कोरोना, उत्तर प्रदेश और चुनाव, किसका चलेगा जोर?

Uttar Pradesh Legislative Assembly election

Uttar Pradesh Assembly Elections : बीते दिनों किसी मित्र ने सोशल मीडिया के माध्यम से एक पोस्ट शेयर किया था जिसमें लिखा था कि मुबारक हों कोरोना चंद दिनों में ही स्नातक हों जायेंगा और उम्मीद हैं कि अपनी डिग्री प्राप्त करके शायद अपने स्थान वापस लौट जायें.

इसके प्रतिउत्तर में किसी ने लिखा अच्छी बात है कि डिग्री लेकर वापिस लौट जायें क्योंकि अगर और पढ़ने की इच्छा जागृत हो गयी और सिविल सर्विसेज की तैयारियों में जुट गया तों बात कुछ और होंगी.. हालांकि यह कथन हास्यास्पद था पर संदेश और पीङा साफ साफ झलक रही थी यहां.

संपूर्ण विश्व इस वैश्विक महामारी कें चपेट में अपने आप कों असहाय महसूस कर रहा है आर्थिक, शारीरिक एवं मानसिक पीङा के इस दौर में जहां जनता अपने बहिखाता कों सुदृढ़ करने में प्रयास में जुटी हुई हैं वहीं जनता के सेवक इसें चुनावी मुद्दा समझ अपने अस्तित्व कों बचाने में लगे हुए हैं नेता नगरी में चुनावी बिगुल बज चुका हैं गद्दी की लालसा प्रबुद्ध हों चुकी हैं शह मात के इस खेल में पक्ष विपक्ष एकजुट हो कर अपनी भूमिका मजबूत करने में जुटे हैं वहीं जनता प्यादें की अहम भूमिका निभाने में मजबूर हों चुकी हैं और चुनाव आयोग कुशल रेफरी की तरह कोरोना मुक्त चुनाव कराने में कटिबद्ध हैं.

बीते 8 जनवरी को भारतीय चुनाव आयोग ने प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से बयान जारी कर कहा कि हम आगामी 10 फरवरी से 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव कराने जा रहें हैं जिसकी मतगणना 10 मार्च को होगी. राज्यों के नाम हैं पंजाब, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर और उत्तर प्रदेश जनता की उम्मीदों के अनुरूप फैसला निश्चित था यह आंकलन कोरोना काल में हुए चुनावों के आधार पर था.. चुनावी रणभेरी बिगुल बजने के बाद राजनीतिक एकत्रीकरण मजबूत हुई एवं जनता के प्रति समर्पित वियोग कोरोना की करुणा सत्ता सुख की लालसा में लुप्त सी हों गई.

चुनावी घोषणा एक राज्य की वजह से चर्चा का केंद्र बना हुआ हैं और वहां भी चुनाव होने निर्धारित हैं उसका कारण यह है कि जिस पार्टी ने भी यहां अपना किला फतह किया उसके लिए दिल्ली की दुरी आधी से भी कम हों जायेंगी जी हां हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश की जिसने सदैव ही भारतीय राजनीति में अपनी निर्णायक भूमिका निभाई हैं.

अगर बात करें उत्तर प्रदेश के विधानसभा सीटों की तों यहां कुल सीटों की संख्या 403 हैं और यहां 7 चरणों में वोटिंग होनी निर्धारित हैं । जिसकी शुरुआत 10 फरवरी से होगी और चुनाव के नतीजे 10 मार्च को आनें हैं ।

छोटे बङें सभी राजनीतिक दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंकनें आरंभ कर दियें हैं आरोप प्रत्यारोप का दौर निरंतर चालू हैं राजनेता अपने बयानबाजी से एक-दूसरे पर निशाना साधने में जुट गयें हैं सभी दलों ने अपने चुनावी वादों का पोस्टर बांटना भी आरंभ कर दिया है.

अगर बात वर्तमान सत्तारूढ़ पार्टी की करें तों वहां अभी भारतीय जनता पार्टी की सरकार हैं और मुखिया हैं योगी आदित्यनाथ अगर भाजपा की बात करें तों वह इसे 2024 के आम चुनाव के तौर पर देख रहीं हैं उनके मुताबिक यह आगामी लोकसभा चुनाव कें सेमीफाइनल के तौर पर देख रहें हैं शायद इसलिए इनके प्रवक्ता यह कहने से भी पीछे नहीं हट रहें हैं कि साल 2022 में ‘योगी को जिताना’ है, क्योंकि 2024 में फिर से ‘मोदी को लाना’ है हालांकि यह वाक्य अपनी सिद्धता कों सफल करने में कितनी पकड़ रखतीं हैं इसकी सच्चाई तों मतगणना के पश्चात पता चल जायेगी.

