कलयुग के ‘भक्त’ और ‘भगवान’ (भाग-1)

जटाशंकर पाण्डेय | Navpravah.com

सम्पूर्ण विश्व में भगवान का स्थान सर्वोपरि है। ईश्वर को सर्व समर्थ माना गया है, चाहे वह भगवन के रूप में हों, अल्लाह के रूप में हों या गॉड के रूप में।। राम,कृष्ण, क्राईस्ट, मुहम्मद,महावीर, बुद्ध, नानक आदि उसी सर्व शक्तिमान परमात्मा के अलग-अलग रूप हैं। भगवान, अल्लाह और गॉड ऐसा शब्द हैं, जो निराकार हैं। इस निराकार स्वरूप को समझना सामान्य मानव के वश में नहीं है। उसे साकार रूप की जरूरत होती है, इसलिए साकार रूप में राम, कृष्ण, पैगंबर, ईसा आये, लेकिन खुद ये सब भी किसी न किसी एक परम् शक्ति को मानते थे। रामायण, गीता, वेद, पुराण, कुरान, बाइबल में इसका उल्लेख है कि ये सभी साकार पूजनीय देव किसी न किसी परमशक्ति को मानते थे।

भगवान राम,कृष्ण राजाओं के यहाँ जन्मे थे और राज पाठ संभालते हुए इन लोगों ने अपने भक्तों या अनुयायिओं के बीच भगवान का दर्जा प्राप्त किया और सदियों पूर्व से आज तक पूज्यनीय हैं और सदा रहेंगे। महावीर स्वामी और भगवान बुद्ध भी राजकुमार थे। राजाओं के यहाँ पैदा हुए और बचपन पूर्ण रूप से राज सुख में बिताया। आगे चल कर कहीं न कहीं जीवन मे किसी मोड़ पर इनका उस परम सत्य से साक्षात्कार हुआ और इन लोगों ने अपना राज पाठ छोड़ कर सांसारिक सुखों से सन्यास ले लिया और जगत के कल्याण के लिए अपने आप को समर्पित कर दिया।सांसारिक जीवन जीते हुए ही पैगम्बर मुहम्मद को भी आत्मज्ञान हुआ। इसी तरह की कुछ कथा इसामसीह के बारे में भी प्रचलित है। ये सारी कथाएं जिन लोगों ने सुनी हैं, जो इन साकार देवों को मानते हैं, उन्हें इन साकार स्वरूपों का अनुयायी कहते हैं। बहुत लोग इनको या इनके विचारों को मानते नहीं हैं, लेकिन इनके विरोधी भी नहीं होते हैं। इसलिए ये अधार्मिक नहीं हैं, मात्र उस मत से इनका कुछ लेना देना नहीं होता है।

ये कथाएं लाखों करोड़ों वर्ष पुरानी हैं। उस समय में बड़े बड़े ऋषि महर्षि भी होते थे। मुनि, तपस्वी, साईं, साधु आदि होते थे, जिनका कार्य क्षेत्र मात्र मानव कल्याण होता था। ये लोग बचपन से वैराग्य का जीवन जीते,परिवार और समाज से अलग रह कर भगवद भक्ति,प्राणायाम ध्यान आदि के द्वारा अपनी दैवीय शक्तियों को जगाते थे और इन शक्तियों का उपयोग खुद के तथा मानव उत्थान के लिए करते थे। ऐसा कहा जाता है कि महात्मा बुद्ध के साथ उनके 10000 शिष्य(अनुयायी)उनके पीछे चलते थे। जब बुद्ध ध्यान के लिए बैठते थे, तो वहाँ पक्षियों का कलरव भी शांत हो जाता था और इन दस हजार आत्माओं की सांसें एक स्वर लय में बद्ध हो कर परमात्मा में लीन हो जाती थीं। कल्पना कीजिये  कि कितना अद्भुत होता होगा वह दृश्य और उस जगह का वातावरण।

अब ज़रा आज के, कलयुग के ‘भगवान’, डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक, संत शिरोमणि बाबा राम रहीम के ‘दिव्य’ स्वरूप पर ध्यान केंद्रित करें। इनको एक साध्वी से बलात्कार के मामले में कोर्ट द्वारा 20 साल की सज़ा सुनाई गई है। इनके लाखों ‘भक्त’ अपने ‘भगवान’ द्वारा किये गए प्रशंसनीय कार्य को सही साबित करने के लिए पंजाब, हरियाणा,  दिल्ली के प्रशासन, पुलिस बल, सेना को ठेंगा दिखाते हुए इन प्रान्तों के कई जिलों में तोड़-फोड़, आगजनी, मार-काट मचाए हुए हैं। इस उत्पात में कल तक 38 लोग मर चुके हैं और कई सौ लोग घायल हैं। राज्य प्रशासन, सेना , केंद्र सरकार सब अंगूठे के बल खड़े हैं

एक उस ज़माने के मुनि थे ‘मुनि विश्वामित्र’, जिनके श्राप से इंद्रासन तक हिल जाता था और आज के एक ‘महात्मा’ हैं बाबा राम रहीम, जिन्होंने श्राप दिया, तो पूरे पंजाब-हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश का प्रशाशन हिल गया। राम,कृष्ण, महावीर, बुद्ध,जीसस,मुहम्मद पैगंबर, इन लोगों ने स्वर्ग की, वैकुण्ठ की, इन सब जगहों की चर्चाएं अपने भक्तों से कीं और त्याग,तप, ध्यान, योग आदि के माध्यम से वहाँ जाने की तरकीब बताई। दूसरी ओर आज के युग के बाबा राम रहीम, संत श्री श्री 1008 आशाराम बापू ,श्री श्री 1008 माता राधे माँ आदि मातृ पितृ जनों ने अपने तपस्या के बल पर स्वर्ग ही को धरती पर बुला कर अपने भक्तों को गिफ्ट दे दिया और तमाम बेगुनाहों को सीधा स्वर्ग पहुंचा दिया, तमाम बसे बसाए घरों को श्मशान बना दिया, तमाम लोगों की संपत्ति की अग्नि देव को आहुति दे डाली। सोचिये, एक तब के महर्षि थे दधीचि, जिन्होंने राक्षसों का अंत करने को अपने शरीर की हड्डियां इंद्र को दे दी थीं और एक हैं कलि युग के ये महात्मा। बलात्कारी राम रहीम को कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए जाने पर, अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बलात्कार के आरोपी आशाराम ने कहा कि मुझे और राम रहीम को बाबा रामदेव ने फंसवाया है, ताकि हमारा प्रोडक्ट बाजार में बंद हो जाए और रामदेव का प्रोडक्ट धड़ल्ले के साथ बिके। ये संत हैं या उद्योगपति? इनका उद्देश्य समाज सेवा है या व्यापार, जो ये व्यापारी बन प्रतिद्वंद्व में जुटे हैं!

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