बोलती तस्वीरें- “मुंगेरीलाल के हसीन सपने (1989)”

डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk

अचेतन मन में जब दमन की गई इच्छाएं होती हैं और समाज की नियमावली या स्वयं की अक्षमता के कारण कोई मनुष्य अपनी इच्छाएं दबा लेता है, तो वे मरती नहीं। स्वप्न में मस्तिष्क उन अतृप्त कामनाओं की पूर्ति करवाता है। महान ऑस्ट्रियन मनोवैज्ञानिक सिग्मंड फ़्रॉयड ने इसे Wunscherfullung कहा, जिसे अंग्रेज़ी में wish fulfillment  भी कहते हैं। इस मनोवैज्ञानिक तथ्य का प्रयोग हास्य प्रस्तुति में कर पाना, कलात्मकता के शिखर पर ही संभव है और इस प्रयोग के सफलता के बारे में शंका का बना रहना भी स्वभाविक है। लेकिन ऐसी सभी शंकाओं को दरकिनार करते हुए दूरदर्शन ने इस प्रयोग के प्रस्तुति की सहमति दी और अपनी कहानी नीरज कुमार ने पूरे भारत को सुनाई, इस कहानी का नाम था, “मुंगेरीलाल के हसीन सपने” और ये साल था, 1989।

बतौर मुंगेरीलाल, ‘रघुबीर यादव’

“मुंगेरीलाल के हसीन सपने” दूरदर्शन पर धारावाहिक के रूप में प्रसारित किया गया। ये धारावाहिक, तत्कालीन समाज पर करारा व्यंग्य था और इसके मुख्य पात्र थे रघुबीर यादव (मुंगेरीलाल), जो कि बिहार के मुंगेर ज़िले से रोज़गार के सिलसिले में दिल्ली आ बसे थे।  रघुबीर यादव (मुंगेरीलाल), तीन विषयों ( साहित्य, संस्कृत और दर्शनशास्त्र में M.A. थे, और उन्हें कोई ढंग की नौकरी नहीं मिली थी। प्रतिभाओं के हनन पर ये खड़ा व्यंग्य प्रहार था। इनके ससुर बजरंगीलाल (प्यारे मोहन सहाय) ने सिफ़ारिश से, इनकी नौकरी, वानर छाप वनस्पति कंपनी में लगा दी। यहाँ भी इनका शोषण होता रहा या ये कहना भी ठीक होगा कि ये शोषण करवाते रहे।

“शोषित जब प्रतिकार नहीं कर पाता, तो उसके पास काल्पनिक प्रतिशोध के अलावा और कोई रास्ता ही नहीं बचता। यही, मुंगेरीलाल का भी रास्ता था। अपने ऊपर हो रहे व्यवहार का प्रतिशोध वे अपने सपनों में लेते थे और उनकी कनखियों के साथ वे सपनों की दुनिया में प्रवेश पा जाते थे। इनके हर सपने में, इनके ससुर, इनकी पत्नी, इनकी कम्पनी का मालिक और ऑफिस के सारे लोग होते थे, जिनपर ये सवार होकर, उन्हें दंडित करते थे। सपनों में सफलता का पूर्ण स्वाद चखने के पहले ही इनकी पत्नी इनके सपने तोड़ देती थीं।”

इसका शीर्षक गीत, अशोक चक्रधर और नीरज कुमार ने बनाया था और बड़े सीधे बोल थे, “सपनों के दाम नहीं, सपनों के नाम नहीं, सपनों के घोड़ों पर किसी का लगाम नहीं।” इस धारावाहिक में कला निर्देशन प्रभात झा ने किया था। पटकथा और संवाद, मनोहर श्याम जोशी ने लिखा था और संपादन और निर्देशन, प्रकाश झा ने किया था।

प्रकाश झा

रघुबीर यादव और प्यारे मोहन सहाय के अलावा, रूमा घोष और कामिया मल्होत्रा का भी सधा हुआ अभिनय था। इस धारावाहिक के कुल 52 एपिसोड प्रसारित किए गए।

हर जगह अक्षम और दुर्बल व्यक्ति प्रताड़ना सहता है और प्रतिरोध नहीं कर पाता। मुंगेरीलाल सपने देखता था और प्रतिशोध (काल्पनिक) लेता था लेकिन अपनी ज़िम्मेदारियों से बंधा हुआ, अपना जीवन चुपचाप जीता था।  आज के दौर के लोग इन कल्पनाओं की प्रस्तुति सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर करते हैं और अपनों के बीच इन कल्पनाओं को कहते भी हैं और इनकी मान्यता बनाए रखने के लिए कई अभ्यास भी करते हैं। सब स्थितियां यथावत बनी हुई हैं आज भी, बस कुंठा और झूठ थोड़ा ज़्यादा बढ़ गया है।

“मुंगेरीलाल के हसीन सपने”, उस समय की निश्छल दुनिया और सादा जीवन दिखाने वाला एक अविस्मरणीय धारावाहिक है।

(लेखक जाने-माने साहित्यकार, फ़िल्म समालोचक, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)

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