डॉ. जितेंद्र पाण्डेय@नवप्रवाह.कॉम,
मौन को मुखर और सन्नाटे को शब्द देती विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की कविताएँ समकालीन हिंदी कविता की सबसे प्रभावशाली स्वर हैं।प्रस्तुत है साहित्य अकादमी , दिल्ली के अध्यक्ष डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की डॉ.जितेन्द्र पाण्डेय से बातचीत के कुछ अंश :
* आपने काव्य लेखन की शुरुआत कैसे की ?
~ मेरे काव्य लेखन की शुरुआत मेरे किशोर वय में ही हो गई।मैं जानता भी नहीं कि कैसे हो गई और आज भी उसका कोई सटीक कारण नहीं बता सकता।वह कोई भीतरी प्रेरणा थी संभवतः अपने को ही जानने और पहचानने की।शब्द अपने आप आए और कविता बन गई।यह 1955-56 की बात है,जब मैं पंद्रह -सोलह वर्ष का था।
* आपके प्रिय कवि कौन हैं ?
~ मेरे प्रिय कवि तुलसीदास और सूरदास हैं।
* आपके अब तक सात संकलन प्रकाशित हो चुके हैं।इनमें से आप का पसंदीदा संकलन कौन सा है ?
~ ‘निज कवित्त केहि लागि न नीका’-तुलसीदास ने कहा है कि कवि को तो अपनी कविता अच्छी लगेगी ही।महत्वपूर्ण यह है कि पाठकों को कवि की कौन सी कविताएँ अच्छी लगती हैं ?हर कविता का भाव स्तर अलग होता है और सम्भव है जो कविता मुझे बिल्कुल ही कमजोर लगती है वह मेरे किसी पाठक को बहुत अच्छी लगे।फिर भी आपके प्रश्न का उत्तर देने के लिए कहूँगा कि ‘बेहतर दुनिया के लिए’,’आखर अनंत’तथा ‘फिर भी कुछ रह जाएगा’ नामक संग्रहों की अधिकांश कविताएँ मुझे प्रिय हैं।अच्छी हैं या नहीं , इसे मैं कहने का अधिकारी नहीं।
* इस समय हिंदी कविता के क्षेत्र में कई पीढ़ियां सक्रिय हैं और वस्तु एवं शिल्प के धरातल पर वैविध्यपूर्ण प्रयोग हो रहे हैं।ऐसी स्थिति में हिंदी कविता हमें किस रूप में आश्वस्त करती है ?
~ हिंदी कविता हमें वस्तु और शिल्प दोनों रूपों में आश्वस्त करती है।हिंदी कविता बहुत अच्छी लिखी जा रही है और बहुत खराब भी।उनमें अंतर करने की जरूरत है।
* सन् 60 के बाद हिंदी कविता में दर्जनों आंदोलन चले थे लेकिन 1980 के बाद समकालीन कविता के अलावा किसी अन्य सम्बोधन का प्रयोग नहीं हो रहा है।क्या इससे काव्य-क्षेत्र में ठहराव की प्रतीति होती है ?
~ आंदोलनों से कविता का विकास या उसकी श्रेष्ठता रेखांकित नहीं होती।उनसे इतना ही प्रमाणित होता है कि कवि समाज और राजनीति के प्रश्नों के प्रति सचेत है।1980 के बाद कविता में आंदोलन तो नहीं हुए पर वह अपने पूर्व की कविता ( अर्थात् 1960-80 ) से बेहतर ही लगती है।हर कविता की अलग इयत्ता होती है।उसकी काव्यानुभूति का अलग स्तर होता है।कविताओं को सामान्यीकृत करने की जरूरत नहीं है।
* आपकी कविताओं में मनुष्य तथा कविता की अमरता और जिजीविषा के प्रति गहरी संलग्नता पायी जाती है ।क्या यह आपके जीवनानुभव का परिणाम है ?
~ कविता में जो कुछ भी आता है , कवि के जीवनानुभव से ही आता है , बल्कि कहूँ कि आना चाहिए।कविता वही होती है जो कि कवि स्वयं होता है, बल्कि कहूँ कि होनी चाहिए।मेरी कविता में आप उसे महसूस करते हैं , यह मेरे लिए ख़ुशी की बात है।
* आपने कविताओं के द्वारा पर्यावरण की समस्या पर बड़ी ही गंभीर और सतर्क टिप्पणी की है। ‘आरा मशीन ‘ जैसी कविता इस समूचे चक्र को व्यंजित करती है। क्या इस कविता की कोई प्रेरणा रही है ?
~ ‘आरा मशीन ‘ शीर्षक कविता की कहीं मैंने विस्तार से व्याख्या की है।उसमें सिर्फ पर्यावरण की समस्या नहीं है बल्कि अपने समय का आतंक और उसका भयावह चेहरा भी है।अपने समय के हीनताबोध के दैन्य और मूल्यों के क्षरण का भी उसमें संकेत है।वह कविता सपाट और एक आयामी नहीं है बल्कि अर्थ के अनेक स्तर उसमें हैं।यह कविता बहुत मानसिक दबाव में बल्कि कहूँ कि निरंतर दबाव झेलते रहने के बहुत बाद में लिखी गई है।इसकी प्रेरणा भी प्रत्यक्ष रही है , जैसा कि आप का अनुमान है।
* आपकी दृष्टि में कालजयी कविता किसे माना जा सकता है और हिंदी की किन कविताओं को आप कालजयी मानते हैं?
~ कालजयी कविता वह है जो काल के लंबे समय तक यात्रा करे।ऐसी कविता मानव प्रकृति और उसकी चिरंतन चिंताओं की अभिव्यक्ति होती है।ऐसी कविता प्रेम की भी हो सकती है,कवि की आत्मवेदना की भी और विराट स्तर पर सत् और असत् के संघर्ष की भी।उदाहरण के लिए सूरदास की कविता , मिर्ज़ा ग़ालिब की कविता और सूरदास की कविता को पढ़ा जा सकता है।अपने समय की कविताओं में प्रसाद की ‘कामायनी’, निराला की ‘रामशक्ति पूजा’ , अज्ञेय की ‘असाध्य वीणा’ जैसी कविताएँ कालजयी कही जा सकती हैं।
* आप भविष्य की कविता और कविता के भविष्य को किस रूप में देखते हैं ?
~ मनुष्य का भविष्य जिस दिशा में जा रहा है वह उसके लिए खतरनाक और चुनौतीपूर्ण है।पर्यावरण का संकट मनुष्य के सामने है।विनाशक यांत्रिकी उसके अस्तित्व को मिटाने में सक्षम है।ऐसे में कविता का भविष्य भी चुनौतीपूर्ण है।मगर मनुष्य के पास जब तक उसकी भाषा है , भाव है , विचार है तब तक वह अपने समय को भी चुनौती देता रहेगा और इसके लिए उसकी रचना ही अस्त्र बनेगी।वह कविता के रूप में भी हो सकती है और किसी अन्य विधा के भी।कवि को कविता के भविष्य के प्रति आश्वस्त रहना चाहिए।