इशिका गुप्ता | navpravah.com
नई दिल्ली | हर वर्ष 14 सितंबर को पूरे देश में हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन हिन्दी भाषा के महत्व को रेखांकित करने और इसके साहित्यिक योगदान को सम्मानित करने के लिए समर्पित है। इस अवसर पर, आज हम उन पाँच प्रमुख महिला लेखिकाओं को याद कर रहे हैं जिन्होंने हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन लेखिकाओं की रचनाओं ने न केवल साहित्य को नए आयाम दिए, बल्कि समाज में स्त्रियों की आवाज़ को भी बुलंद किया।
1. महादेवी वर्मा: छायावाद की ‘मूक-बधिर कवयित्री’
महादेवी वर्मा, हिन्दी साहित्य की छायावादी धारा की चार प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं। उनकी कविताएँ करुणा, पीड़ा और प्रेम की भावनाओं से ओत-प्रोत हैं। उनकी रचनाएँ जैसे “दीपशिखा” और “यामा” हिन्दी कविता के लिए मील का पत्थर साबित हुईं। इसके अलावा, महादेवी जी ने नारी जीवन की समस्याओं को अपनी लेखनी के माध्यम से सशक्त ढंग से प्रस्तुत किया, जिससे वे हिन्दी साहित्य के इतिहास में अमर हो गईं।
2. मन्नू भंडारी: यथार्थवादी कथा की ध्वजवाहक
मध्यम वर्ग के संघर्ष और महिलाओं की समस्याओं को मन्नू भंडारी ने अपनी कहानियों और उपन्यासों में प्रमुखता दी। “आपका बंटी” और “महाभोज” जैसे उपन्यासों में उन्होंने समाज की कुरीतियों और विडंबनाओं को सामने रखा। मन्नू भंडारी की लेखनी ने स्त्री-जीवन के वास्तविक पक्षों को दिखाते हुए साहित्य को एक नया आयाम दिया, और उन्हें हिन्दी कथा-साहित्य की अग्रणी लेखिका के रूप में स्थापित किया।
3. सुभद्राकुमारी चौहान: राष्ट्रप्रेम की अनुगूँज
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सुभद्राकुमारी चौहान की कविताएँ लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनीं। उनकी प्रसिद्ध कविता “झाँसी की रानी” ने भारतीय महिलाओं में वीरता और साहस की भावना को प्रबल किया। उनकी रचनाओं में सरल भाषा और स्पष्ट विचारधारा ने उन्हें हिन्दी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान दिया। उनके लेखन में स्त्रियों के साथ-साथ देशभक्ति का भी अद्वितीय संगम देखने को मिलता है।
4. इस्मत चुगताई: सामाजिक वर्जनाओं पर करारी चोट
इस्मत चुगताई ने अपने साहसिक लेखन से हिन्दी और उर्दू साहित्य दोनों में एक क्रांति पैदा की। उनकी प्रसिद्ध कहानी “लिहाफ” ने सामाजिक वर्जनाओं को चुनौती दी और महिला यौनिकता के मुद्दे पर खुलकर चर्चा की। इस्मत चुगताई की लेखनी समाज के दबे-कुचले वर्गों और विशेषकर महिलाओं के हक़ की आवाज़ बनी। उनके साहित्यिक दृष्टिकोण ने हिन्दी साहित्य को नये और संवेदनशील मुद्दों की ओर मोड़ा।
5. अमृता प्रीतम: विभाजन की त्रासदी और प्रेम की कवयित्री
अमृता प्रीतम का योगदान हिन्दी और पंजाबी साहित्य दोनों में अद्वितीय है। उनका उपन्यास “पिंजर” विभाजन के दौरान महिलाओं की पीड़ा और संघर्ष की दास्तान है, जो आज भी प्रासंगिक है। अमृता प्रीतम ने प्रेम, दर्द और समाज की विडंबनाओं को अपनी कविताओं और कहानियों के माध्यम से बेहद मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया। हिन्दी साहित्य में उनकी उपस्थिति ने महिलाओं के अनुभवों और विचारों को साहित्यिक मुख्यधारा में स्थान दिलाया।
हिन्दी दिवस के इस पावन अवसर पर, इन पाँच महान लेखिकाओं के योगदान को याद करना हमारे लिए गर्व की बात है। इन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से न केवल हिन्दी भाषा को समृद्ध किया, बल्कि समाज में महिलाओं के स्थान और उनके संघर्षों को भी सशक्त रूप से प्रस्तुत किया। इनकी रचनाएँ आज भी हिन्दी साहित्य में प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करती हैं।