New Delhi. तीन तलाक विधेयक पर राज्यसभा में तृणमूल कांग्रेस के कदम से सत्ता पक्ष की मुश्किल आसान हो सकती है। इस विधेयक को लेकर तृणमूल कांग्रेस अपनी रणनीति को अंतिम रूप देने में लगी है। दो विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। एक विधेयक पर मतदान में हिस्सा नहीं लिया जाए तथा दूसरे सदन से बहिर्गमन किया जाए। जैसे ही विधेयक को संसद में चर्चा के लिए लाएगा, पार्टी अपने सांसदों को इसके लिए निर्देशित कर देगी।
तृणमूल से जुड़े सूत्रों का कहना है कि पार्टी इस मामले में बेहद सतर्क है। वह विधेयक का विरोध करके वह भाजपा के जाल में नहीं फंसेगी। क्योंकि ऐसा करने पर भाजपा द्वारा उसे मुस्लिमों की पैरोकार के साथ-साथ हिन्दू विरोधी भी प्रचारित किया जाएगा। तृणमूल किसी भी तरीके से हिन्दू विरोधी होने का ठप्पा अपने पर नहीं लगाना चाहती है। इसलिए पार्टी में उच्च स्तर पर चल रहे विचार-विमर्श के दौरान इस बात पर करीब-करीब सहमति बन चुकी है कि वह विधेयक पर तटस्थ रहा जाए। लेकिन उसका स्वरूप क्या होगा, यह तय होना है।
तीन तलाक विधेयक को लोकसभा में पेश किया जा चुका है। संभावना है कि अगले सप्ताह पहले लोकसभा में और फिर राज्यसभा में इसे पारित कराया जाएगा। लोकसभा में तृणमूल के रुख से सत्ता पक्ष को कोई खास फर्क नहीं पड़ता है लेकिन राज्यसभा में उसका संख्याबल कम है। राज्यसभा में तृणमूल के 13 सदस्य हैं। जबकि एनडीए एवं उसके सभी संभावित सहयोगियों को मिलाकर संख्या 109 के करीब बन रही है। ऐसे में तृणमूल के तटस्थ रहने से एनडीए को राहत मिल सकती है। क्योंकि तटस्थ रहने से विपक्ष में पड़ने वाले 13 मत कम हो जाएंगे।
राज्यसभा में तेलंगाना राष्ट्र समिति के छह और बीजद के सात सदस्यों को छोड़कर विपक्ष की कुल संख्या 110 बन रही है। जिसमें से यदि 13 तृणमूल के कम कर दिया जाए तो फिर सत्तापक्ष की मुश्किल ही खत्म हो जाती है।