By AmitDwivedi
फिल्म समीक्षा- फितूर
रेटिंग- 2.5/5
निर्देशक- अभिषेक कपूर
लेखक- सुप्रतिक सेन, अभिषेक कपूर
संगीत- अमित त्रिवेदी
गीत- स्वानंद किरकिरे
प्रमुख कलाकार- तब्बू, आदित्य रॉय कपूर, कैटरीना कैफ, आदित्य राव हयाद्री
अभिषेक कपूर की ‘काई पो चे’ और ‘रॉक ऑन’ के बाद हर कोई यही उम्मीद कर रहा था कि उनकी बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘फितूर’ भी कमाल ही करेगी, लेकिन इस बार एक अलग राह के मुसाफिर बन गए निर्देशक अभिषेक. फिल्म में कश्मीर, लन्दन, तब्बू और कम समय के लिए दिखी अदिति राव हयाद्री सुकून देती हैं. खैर, आइए जानते हैं कि जिस फिल्म पर सभी की निगाहें टिकी थी, वो उम्मीदों पर कितनी खरी उतरी.
कहानी-
फितूर, कश्मीर की बेहद खूबसूरत वादियों में फिल्माया गया है. इन्ही खूबसूरत वादियों के बीच बेगम हज़रत का आलीशान बंगला, जिसमें वे अपनी बेटी फ़िरदौस के साथ रहती हैं. जवानी में मिले धोखे ने बेगम का प्यार से विश्वास ही उठा दिया था. बेगम के इलाके में ही नूर अपने जीजा जुनैद और बहन रुखसार के साथ रहता है, जो एक बेहतरीन चित्रकार भी होता है. एक दिन बेगम बंगले के काम के सिलसिले में जुनैद को बुलाती हैं. जुनैद के साथ नूर भी जाता है. जहां उसे दिखती है फ़िरदौस और बचपन से किशोरावस्था में प्रवेश कर रहा नूर आकर्षित होने लगता है.
कुछ समय के बाद ही बेगम हज़रत दोनों की बढ़ रही दोस्ती भांप लेती हैं और नूर को इश्क़ की जगह अपना भविष्य संवारने की हिदायत देती हैं. एक दिन अचानक पता चलता है कि फ़िरदौस को लन्दन भेज दिया गया है आगे की पढाई के लिए. और नूर जीने लगता है फ़िरदौस के इंतज़ार में. नूर के फितूर और इन दोनों के मोहब्बत का क्या हश्र होता है, यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.
फिल्म के संवाद और इसके गीत कमाल है. अमित त्रिवेदी और स्वानंद किरकिरे की जुगलबंदी रास आती है. हिन्दुस्तानी ज़बान में लिखे गए संवाद सुनकर आप वाह ज़रूर कहेंगे. फिल्म का स्क्रीनप्ले काफी कन्फ्यूज़ करता है. आप शायद ही समझ पाएं कि जो हो रहा है वह क्यों हो रहा है. फिल्म में मुफ्ती का किरदार बिल्कुल अधूरा है, यही नहीं अजय देवगन की लम्बे समय के बाद वापसी और बेगम का मुफ्ती के किए की सज़ा नूर को देने जैसी कई घटनाएं पटकथा को उलझाती नज़र आती हैं.
बेगम हज़रत के किरदार में तब्बू ने बेहतरीन अभिनय किया है. साथ ही आदित्य रॉय कपूर, लारा दत्ता और अदिति ने भी बहुत प्रभावित किया. खटकती हैं तो बस कैटरीना कैफ.