करती है कि संविधान अपनी शक्ति सीधे जनता से प्राप्त करता है। इसी कारण यह ‘हम भारत के लोग’ – इस वाक्य से प्रारम्भ होती है।
केहर सिंह बनाम भारत संघ के वाद में कहा गया था कि संविधान सभा भारतीय जनता का सीधा प्रतिनिधित्व नही करती, अत: संविधान विधि की विशेष अनुकृपा प्राप्त नही कर सकता, परंतु न्यायालय ने इसे खारिज करते हुए संविधान को सर्वोपरि माना है, जिस पर कोई प्रश्न नही उठाया जा सकता है।संविधान की प्रस्तावना 13 दिसम्बर 1946 को जवाहर लाल नेहरू द्वारा पास की गयी। प्रस्तावना को आमुख भी कहते हैं।
संविधान की प्रस्तावना:
“हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतं
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई0 (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतदद्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।“
भारतीय संविधान के प्रति सम्पूर्ण आस्था देशवासियों का प्रथम कर्तव्य है। कुछ लोग अपने मूल अधिकारों के प्रति अति सचेत होते हैं, किन्तु अपने मूल कर्तव्यों के प्रति असंवेदनशील पाए जाते हैं। स्पष्ट है कि किसी भी मूल अधिकार के पात्र आप तभी बनेंगे जब आप कर्तव्य का निर्वहन करें।
संविधान की प्रासंगिकता पर प्रश्नचिन्ह निरर्थक है, क्योंकि इसे हम मामूली साहित्य समझने की भूल न करें। लोकतंत्र कि कल्पना एक सुदृढ़ संविधान के बिना कल्पना और फंतासी मात्र है। समस्त देशवासियों को गर्व होना चाहिए कि संसार में सबसे अधिक मूल अधिकार, स्वतंत्रताएं उन्हें अपने संविधान द्वारा ही प्रदत्त हैं।