डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
नादीदा थी वो दुनिया उनके लिए, नामालूम था फ़रीक़ेसानी उस जहाँ में कौन होगा और ऐसे अनजान जगह पर, बिना बताए चले जाना, परेशान न कर देगा? वो ख़ूबरू चेहरा, वो ख़़सूसियत, कयोंकर न चाहेगा कोई क़रीब होना? लेकिन आसमानों के उस तरफ़? ऐसी भी क्या जल्दी थी? अभी तो पहला वक़्फ़ा भी न मिला था उस क़रार , उस मुसलसल राबता से, जो हम में, आप में था| ऋषि जी! आप चले गए|
वो रूमानियत, जो पिछली नस्लों से लेकर अब तक तारी रही, वो तबस्सुम, जो कई बार यकीन दिलाता था, कि दुनिया में बहुत मोहब्बत है, अब नावाकिफ़ ही रहेंगी, आने वाली नस्लें, उससे|
पहली दफ़ा, हाथों में गिटार लिए, बेबाक अंदाज़ में, किसी के आंखों की तारीफ़ करते, एक नग़्मा लुटाते, आपको देखा था| दौर बदले, लोग बदले, नहीं बदला तो आपका अंदाज़, जो पलक झपकते ही दिलों पर काबिज़ हो जाता था|
कपूर ख़ानदान की तहज़ीब और मौजूदगी को आपसे मज़बूती थी, आप याद दिलाते थे उस ज़माने की, जब हम में से कई थे ही नहीं| आपकी वजह से हमने जाना कि उस ज़माने में अंदाज़-ए-मोहब्बत क्या था?
एक आशिक़ मिज़ाज सा कोई चाहिए होगा उस जहाँ में भी, नाज़ुकमिज़ाजी से लुत्फ़-ए-इश्क़ बयां करने को, सो आप चले गए|
जता गए आप ऋषि कपूर साहब कि:
” सितारों के आगे, जहाँ और भी है…”