कोमल झा | Navpravah.com
नई दिल्ली : देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट में आज तीन तलाक के मुद्दे पर सुनवाई चल रही है. प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ सात याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. दिलचस्प बात ये है कि इस बेंच में अलग-अलग धर्मों से जुड़े जजों को रखा गया है मसलन सिख, ईसाई, पारसी, हिंदू और मुस्लिम जज इस संविधान पीठ का हिस्सा हैं इनमें पांच याचिकायें मुस्लिम महिलाओं ने दायर की हैं.
उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) ने मुसलमानों में ‘तीन तलाक’, ‘निकाह हलाला’ और बहुपत्नी प्रथा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू कर दी. यह सुनवाई लगातार 10 दिनों तक चलेगी. संविधान पीठ इस मुद्दे पर सुनवाई कर रही है. पीठ यह देखेगी कि क्या यह धर्म का मामला है. अगर यह देखा गया कि यह धर्म का मामला है तो कोर्ट इसमें दखल नहीं देगी. लेकिन अगर यह धर्म का मामला नहीं निकला तो सुनवाई आगे चलती रहेगीतीन तलाक से मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है या नहीं. इस पर कोर्ट देखेगी. बहुविवाह पर कोर्ट सुनवाई नहीं करेगा. सीजेआई ने साफ कहा कि पहले तीन तलाक का मुद्दा ही देखा जाएगा. इस सुनवाई में पहले तीन दिन चुनौती देने वालों को मौका मिलेगा. फिर तीन दिन डिफेंस वालों को मौका मिलेगा.
सलमान खुर्शीद ने कोर्ट में कहा : ट्रिपल तलाक कोई मुद्दा ही नहीं है. क्योंकि तलाक से पहले पति और पत्नी के बीच सुलह की कोशिश जरूरी है. अगर सुलह की कोशिश नहीं हुई तो तलाक क्या वैध नहीं माना जा सकता. एक बार में तीन तलाक नहीं बल्कि ये प्रक्रिया तीन महीने की होती है. जस्टिस रोहिंग्टन ने खुर्शीद से पूछा, क्या तलाक से पहले सुलह की कोशिश की बात कहीं कोडिफाइड है. खुर्शीद ने कहा – नहीं.
पर्सनल ला बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने भी खुर्शीद का समर्थन किया कि ट्रिपल तलाक कोई मुद्दा नहीं है. खुर्शीद निजी तौर पर कोर्ट की मदद कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा – ये पर्सनल ला क्या है? ये क्या इसका मतलब शरियत है या कुछ और?
पर्सनल ला बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा, ये पर्सनल ला का मामला है. सरकार तो कानून बना सकती है. लेकिन कोर्ट को इसमें दखल नहीं देना चाहिए. जस्टिस कूरियन ने कहा, ये मामला मौलिक अधिकारों से भी जुड़ा है.
जस्टिस रोहिंग्टन ने केंद्र से पूछा, इस मुद्दे पर आपका क्या स्टैंड है? केंद्र की ओर से एएसजी पिंकी आनंद ने कहा, सरकार याचिकाकर्ता के समर्थन में है कि ट्रिपल तलाक असंवैधानिक है. बहुत सारे देश इसे खत्म कर चुके हैं.
सुप्रीम कोर्ट फिलहाल मुसलमानों में तीन तलाक और निकाह हलाला पर ही सुनवाई करेगा. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि बहुपत्नी प्रथा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर पीठ सुनवाई नहीं करेगा. इनमें पांच याचिकायें मुस्लिम महिलाओं ने दायर की हैं जिनमें मुस्लिम समुदाय में प्रचलित तीन तलाक की प्रथा को चुनौती देते हुए इसे असंवैधानिक बताया गया है. सुनवाई कर रही पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन, न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर शामिल हैं.
संविधान पीठ के सदस्यों में सिख, ईसाई, पारसी, हिन्दू और मुस्लिम सहित विभिन्न धार्मिक समुदाय से हैं. इस मामले की सुनवाई इसलिए अधिक महत्वपूर्ण हो गयी है. क्योंकि शीर्ष अदालत ने ग्रीष्मावकाश के दौरान इस पर विचार करने का निश्चय किया और उसने यहां तक सुझाव दिया कि वह शनिवार और रविवार को भी बैठ सकती हैं. ताकि इस मामले में उठे संवेदनशील मुद्दों पर शीघ्रता से निर्णय किया जा सके.
अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी इस मामले में संविधान पीठ की मदद करेंगे और यह भी देखेंगे कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में अदालत किस सीमा तक हस्तक्षेप कर सकता हैं. शीर्ष अदालत ने स्वत: ही इस सवाल का संज्ञान लिया था कि क्या महिलाएं तलाक अथवा उनके पतियों द्वारा दूसरी शादी के कारण लैंगिक पक्षपात का शिकार होती हैं. शीर्ष अदालत इस मसले पर विचार करके मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुपत्नी प्रथा की संवैधानिकता और वैधता पर अपना सुविचारित निर्णय देगी.
इस मामले में केंद्र सरकार की ओर से हलफनामा दायर किया गया जिसमें कहा गया है. कि ट्रिपल तलाक के प्रावधान को संविधान के तहत दिए गए समानता के अधिकार और भेदभाव के खिलाफ अधिकार के संदर्भ में देखा जाना चाहिए. केंद्र ने कहा. कि लैंगिक समानता और महिलाओं के मान सम्मान के साथ समझौता नहीं हो सकता. केंद्र सरकार ने कहा है. कि भारत जैसे सेक्युलर देश में महिला को जो संविधान में अधिकार दिया गया है. उससे वंचित नहीं किया जा सकता. तमाम मुस्लिम देशों सहित पाकिस्तान के कानून का भी केंद्र ने हवाला दिया जिसमें तलाक के कानून को लेकर रिफॉर्म हुआ है. और तलाक से लेकर बहुविवाह को रेग्युलेट करने के लिए कानून बनाया गया है.