सरदार भगतसिंह के साथ फांसी पर झूलनेवाले शहीद राजगुरू की जयंती आज
न्यूज़ डेस्क | नवप्रवाह न्यूज़ नेटवर्क
शहीद भगत सिंह के साथ फांसी की बराबर सजा पाने वाले शिवराम राजगुरू की आज जयंती है। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएश में चंद्रशेखर आजाद के अलावा अगर कोई शानदार शूटर था तो वे शिवराम राजगुरु थे। शिवराम सावन महिने के सोमवार में पैदा हुए थे, इसलिए उनकी मां ने उनका नाम शिव के नाम पर रखा गया था। राजगुरू चंद्रशेखर आजाद के चहेते थे और भगत सिंह से वे चुहल करते थे।
जगतगुरू शंकराचार्य ने उन्हें व्रत रखने की आदत डाली और बाद में उन्होंने आरएसएस के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने भी उनको शरण और अपना आशीर्वाद दिया। राजगुरू की मां की मौत के बाद पूरे घर की जिम्मेदारी उनके बड़े भाई दिनकर पर आ गई. उस समय राजगुरू छह साल के थे। दिनकर को पुणे के राजस्व विभाग में नौकरी मिल गई और वो शादी कर वहां चला गया। इसके बाद उनके कस्बे में शंकराचार्य आए और उन्हीं के पुरखों के द्वारा बनाए गए विष्णु मंदिर में रुके।
राजगुरू, शंकराचार्य से इतने प्रभावित हुए कि उनके भक्त बन गए। शंकराचार्य ने उन्हें शारीरिक और मानसिक शुद्धि के लिए पांच दिनों का निर्जल व्रत रखने को कहा। राजगुरू को लोकमान्य तिलक ने उनके साहस और अंदाज से प्रभावित होकर माला पहनाई। उस समय राजगुरू कक्षा तीन में पढ़ते थे और लोकमान्य के भाषण से काफी प्रभावित हुए थे। उन्हें देखकर लोकमान्य ने कहा कि शिवराज जैसे साहसी बच्चों के होते हुए स्वराज का लक्ष्य पूरा किया जा सकता है।
शिवराम राजगुरू संस्कृत के ग्रंथ पढ़ने में मन लगाते थे लेकिन उनके भाई दिनकर ने उन्हें अंग्रेजी पर जोर दिया। शिवराम अपने भाई को साफ कहते थे कि उन्हें अंग्रेजी हुकुमत के लिए काम नहीं करना है तो वे अंग्रेजी भाषा क्यों सीखें। साल 1924 में उनकी परीक्षाओं के नतीजे आए और उनके अंग्रेजी भाषा में काफी कम अंक आए, जिस पर दिनकर ने उन्हें दो वाक्य अंग्रेजी में बोलने को कहा नहीं तो घर छोड़ने का आदेश दे दिया। शिवराम ने इसके बाद अपनी भाभी के पैर छूकर घर छोड़ने का फैसला लिया और अंग्रेजी भाषा का बहिष्कार किया।
राजगुरू उसके बाद मंदिरों के दर्शन करते हुए नासिक पहुंचे और वहां कुछ दिन संस्कृत पढ़ी। सावरगांवकर ने ही राजगुरू को आजाद और बाकी क्रांतिकारियों से मिलवाया। राजगुरू को उनके अंदाज और शूटिंग स्किल्स के लिए उन्हें टाइटल दिया गया दि मैन ऑफ एचएसआरए। सांडर्स की हत्या करने में भी राजगुरू शामिल थे, आजाद के मना करने के बाद भी वह पिस्तौल लेकर सेंट्रल असेम्बली चले गए और उसी पिस्तौल से फायर कर दिया। नतीजा यह हुआ कि इस कांड में तीनों को फांसी की सजा सुनाई गई।
सांडर्स की हत्या के बाद राजगुरू नागपुर, अमरावती जैसे इलाकों में छिपते रहे। इसी दौरान डॉ. केबी हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के एक कार्यकर्ता के घर पर राजगुरू के रुकने की व्यवस्था कराई। कहा तो यह भी जाता है कि सांडर्स के मामले की सुनवाई के दौरान अंग्रेज जज को वह संस्कृत भाषा में जवाब देते थे और भगत सिंह से कहते थे कि वे इसका अनुवाद करें।