डॉक्टर को भगवान का दूसरा रूप कहा जाता है, लेकिन पिछले कुछ सालों से डॉक्टरों ने अपने इस सेवा धर्म को व्यवसाय का रूप दे दिया है. ऐसे में आने वाले नए डॉक्टरों में मरीजों के प्रति सेवा भाव जागृत हो, इसलिए अब एमबीबीएस के बाद पोस्ट ग्रेजुएशन करनेवाले डॉक्टरों को आवश्यक रूप से अपने जिले के अस्पतालों में तीन साल तक मरीजों की सेवा करनी होगी. इससे डॉक्टरों में मरीजों के प्रति सेवा भाव जागृत होगा और शासकीय स्तर पर डॉक्टरों की कमी को भी पूरा किया जा सकेगा.
तीन माह की सेवा के बाद ही अंतिम वर्ष की परीक्षा की अनुमति
देश के ज्यादातर हिस्सों में डॉक्टरों की कमी को दूर करने के लिए अब एमबीबीएस करने के बाद पोस्ट ग्रेजुएशन (पीजी) करने वाले सभी छात्रों को पढ़ाई के साथ जिला अस्पताल में तीन माह तक सेवा देना अनिवार्य होगा. इसके बाद ही उन्हें अंतिम वर्ष की परीक्षा में बैठने के योग्य माना जाएगा. मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के बोर्ड ऑफ गर्वनेंस ने यह फैसला लेते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा था, जिसे मंजूरी मिल गई है.
डीआरपी दिया गया नाम
नए आदेशों के अनुसार, शैक्षणिक वर्ष 2020-21 से ही इन नए नियमों को लागू कर दिया गया है. एमडी या एमएस करने वाले सभी स्नातकोत्तर विद्यार्थी तीन महीने के लिए जिला अस्पताल या किसी जिला स्वास्थ्य केंद्र में सेवाएं देंगे. यह रोटेशन तीसरे, चौथे और पांचवें सेमेस्टर में शामिल किया गया है. इसे जिला रेजीडेंसी कार्यक्रम (डीआरपी) नाम दिया गया है. साथ ही प्रशिक्षण हासिल कर रहे स्नातकोत्तर चिकित्सा छात्र को ‘जिला रेजीडेंट’ के नाम से जाना जाएगा. जिला अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी को दूर करने के लिए यह बदलाव किया गया है. भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम 1956 के तहत सभी मेडिकल कॉलेजों के लिए अनिवार्य होगा.
वरिष्ठ डॉक्टरों की निगरानी में करेंगे काम
नए बदलाव के तहत जिला अस्पताल में तैनात होने के बाद मेडिकल छात्र को प्रशिक्षण के लिए वरिष्ठ डॉक्टर की निगरानी में रखा जाएगा. छात्र को ओपीडी, आपातकालीन, आईपीडी के अलावा रात में भी ड्यूटी देनी होगी. इस रोटेशन के बारे में संबंधित जिला अस्पताल को भी पहले से मेडिकल छात्रों की सूची उपलब्ध हो जाएगी ताकि उन्हें यह पता रहे कि कौन कौन छात्र नए रोटेशन के तहत उनके यहां सेवाएं देने वाले हैं.