अमित द्विवेदी@नवप्रवाह.कॉम,
फ़िल्म समीक्षा– फ़िल्म मांझी
निर्देशक– केतन मेहता
मुख्य कलाकार– नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी, राधिका आप्टे,तिग्मांशु धुलिया, गौरव द्विवेदी
रेटिंग: 2. 5 / 5
केतन मेहता की रंगरसिया देखने के बाद उनसे लगभग उतनी ही समृद्ध फ़िल्म की अपेक्षा की जाती है। और हम तब और अपेक्षित होते हैं जब उनकी फ़िल्म में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी जैसा मझा हुआ कलाकार हो। लेकिन केतन फ़िल्म मांझी को मजधार से बाहर निकालते नज़र नहीं आए। हाँ, नवाज़ अपने ज़बरदस्त अभिनय से हंसाने और भावुक करने में सफल ज़रूर हुए हैं।
फ़िल्म सत्यकथा पर आधारित है। दशरथ मांझी के जीवन का अल्हड़पन अचानक से तब गाम्भीर्य और जूनून में बदल जाता है, जब पहाड़ से गिर कर उसकी पत्नी फगुनिया का इंतकाल हो जाता है। उसके गाँव से कस्बे के बीच का ऊँचा पहाड़ जिसे पार करने में उसे काफी समय लग जाता है और अस्पताल पहुँचने में देर हो जाती है, जो बन जाता है फगुनिया के मौत का कारण। पत्नी के वियोग में दुखी मांझी पहाड़ को काटकर एक नया रास्ता बनाने का प्रण करता है, जिसे वह पूरा भी करता है। तमाम दुनियावी दिक्कतों को सहते हुए मांझी अपनी ज़िद और प्रण को यथार्थ में बदल देता है। एक नया रास्ता तैयार करता है। यही संघर्ष यात्रा है दशरथ मांझी का, जिन्होंने असल ज़िन्दगी में भी दिया देश को प्रेरणा।
भाषा को लेकर केतन मेहता चूक गए। मुखिया के किरदार में तिग्मांशु जंचते तो बहुत हैं लेकिन डायलॉग राइटर ने यह ध्यान नहीं दिया कि तिग्मांशु भोजपुरी की जगह अवधी के शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं। तिग्मांशु ने इलाहाबादी का बेधड़क इस्तेमाल किया है। पत्रकार के रूप में गौरव ने सधा अभिनय किया। राधिका भी निराश नहीं करती, लेकिन फ़िल्म शानदार और ज़बरदस्त नहीं लगी।
कई जगह पर तकनीकी कमज़ोरी नज़र आई है। पटकथा और भी सशक्त हो सकता था। निसंदेह केतन मेहता इसे और भी बेहतर दिशा दे सकते थे।
कलाकारों के बेहतरीन अभिनय के लिए यह फ़िल्म एक बार अवश्य देखनी चाहिए।