सुर में ही भक्ति…

भारत भूषण ‘भारतेंदु’ @ नवप्रवाह.कॉम,

Bhartenduमन्ये धनाभिजनरुपतपः श्रुतौज

स्तेजःप्रभावबलपौरुषबुध्धियोगाः |

नाराधनाय ही भवन्ति परस्य पुंसो

भक्त्या तुतोष भगवान गजयूथपाय || (श्रीमद्भागवत ७ \ 9 \ ७)

पूरे संसार का कल्याण भक्ति योग पर ही निर्भर करता है अतः उस भक्ति योग को संसार द्वारा ही प्रकट करता हूँ |

भक्ति के स्वरुप को तीन रूप में ब्यक्त किया जा सकता है १(अनुग्रह)२ (प्रेम )३(भक्ति)हमें मानना पड़ेगा की ये तीनो स्नेह के पर्याय है गुण,योग्यता से जरा कम रहने वाले सेवक,शिष्य,पुत्र आदि पर जब बादल बनकर बरसता है तो वह लोगों में अनुग्रह के नाम से प्रसिद्ध हो जाता है | जब ये अपने बराबर के मित्रों व पत्नी से स्नेहमय बातचीत पत्रब्यवहार,फोन,फेसबुक,ईमेल,ट्विटर इत्यादि करने लगे तो यही स्नेह प्रेम रूप लेकर हिचकोले खाने लगता है | और सौभाग्य से अपने आदरणीय माता,पिता,गुरु और देवता के पास श्रध्दा,विनय, सदाचार से अलंकृत व शुशोभित होकर पहुंचे तो यही स्नेह राजर्षि प्रह्लाद,अम्बरीश,अथवा देवर्षि नारद आदि के समकक्ष बैठने में जरा सा भी संकोच नहीं करता |

इन्ही सभी स्वरूपों को सुर में साधकर जीवन को अपने इस शक्ति से  अपने सभी स करके सम्बन्धी जन और पदार्थ ही क्या प्राणों से भी कई गुना अधिक हजारों संकट आने पर भी न टूटने वाला,अति मजबूत गंगा प्रवाह की तरह अखंड प्रेम के प्रवाह को भक्ति कह सकते है |

इस संसार में पुत्र,शिष्य,पत्नी,सेवक आदि को तथा इसी क्रम में माता-पिता,गुरु,पति,स्वामी आदि भक्ति के लिए भगवान के प्रतीक है | इनकी भक्ति करने से ही उनके अंदर रहने वाले भगवान प्रसन्न होते है अन्यथा नहीं | एक उदहारण में जैसे कोई दुष्ट प्रकृत का बेसुरा ब्यक्ति जब किसी के शरीर पर आघात करता है और पुलिस के द्वारा पकड़े जाने पर न्यायालय द्वारा दण्डित किया जाता है और दूसरी तरफ एक डाक्टर साहब अनेक रोगियों के शरीर पर ऑपरेशन करते हैं पर उनको सभी भगवान के रूप में मानते है सम्मान देते है | दुष्ट और डाक्टर का कर्म एक है परन्तु उनके करने की इच्छा अलग है दुष्ट की इच्छा दुःख देने की तथा डाक्टर साहब की इच्छा लोगों को आराम व सुख देने की इस लिए दोनों  का कर्म समान होने पर भी,करता के इच्छा के अनुसार फल अलग अलग है | इससे स्पष्ट होता है कि जीवन को सुर में साध कर किया हुआ हर कार्य लोकोपयोगी होता है यही असली भक्ति है यूँ कह लीजिये की “सुर में ही भक्ति”|

 जन सेवा के लिए परम पूज्य गगन गिरी महाराज चेरिटेबल ट्रस्ट मनोरी डोंगर द्वारा आयोजित और श्री हरी नारायण सेवा संस्थान द्वारा संचालित चित्त से चेतना की ओर (लाइफ रिफायनरी) का आयोजन प्रत्येक रविवार को किया गया है आप भाग लेने के लिए संपर्क कर सकते है|

प्रश्न –आदरणीय गुरु जी मै हमारा महानगर का नियमित इ पेपर रीडर हूँ मुझे मौसम बदलते ही जुकाम सर्दी हो जाता है नाक तो बरसाती गटर की तरह बहने लगता है बंद होने का नाम ही नहीं लेता दवा लेना नहीं चाहता क्या करू ? वीरेंदर –नरेंदर –राजिंदर-सुरेंदर (वाशी)

उत्तर – धन्यवाद् नियमित पाठक के लिए | वर्षा ऋतु मे संक्रमण का का अंदेशा ज्यादा हो जाता है | बारिश में भीगें नहीं | यदि बार बार जुकाम होता है या ज्यादा दिन से है तो काली मंगरैल को एक चम्मच लेकर दोनों हाथों से रगड़ कर साफ कर लें तत्पश्चात काटन के कपडे में रखकर पोटली बनाकर हाँथ पर रगड़ कर नाक के दोनों छिद्रों से एक एक करके अन्दर की तरफ खीचें ध्यान रहे बस एक बार ही खीचना है |थोड़ा तीखा लगेगा पर जुकाम हमेशा के लिए ठीक हो जायेगा | भुजंग आसन,धनुरासन,सूर्य नमस्कार व प्राणायाम करें अवश्य लाभ होगा | योग सदा योग गुरु के सानिध्य में करें |

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