हालांकि अगर बात हम पिछले चुनावों की करें तों बीजेपी नेतृत्‍व वालें गठबंधन नें 325 सीटें हासिल कर सरकार बनाई थी हालांकि उस चुनाव में भाजपा ने अपनें मुख्यमंत्री पद का दावेदार की घोषणा पहले नहीं थी बाकी एक तथ्य यह भी हैं कि विगत चुनाव के दौरान केशव प्रसाद मौर्य भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष थे, तो उनसे जुड़े समुदायों को लगा कि वही मुख्यमंत्री बनेंगे, शायद यह भी भाजपा के लिए एक सुनहरा तर्क था लेकिन चुनाव के बाद सिंहासन योगी आदित्यनाथ कों सौंप दिया गया उनके नाम पर मुहर लगने से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समेत सभी हिंदूवादी संगठन उत्साहित थे.

राजनीतिक जानकारों के अनुसार उस वक्त संघ ने हिन्दुत्व के एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए तब योगी का चयन किया था। योगी ने इस कार्य कों सफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। योगी के कार्यकाल में भव्य राम मंदिर निर्माण शुरू हो गया। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का काम भी पूरा कर लिया गया। कई विख्यात बाहुबलियों कों कारागृहों में जगह दिलवाई , इनकाउंटर हुए अलग अलग तरीकों से अपराध पर अंकुश लगाने का भरपूर प्रयास किया गया.. वहीं महंगाई,कोरोना महामारी, बेरोजगारी एवं सबसे बड़ा मुद्दा किसान आंदोलन मतगणना में अहम भूमिका निभा सकते हैं.

साथ ही जात पात अंदरुनी मनमुटाव भी अपनी मौजूदगी अवश्य दर्ज करा सकतीं हैं दल बदल अगरा पिछङा की राजनीति भी धीमी गति से अपनी रफ़्तार बनायें हुए हैं हाल में भाजपा छोड़कर गए स्वामी प्रसाद मौर्य और उनके साथ जाने वाले विधायक अति पिछड़े समुदाय से आते हैं पूर्व में ये सभी विधायक बहुजन समाज पार्टी का साथ दें चुके हैं गणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में मौर्य, शाक्य और सैनी के साथ कुछ और अति पिछड़ी जातियों के आठ फीसदी से ज्यादा वोट माने जाते हैं। साल 2017 के चुनाव में पिछड़े वोटों को एकजुटता ने हीं भाजपा की जीत की भागीदारी निभाई थी। कहा जा रहा है कि मौर्य के भाजपा छोड़ने का असर प्रदेश की करीब सौ सीटों पर पड़ सकता है।वहीं दस फीसदी ब्राह्मणों की नाराज़गी भी भाजपा के लिए चिंतन का सबब है ।

2017 के चुनाव में भाजपा के 312 विधायकों में से 54 ऐसे नेता थे, जिन्होंने चुनाव के वक्त भाजपा का दामन थामा था और कुल मिलाकर पार्टी ने ऐसे 67 लोगों को टिकट दिया था। वहीं चर्चा कें बाजार में एक बयार यह भी हैं कि भाजपा करीब 50 मौजूदा विधायकों के टिकट काट सकती है। हालांकि चुनाव से पहले भागदौड़ का किस्सा बिल्कुल भी नया नहीं है दल बदल पक्ष विपक्ष सारी आम बातें हैं।

अगर बात अब ओपिनियन पोल की करें तों सत्ता के इस संघर्ष में बीजेपी समर्थित पार्टी अपनी दावेदारी मजबूत करती दिखाई दे रही हैं आंकङों के अनुसार आशंका हैं कि 2022 में भाजपा 235 से 250 सीटों पर काबिज हों सकतीं हैं 2017 में यह आंकड़ा 325 था हालांकि सीटों का नुक़सान भाजपा कों भी होता दिख रहा हैं लेकिन चिंता की सुई कांग्रेस और बसपा के लिए भी बराबर अपनी खनक बना रहीं. खैर किसका चलेगा जोर जनता किसके ओर इस चीज कों देखनें के लिए मतगणना की प्रतीक्षा भी जरूरी हैं.

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