सौम्या केसरवानी | Navpravah.com
पढ़ने का शौक एक अच्छी आदत होती है। अगर आप किताब पढ़ते हैं, तो कई समस्यायें आपको छू भी नहीं पाती हैं। एक तो अकेलापन नहीं लगता है और समय भी अच्छा गुजर जाता है।
एक शोध में कहा गया है कि जो किताब पढ़ते हैं, वह डिप्रेशन के शिकार नही होते हैं। किताब पढ़ने वालों को अवसाद का खतरा भी कम होता है। हालांकि यह कोई भी किताब से नहीं, सनसनी नॉवेल पर आधारित है। इंग्लैंड में हुए शोध में शोधकर्ताओं का कहना है कि जरूरी नहीं कि हर तरह के अवसाद, चिड़चिड़ापन, और घबराहट के मरीजों को दवा की ही जरूरत हो, इनमें से कुछ को अन्य थेरेपी से भी राहत मिल सकती है।
यह शोध के अनुसार, किताब पढ़ने की थेरेपी को बिबलियोथेरेपी कहते हैं। इसी तरह बात करने की थेरेपी को टॉकिंग थेरेपी कहते हैं। बिबलियो थेरेपी, लंबी अवधि में अवसाद के लक्ष्णों को कम करने में प्रभावी है। इटली की यूनीवर्सिटी ऑफ ट्यूरिन के शोध में विशेषज्ञों ने दावा किया है कि क्राइम नॉवेल के जो लोग शौकीन होते हैं, उनमें अवसाद का खतरा कम रहता है। हालांकि यह अवसाद का इलाज तो नहीं है, लेकिन क्राइम नॉवेल पढ़ने वाले लोगों की एंटीडिप्रेसेंट दवाओं पर निर्भरता बहुत कम हो जाती है।
इसी विषय पर डॉ. सागर बताते हैं कि डिप्रेशन के शिकार लोगों को समय पर व्यायाम करना चाहिए और उन्हें काउन्सलिंग जरूर करवानी चाहिए, ताकि मरीज जल्द ही रिकवर हो सके और जरूरत पड़ने पर मरीज को दवा भी लेनी चाहिए। डॉ. सागर के अनुसार, अगर व्यक्ति नियमित रूप से किताबें पढ़ता है, तो उसकी सोचने समझने की शक्ति बढ़ती है। अगर वो जासूसी या क्राइम की किताबें या नावेल पढ़ता है, तो उससे व्यक्ति के दिमाग पर दबाव कम होता है और किताबें हमारी अच्छी दोस्त होती हैं।