कलयुग के ‘भक्त’ और ‘भगवान’ ( भाग-2)

जटाशंकर पाण्डेय । Navpravah.com

क्या है ‘डेरा सच्चा सौदा’-

डेरा सच्चा सौदा बाबा राम रहीम द्वारा बनाई गई एक आश्रम व्यवस्था है। बालिका ‘हनी’ ‘प्रीत’ के ‘गुरु’ ‘मीत’ राम रहीम ने अपने आश्रम का नाम पूर्ण मनो वैज्ञानिक शोध से रखा है। ‘डेरा’ का मतलब होता है एक वैकल्पिक व्यवस्था, जहाँ इंसान कुछ समय के लिए रुक सकता है। वहाँ सब सुविधा होती है, लेकिन वहाँ बस आप कुछ समय तक रह सकते हैं, कायम रूप से नहीं। यह डेरा बाबा राम रहीम के हिसाब से ‘सच्चा’ भी है, कोई ऑन पेपर बनाई गई फर्जी कंपनी नहीं, जो फर्जी रूप से कागज पर खुली है ,जो क्रय विक्रय के बिना ही बैलेंस शीट बना रही है। सारी व्यवस्था कागज पर, और पैसा गुल। तीसरा शब्द है ‘सौदा’। यह एक ऐसी व्यवस्था है जहाँ सौदेबाजी होती है। मतलब यह एक व्यापारिक स्थल, जहाँ सौदा होता है, यह सौदा सस्ता-महँगा हो सकता है। अब तक इस राम रहीम काण्ड के बाद हुई हिंसा में जितने लोग मारे गए हैं, उनके परिवार के लिए यह सौदा अत्यधिक महंगा ही पड़ा है।

आइये अब करें बाबा शब्द पर रिसर्च। ‘बाबा’ और ‘दादा’ दोनो हिंदी शब्दकोश के समान दर्जे वाले शब्द हैं, लेकिन दोनों शब्दों के कुछ और अर्थ भी हैं। जहाँ दादा पिता के पिता को कहते हैं, वहीं दादा पूरे इलाके के पिता को भी कहते हैं, लेकिन एक दादा से मिलता है आपको प्यार, और दूसरे से मिलती है मार। ऐसे ही, बाबा पिता को कहते हैं, लेकिन बाबा कई धार्मिक गुटों के सार्वजनिक पिता को भी कहते हैं, जैसे बाबा राम रहीम,आशाराम बापू और बाबा राम पाल आदि। ये गिनती में अनेक हैं। इन लोगों ने अपने नाम के साथ ‘राम’ लगाया है। इस नाम का सदुपयोग इन लोगों ने अपने हित के लिए बख़ूबी किया है। इन लोगों ने पवित्र राम नाम को जबरदस्ती गटर में ढकेल दिया है।

अब आपको समझते हैं बाबा और दादा के बीच का अंतर। अंतर यह है कि बाबा प्रेम से गला काटते हैं और दादा जबरदस्ती। जबरदस्ती कटने से तो लोग बचना भी चाहते हैं, उससे बचने के लिए लोग कुछ उपाय भी करते हैं। सरकार भी दादाओं से सुरक्षा देने के लिए वचनबद्ध होती है, लेकिन इन मीठी छुरी रुपी बाबाओं से बचने का कोई उपाय नहीं है। हाल में ही कई टीवी चैनलों ने दिखाया था कि बाबा आशाराम से आशीर्वाद लेने के लिए पूरे भारत वर्ष से तमाम राजनीतिक हस्तियां आती थीं। कौन-कौन से धन कुबेर नहीं आए होंगे! इसका एक कारण यह है कि राजनीतिज्ञों को बाबा और दादा के आशीर्वाद से सत्ता हासिल करने में सहयोग मिलता है और धन कुबेरों को उनके प्रोडक्ट और व्यापार की शुद्धता और विश्वास को सपोर्ट मिलता है, लेकिन आज वही आशाराम ‘बापू’ सबके लिए अपराधी आशा राम हो गए हैं। आखिर बनावटी कलर कब तक चलेगा! प्राकृतिक कलर कभी बदलता नहीं लेकिन बनावटी रंग से रंगा प्रोडक्ट कुछ समय बाद बदरंग हो ही जाता है।

कलमी पेड़ का नाम तो आप जानते ही होंगे। इस पेंड को बनाने की एक विधि होती है। एक पेड़ का तना और जड़ दूसरे पौधे की टहनी से जोड़ दिया जाता है, इससे दोनो पोधो का गुण लेकर तीसरे गुण वाला पौधा तैयार हो जाता है। ऐसे ही इन बाबाओं का प्राकृतिक गुण और कृत्रिम गुण मिलाकर तीसरा पौधा तैयार हुआ है। इनकी जड़ों से इन्हें जो पोषक तत्त्व मिलता है, वह दूषित रहता है ,जो पत्ते और टहनियां दिखाई देते हैं, वो आकर्षक तो होते हैं, लेकिन फल विषैले होते हैं। अंधविश्वास में पड़ा इंसान इन फलों के साथ साथ ‘धोखे’ को खाता है और परिणाम आपके सामने है।

