शिखा पांडेय,
भारत ने अंतरिक्ष में एक और कामयाबी हासिल कर ली है। आज सुबह इसरो ने श्रीहरिकोटा से देश के पहले स्वदेशी स्पेस शटल के स्केल मॉडल का परीक्षण किया, जो सफल रहा। इस शत-प्रतिशत स्वदेशी सफलता के बाद अब भारत भी अपना स्पेस शटल अंतरिक्ष में भेज सकेगा।
सुबह करीब 7 बजे इसरो ने श्रीहरिकोटा से देश के पहले स्वदेशी स्पेस शटल के स्केल मॉडल का परीक्षण किया। इस स्पेस शटल को एक रॉकेट के जरिए आवाज़ से पांच गुना ज्यादा गति के साथ अंतरिक्ष में भेजा गया। स्पेस शटल वापस लौट कर बंगाल की खाड़ी में एक वर्चुअल रनवे पर समुद्र में लैंड करेगा। अभी तक अमेरिका ही ऐसी तकनीक का सफलतापूर्वक इस्तेमाल करता रहा है। हालांकि अब अमेरिका की ओर से स्पेस शटल प्रोग्राम को बंद कर दिया गया है।
अमेरिकी अंतरिक्ष यान की तरह दिखने वाले डबल डेल्टा पंखों वाले यान को एक स्केल मॉडल के रूप में प्रयोग के लिए इस्तेमाल किया गया, जो अपने अंतिम संस्करण से करीब छह गुना छोटा है। 6.5 मीटर लंबे ‘विमान’ जैसे दिखने वाले यान का वजन 1.75 टन है। 600 इंजीनियर बीते पांच सालों से इस सपने को साकार करने में जुटे थे। ये भारत का स्पेस शटल यानी कि रियूजेबल लॉन्च व्हेकिल है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुख किरण कुमार ने प्रायोगिक आरएलवी के महत्व को समझाते हुए कहा कि यह मूल रूप से अंतरिक्ष में बुनियादी संरचना के निर्माण का खर्च कम करने की दिशा में भारत द्वारा की जा रही एक कोशिश है। उन्होंने कहा कि अगर दोबारा इस्तेमाल किए जा सकने वाले रॉकेट वास्तविकता का रूप ले लें, तो अंतरिक्ष तक पहुंच का खर्च दस गुना कम हो सकता है। अभी तक केवल अमेरिका और रूस के ही स्पेस शटल सफल रहे हैं।
आरएलवी प्रौद्योगिकी प्रदर्शन (आरएलवी-टीडी) का मुख्य लक्ष्य पृथ्वी की कक्षा में उपग्रह पहुंचाना और फिर वायुमंडल में दोबारा प्रवेश करना है, यान को एक ठोस रॉकेट मोटर से ले जाया जाएगा।
आरएलवी-टीडी को दोबारा प्रयोग में लाए जा सकने वाले रॉकेट के विकास की दिशा में ‘एक बहुत प्रारंभिक कदम’ बताया जा रहा है। इसके अंतिम संस्करण के निर्माण में दस से 15 साल लगने की संभावना है। इसरो पहली बार पंखों वाले उड़ान यान का प्रक्षेपण कर रहा है। सरकार ने आरएलवी-टीडी परियोजना में 95 करोड़ का निवेश किया है।