पीयूष चिलवाल । Navpravah.com
टिकट बेचने और कार्यकर्ताओं से पैसे उगाही जैसे मामलों से घिरी रहने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती कार्यकर्ताओं से पैसे वसूलने के मामले में बैकफुट पर नज़र आ रही हैं। देखा जाए तो माया ने “माया मोह त्यागने का फैसला कर लिया है। पार्टी के शीर्ष पदाधिकारियों ने कहा है कि अब पार्टी टारगेट फिक्स करके पैसे नहीं मांगेगी, बल्कि स्वेच्छा से देने वालों से पार्टी फंड, पब्लिक मीटिंग और जन्मदिन के आयोजन के लिए ही पैसा लिया जाएगा।
बीएसपी से बाहर किए गए नसीमुद्दीन कहते हैं कि बीएसपी ने हर विधानसभा के संगठन से 22 लाख रूपये इकट्ठा करने की बात कही है। वहीं कुछ दिन पहले ही इंद्रजीत सरोज ने मायावती को पैसों की देवी तक कह दिया था। पार्टी में हर जगह इसका विरोध हो रहा है। यहां तक की मेरठ की मंडलीय बैठक में पार्टी में पैसा उगाही को लेकर दो राय हो गयी।
दो दिन पूर्व बीएसपी संगठन की मीटिंग में पैसा न लेने का फरमान सुनाया गया है। जिसके बाद यह माना जा रहा है कि फिलहाल टारगेट फिक्स कर धन इकट्ठा नहीं किया जाएगा। वहीं पार्टी के अंदर ही यह मांग उठी है कि पैसा एकत्रित करने के बजाए पार्टी के संगठनात्मक ढ़ांचे को मजबूत करना चाहिए। कुछ की मांग यह भी है कि विधानसभा चुनाव लड़ चुके प्रत्याशियों से भी पैसे न मांगे जाए और नगर निकाय चुनाव में लड़ना चाह रहे प्रत्याशियों से भी पार्टी फंड में पैसा न लें।
ऐसा नहीं है कि मायावती या उनकी पार्टी पर धन संबंधी यह पहला आरोप लग रहा हो, इससे पहले नोटबंदी के दौरान बसपा के दो खाते सीज़ कर दिए गए थे और लगातार विधानसभा और लोकसभा चुनाव में उनपर टिकट बेचने के आरोप उन पर लगते रहते हैं।