नृपेंद्र मौर्य | navpravah.com
नई दिल्ली | हिमाचल प्रदेश में आज बड़ा सियासी उलटफेर देखने को मिल सकता है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को सीएम कुर्सी छोड़नी पड़ सकती हैं। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इस बात को लेकर राहुल गांधी से बात की हैं। बताया जा रहा है कि दोनों के बीच मुख्यमंत्री बदलने को लेकर बात हुई है। सूत्रों ने ये भी बताया है कि अगर कांग्रेस के 6 बागी विधायक नहीं लौटते हैं, तो स्पीकर उनकी सदस्यता भी रद्द कर सकते हैं।
हिमाचल में चल रही राजनीतिक उठापटक के बीच नेता प्रतिपक्ष और बीजेपी के वरिष्ठ नेता जयराम ठाकुर ने कहा कि कांग्रेस सरकार सत्ता में रहने के लिए नैतिक आधार खो चुकी है। विधायक दल की हमारी बैठक नियमित रूप से होती रहेगी। उन्होंने कहा आगे कहा कि डिवीजन के लिए स्पीकर साहब को इजाजत देना चाहिए। मार्शल के जरिए विधायकों के साथ दुर्व्यवहार किया गया। इस घटना के बारे में जानकारी देने के लिए हम लोग राजभवन जा रहे हैं।
कैसे शुरू हुआ राजनीतिक संकट?
दरअसल, हिमाचल प्रदेश के पास राज्यसभा में मात्र एक सीट है, जिसपर बीजेपी की जीत हुई और अचरज की बात ये है कि हिमाचल में कांग्रेस सत्ता में है। बीजेपी की तरफ से हर्ष महाजन मैदान में थे और कांग्रेस ने अभिषेक मनु सिंघवी को मैदान में उतारा था। माना जा रहा था कि कांग्रेस के पास संख्याबल होने की वजह से अभिषेक मनु सिंघवी की जीत तय है। हालांकि, बीजेपी उम्मीदवार ने सभी को हैरान करते हुए इकलौती राज्यसभा सीट जीत ली।
राज्यसभा चुनाव के दौरान दोनों उम्मीदवारों को 34-34 मत मिले, जिसके बाद लकी ड्रॉ के जरिए बीजेपी उम्मीदवार हर्ष महाजन को विजेता घोषित किया गया। इस बात की जानकारी सामने निकलकर आई कि कांग्रेस के छह विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की है। ऐसा इसलिए क्योंकि 68 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 40 विधायक हैं। राज्य में बीजेपी के 25 विधायक हैं और तीन विधायक निर्दलीय हैं। इस तरह अगर निर्दलीय और बीजेपी विधायकों की संख्या जोड़ी जाए तो वह 28 होती है।
बीजेपी को 34 वोट मिले, जिसका मतलब हुआ कि अगर निर्दलियों ने भी बीजेपी उम्मीदवार को वोट किया, तब भी उन्हें कांग्रेस के छह विधायकों का वोट मिला। इस तरह चर्चा शुरू हो गई कि राज्य के विधायक मुख्यमंत्री से नाराज चल रहे हैं। कहा ये भी जाने लगा कि अब बीजेपी सुखविंदर सिंह सुक्खू की 14 महीने पुरानी सरकारी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकती है, जिससे अब सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार और उनकी कुर्सी संकट में हैं।