सौम्या केसरवानी | Navpravah.com
रक्षाबंधन का त्योहार नजदीक है, पूरा देश चीनी राखियों का बहिष्कार कर रहा है तो वहीं बाजारों में बिकने वाली राखियां जिन्हें देसी बता कर बेचा जा रहा है उनमें दरअसल चीनी समान ही लगा हुआ है।
हमारे देश के हर त्योहार में चीनी सामानों ने कब्जा किया हुआ है, फिर चाहे होली हो या दीवाली, रंगों से लेकर लाइट की लड़ियां भी चीन से आते हैं, क्योंकि ये सस्ती होती हैं लोग महंगाई के इस दौर में उन्हें लेना ज्यादा पसंद करते हैं। राखियो के साथ भी ऐसा ही है, चीन में बनी अलग-अलग पॉपुलर कार्टून कैरेक्टर्स वाली राखियां बच्चों में काफी लोकप्रिय रही हैं, इस बार के बाजारों में भी ये राखियां बिक रही हैं बस उन्हें देसी लिबास पहना दिया गया है।
हर जगह सस्ती चीनी राखियां देसी पैकिंग में भारतीय बता कर बेची जा रही हैं, वो लोग जो चीनी सामानों के पक्षधर हैं वो पूरी तरह मार खा रहे हैं।
इलाहाबाद के एक दुकानदार के मुताबिक, “बाजारों में 20 से 50 रुपए में मिलने वाली खूबसूरत स्टोन लगी राखियां असल में चीनी सामान से बनी हैं, भारत में अगर ये राखी बनाई जाए तो इसकी लागत 150 से ऊपर ही आएगी, चीन से सामान पहले कलकत्ता लाया जाता है जहां से दूसरे राज्यो में भेजा जाता है।”
भारत में लेबर कॉस्ट चीन के मुकाबले कहीं ज्यादा है, भारत में रंग बिरंगे स्टोन्स, और राखी में लगने वाले दूसरे सामानों का प्रोडक्शन ना के बराबर होता है। ऐसे में कहीं अगर प्रोडक्शन हो भी रहा है तो उसकी लागत चीन से कई गुना ज्यादा पड़ती है।
भारत में एक राखी का लेबर कॉस्ट और लगने वाले सामानों के साथ लागत जहां 150 से 200 पड़ेगी वहीं चीन की राखियों की लागत केवल 15 से 10 रुपए आती है, जिन्हें 20 से 50 रुपए में बेचा जाता है।
भारत में बिकने वाली 90% खूबसूरत दिखने वाली राखियां , जिन्हें आकर्षक पैकिंग कर सस्ते दामों में बेचा जा रहा है, वो पूरी तरह चीनी हैं। ऐसे में कई सवाल उठते हैं, पहला ये कि राष्ट्रहित में चीनी सामानों का बहिष्कार कर रहे लोगों के साथ क्या धोखा नहीं हो रहा है?
Featured PC: deccanchronicle.com