लोगों की आस्था को चूना लगाने वाले आज के ये कथित साधू, महात्मा, संत, मुनि और भिक्षु सिर्फ कुछ चमत्कार, जादू-टोना दिखा कर जनता को मोह लेते हैं और फिर उसी जनता का शोषण करते हैं, जिसने इन्हें सर आँखों पर बिठाया और खुद राजसुख भोगते हैं। इनका उद्देश्य सिर्फ जनता को मुख्य धारा से अलग करना,समाज को तोड़ कर एक अलग सम्प्रदाय बनाना,लोगों के दिलों में एक दूसरे के प्रति नफरत पैदा करना और परदे के पीछे खुद राजसुख भोगना होता है, लेकिन इसमें इनकी गलती कम, हमारी गलती ज्यादा होती है, क्योंकि इनके चमत्कार को अंध श्रद्धा का फूल चढ़ाना ,अपने आप को उनको समर्पित करना, यह गलती तो हमारी ही है।

दरअसल इनके अंदर कुछ जादू तो होता ही है, वो है वाकपटुता का जादू और इसी जादू के सहारे ये मजबूर और दुखी व्यक्तियों को अपने झांसे में लेते हैं। लोभी और लालची व्यक्तियों को अपना शिकार बनाते हैं। ये लोभी और लालची लोगों को बताएंगे कि बिना श्रम किए इनका धंधा कैसे फूलेगा-फलेगा। ये बताएँगे कि दुखी का दुख कैसे दूर होगा, ऐसे लोगों को ये आसानी से अपने प्रभाव में ले लेते हैं।

यह सत्य है कि ‘धर्म’ हर इंसान के अंदर होता है, जरूरत उसे पहचानने और जगाने की होती है। हम तो मात्र बाहरी धर्मों, हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन में उलझे रहते हैं, लेकिन ये धर्म नहीं हैं, ये समाज के कुछ तत्वों द्वारा लोगों को लोगों से तोड़ कर बनाए गए संप्रदाय हैं। धर्म तो वह शाश्वत धारा है, जो इंसान के अंदर सतत प्रवाहित होती रहती है और यह धर्म इंसान को इंसान से जोड़ने का काम करता है ,यह प्रेम पैदा करता है,धर्म मनुष्य का ‘स्व’भाव है। जो इंसान अपने ‘स्व’भाव को पहचान ले और ‘स्व’भाव में स्थिर हो जाए, जीवन में उसे और कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ती।

क्या कारण है कि लोग भगवान से ज्यादा भगवान के चमचों के पीछे भागते हैं? इसका एक मात्र कारण यही है कि लोगों का परमात्मा में विश्वास नहीं है। जी हां! चौकिये मत। जिसे हम परमात्मा के प्रति विश्वास कहते हैं, वह विश्वास नहीं, वह मात्र विश्वास का भ्रम है, क्योंकि अगर विश्वास होता, तो यह होता कि परमात्मा कभी किसी का बुरा नहीं कर सकता। अगर परमात्मा प्रसाद चढ़ाने वाले,हार-फूल, धूप-बत्ती चढ़ाने वाले का भला करे और बाकी लोगों को प्रताड़ित करे, तो परमात्मा और दानव में कोई अंतर नहीं है। मानव मात्र भटका हुआ है। गलत राह पर चल रहा है। उसके द्वारा किए गए कर्मो से उसकी खुद की आत्मा संतुष्ट नहीं होती है। इन कर्मों के साथ इंसान परमात्मा के सामने जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। इसलिए वह दलालों के माध्यम से परमात्मा को पटाना चाहता है और यही उसकी बड़ी भूल होती है। अपने मन को साफ कर यदि हम खुद परमात्मा के सामने जाएं, तो हमें किसी खोटे दलाल की जरूरत न पड़े। ये तथाकथित ‘बाबा’ , जो खुद माया, मद में डूबे पड़े हैं, आपको क्या ईश्वर तक ले जायेंगे! सच तो यह है कि हमारा भूत जो भी रहा हो, यदि हमें अपने कर्मों का एहसास हो जाए, तो परमात्मा हमें खुद बखुद गले लगाने को लालायित है। हम अपनी आस्था, श्रध्दा, भक्ति से परमात्मा को पा सकते हैं, किसी ढोंगी बाबा, साधू, साध्वी के जाल में फंसे बिना सद्गति को प्राप्त कर सकते हैं। बस समझ का फेर है,राम और रहीम का नहीं। (जारी…)

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