शिखा पाण्डेय,
आदिवासियों और शोषित वर्ग की एक आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गई। महान लेखिका महाश्वेता देवी (90) का गुरुवार दाेपहर 3.16 बजे एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। शनिवार रात उन्हें दिल का दौरा पड़ा। तब से स्थिति लगातार बिगड़ती गयी। महाश्वेता के निधन से समूचा साहित्यिक और सांस्कृतिक जगत शोकाकुल है।
महाश्वेता का जन्म ढाका के संपन्न परिवार में हुआ था। पिता मनीष घटक प्रख्यात कवि थे। मां धारित्री देवी भी साहित्य की गंभीर अध्येता थीं। मशहूर रंगकर्मी विजन भट्टाचार्य से उनकी पहली शादी हुई थी। महाश्वेता एक अद्भुत विद्रोही और मानवीय भावनाओं से परिपूर्ण लेखिका थीं। केवल अपने साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से ही नहीं, वरन अपना पूरा जीवन शोषित, पीड़ित, पिछड़े वर्ग के लोधा संप्रदाय के कल्याण और विकास के लिए उत्सर्ग किया था।
महाश्वेता के पिता मनीष घटक कवि और उपन्यासकार थे। उन्होंने अपने पूरे जीवन को एक लेखक, साहित्यकार और आंदोलनधर्मी के रूप में विकसित किया था। विद्रोह और अांदोलन उनके साहित्य के साथ उनके जीवन में भी परिलक्षित होता है।
महाश्वेता देवी बहुत ही कम उम्र से ही साहित्य और लेखन जगत से जुड़ गयी थीं। उनकी पहली रचना ‘झांसीर रानी’ को जिस ढंग से लिखा था, उसमें इतिहास के साथ-साथ नाटकीयता भी थी। उन्होंने लोकगीत, लोककथा और आम लोगों के गानों को अपने साहित्य में स्थान दिया था। उनका पारिवारिक जीवन बहुत ज्यादा सुखमय नहीं रहा था। पहले विजन भट्टाचार्य और फिर बाद में असीत गुप्त के साथ उनका वैवाहिक जीवन ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाया था। मगर उनके निजी जीवन ने उनके लेखन को कभी प्रभावित नहीं किया।
महाश्वेता देवी की प्रमुख रचनाओं में अग्निगर्भ, जंगल के दावेदार, हजार चौरासी की मां, माहेश्वर आदि हैं। इनकी लगभग 20 कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं। महाश्वेता देवी को 1979 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1986 में पद्मश्री, 1996 में ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1997 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार और 2006 में पद्मविभूषण मिला।