आद्य नायिका की व्याप्ति : एक समीक्षा

डॉ० जीतेंद्र पाण्डेय (साहित्य-सम्पादक) | Navpravah.com

युवा कवि अरुणाभ सौरभ की लंबी कविता “आद्य नायिका” अपने समय की बेहतरीन कविताओं में से एक है । यशस्वी संपादक विनोद तिवारी द्वारा संपादित ‘पक्षधर’ में पुस्तिका – 2 के रूप में यह हमारे सामने आती है । 96 पृष्ठों में आबद्ध यह लंबी कविता कालखंड विशेष को रेखांकित करती अपने समय के कठिन प्रश्नों से जूझती है । यहां ‘सुंदर दुनिया’ की उर्वर कल्पना से लैस एक ऐसा संसार निर्मित है जहाँ परस्पर विरोधी शक्तियां किसी महान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए समानांतर चलती-सी प्रतीत होती हैं ।

दीदारगंज की यक्षिणी को कवि ने आद्य नायिका के रूप में बिंबित करते हुए एक संवाद स्थापित किया है । यह संवाद यक्ष-यक्षिणी का है जिसमें यक्षिणी संपूर्ण नारी जाति का प्रतिनिधित्व करती है । यक्ष की भूमिका में कवि स्वयं है । आद्य नायिका के मन में पुरुष-वर्चस्व के प्रति आक्रोश किंतु सृष्टि-सृजन के लिए समर्पण है । इसीलिए यक्षिणी अपनी सहेलियों को चट्टान सी कठोर, पर्वत की तरह अडिग और कविता में सूर्य बनने के लिए कहती है । वह नारी शक्ति का आह्वान करती है- “पर्वत-शिखरों से उन्नत/अपूर्व शक्तियों की स्वामिनी/और मेरा रूप/उसकी सुंदरता में/केवल शक्तियां हैं-अथाह/और आद्य नारियों/इतनी शक्तिशाली हो जाओ
कि/कोई सम्राट न कर पाए/तुमसे छल/कोई ईश्वर तुम्हें/झांसा न दे सके ।”

दूसरी ओर यक्षिणी का विवेकशील आक्रोश खूबसूरत सृष्टि-निर्माण में पुरुष-संग अमरत्व के बीज बोने के लिए भी तैयार हो जाता है-“तुम्हारे अंतस में छिपे/गुणों की पहचान करने/आत्मा की/आंतरिक संरचना में/अमरत्व का बीज देने/तुम्हें जीवन-पथ पर/सदैव संग रखने/तुम्हारे संग/जीने/रहने/और रहकर सदैव/अपने अस्तित्त्व में रहने/तुम्हारे भीतर छिपी स्त्री को/अपने भीतर छिपे पुरुष को/जगाने हेतु/हम संग रहेंगे।” इस प्रकार कवि ने सामाजिक समरसता स्थापित करते हुए वर्तमान स्त्री विमर्श को एक संतुलित मोड़ देने का कार्य किया है ।

नारी की अथाह शक्ति “आद्य नायिका” का मूल स्वर है किंतु साथ ही मगध का रक्तरंजित इतिहास, पर्यावरण-क्षरण की बेचैनी, मरणासन्न मनुष्यता, वैचारिक अभिव्यक्ति पर पहरा आदि ऐसी स्थितियां हैं जो पाटलीपुत्र को पटना में परिवर्तित करती हैं । महत्त्वाकांक्षा और शोण के प्रबल प्रवाह में कला की समझ लुप्त होती जा रही है । सौंदर्य एकाकी जीवन जीने के लिए अभिशप्त और प्रकृति-राग अंतर्यात्रा पर है । युवा कवि को इस प्रकार का मलाल होना कविता के लिए शुभ है । वह लिखता है –“देव परियों/सिखला दो/संसार को/नाट्य और गायन कौशल/कि संसार से/संगीत की आत्मा नष्ट हो चुकी।”

“आद्य नायिका” में व्यंजित ध्वन्यात्मकता और नाद सौंदर्य अनुपम है । भौगोलिक चित्रण कालिदास के ‘मेघदूतम्’ का स्मरण कराता है । नायिका भेद व नायिका का आभ्यंतर सौंदर्य अपनी क्लासिकी गरिमा में बेजोड़ है । शैल्पिक कसाव काव्य-भाषा को मुखर और संप्रेषणीय बनाती है । यहां बिंबों की तारतम्यता है जिससे कविता में रोचकता आद्यंत बनी रहती है । कविता से गुजरते हुए ऐसा लगता है मानो पाठक भारत के वैभवशाली इतिहास के विशेष कालखंड का हिस्सा हो । उत्थान-पतन, भय-सौंदर्य, रति क्रीड़ा, युगल-केलि, युद्ध विभीषिका जैसे दृश्यों से वह पूर्णतः साधारणीकृत हो जाता है ।

कथा-क्रम अबाध है । इसे समझने के लिए संपादक ने ऐतिहासिक तथ्यों और जनश्रुतियों का उल्लेख अपनी प्रस्तावना में किया है । वे लिखते हैं – “पटना के नजदीक दीदारगंज में गंगा नदी के किनारे सन् 1917 ई. में स्त्री की एक कलात्मक प्रस्तर मूर्ति प्राप्त हुई । इसे दीदारगंज की यक्षिणी के नाम से जाना गया । 2017 में इसकी प्राप्ति का शताब्दी वर्ष है । मौर्यकालीन यह मूर्ति अपने नाक-नक्श, अंगों के यथेष्ट सानुपातिक कटाव, उठान और वक्रता, चित्ताकर्षक गढ़न और ओपदार पेंटिंग की अद्भुत कला के लिए मशहूर है ।” कवि अरुणाभ का आत्मकथ्य यक्ष के रूप में सामने आता है । यह विद्रोही नहीं बल्कि शक्ति का आकांक्षी है ताकि दुनिया को बेहतर बनाया जा सके । हाँ, जातियों और धर्मों में बँटी दुनिया से यक्षिणी के साथ पलायन की बात करता है किंतु दूसरे ही क्षण वह पाटलीपुत्र को पटना बनने से बचाने के लिए यक्षिणी का साथ चाहता है ।

कवि अरुणाभ सौरभ

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि कवि अरुणाभ की कविता व्यापक फलक पर प्रतिष्ठित है, इतनी कि जितनी हम तलाश सकें । यहाँ इतिहास की अनुगूँज वर्तमान की धमनियों में दौड़ रही है । शरीर, मन और आत्मा में उतर चुकी है । इसीलिए तो कवि कोलाहल से दूर आद्य नायिका की गोद में मृत्यु की इच्छा प्रकट करता है । अस्तु ।

 

 

आद्य नायिका: अरुणाभ सौरभ कि लम्बी कविता 

प्रकाशक: पक्षधर (डॉ. विनोद तिवारी,नई दिल्ली)

 

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