समय के साथ चैलेन्ज बढ़ता जा रहा है -अमिताभ बच्चन

अमित द्विवेदी,

बॉलीवुड के महानायक बिग बी अमिताभ बच्चन का कोलकाता (बंगाल) से ख़ास रिश्ता है। अपनी कई फिल्मों में बंगाली बाबू का किरदार निभा चुके बच्चन साहब, एक बार फिर कुछ इसी रूप में नज़र आएंगे अपनी आगामी फिल्म ‘तीन’ में, हालाँकि यह किरदार बंगाली नहीं, बल्कि ऐंग्लो बंगाली होगा। नवप्रवाह.कॉम से बातचीत के दौरान अमिताभ बच्चन ने इस फिल्म के विषय में, अपने अभिनय और फिल्म निर्माण के सफ़र के विषय में कई दिलचस्प बातें बताईं। प्रस्तुत हैं बातचीत की कुछ प्रमुख अंश-

प्रश्न: फिल्म ‘तीन’ के विषय में कुछ बताइए।

अमिताभ: दरअसल फिल्म के निर्माता सुजॉय घोष केरल की एक फिल्म का रीमेक बनाना चाहते थे। लेकिन एक दिन निर्देशक ऋभु दासगुप्ता व सुजॉय ने मिलकर विचार विमर्श किया कि उनकी यह फिल्म एक कोरियाई फिल्म पर आधारित होगी। जैसे ही उन्होंने मुझे कहानी के बारे में बताया, मैं राज़ी हो गया। वे लोग फिल्म सेट गोवा में चाहते थे परंतु अनुमति नहीं मिल रही थी। मैंने कोलकाता का नाम सुझाया और उन्हें यह विचार उत्तम लगा।

प्रश्न: अपने किरदार के विषय में कुछ बताइए।

अमिताभ: मैं फिल्म में 74 वर्षीय जॉन बिस्वास का किरदार निभा रहा हूँ, जो कि मेरी वास्तविक उम्र भी है। यह एक अति महत्त्वाकांक्षी किरदार नहीं है। यह एक बहुत ही मधुर व्यक्तित्त्व वाला शख़्स है, जिसकी किसी भी विषय में बहुत अधिक रुचि नहीं है। उसकी पोती के साथ एक हादसा हुआ है। वह उस घटना की तह तक जाना चाहता है। उसके मन में बदले की भावना नहीं है। वह केवल सच्चाई जानना चाहता है। वह मृदुभाषी है, भीरू किस्म का व्यक्ति है, जो किसी को सरेआम चुनौती नहीं दे सकता। सुजॉय और ऋभु के अनुसार, मैंने कई फिल्मों में सच के लिए लड़ाई लड़ी है। यह किरदार अलग है।

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प्रश्न: आप फिल्म में एक ब्रिटिश मूल के बंगाली का किरदार निभा रहे हैं, जो भारत में बहुत ही कम हैं। एंग्लो -बंगाली का किरदार कैसे दिमाग में आया?

अमिताभ: यह एक कोलकाता में स्थित ईसाई का किरदार है, जिसका ऐंग्लो कनेक्शन है। इसलिए इस किरदार को ऐंग्लो-बंगाली बना दिया गया। सन 1962 में मैंने अपनी पहली नौकरी कोलकाता में की थी। वहाँ ऐंग्लो इंडियंस का एक बड़ा समुदाय रहता है। मैंने उनके साथ थिएटर में काम भी किया है। इसलिए मैं उनके रहन-सहन और भाषा-उच्चारण से भली-भाँति वाकिफ़ हूँ। और हाल ही में पीकू में एक बंगाली किरदार निभाने के बाद इस फिल्म में भी बिल्कुल वैसा ही किरदार ठीक नहीं था। हमने खोज की और पाया कि ऐंग्लो बंगाली भी अन्य हिंदी भाषियों की तरह बोलते हैं। इसलिए अंततः इस किरदार को चुना गया।

प्रश्न: क्या पूरी फिल्म कोलकाता में ही सेट बनाकर फिल्माई गई है?

अमिताभ: फिल्म में कहीं भी सेट का उपयोग ही नहीं हुआ है। पूरी फिल्म वास्तविक स्थानों पर शूट हुई है, वो भी वास्तविक प्रकाश में, जो कि हमारे फोटोग्राफी के डायरेक्टर तुषार कांति रे की निपुणता का कमाल है। पुराने समय में शार्प रिफ्लेक्टर्स के साथ बड़ी बड़ी लाइट्स का इस्तेमाल होता था। आप उस प्रकाश में बड़ी मुश्किल से आँखें खोल पाते हैं। इस अलग माहौल में बिना कृत्रिम लाइट के काम करने का अनुभव एकदम निराला था। यह सब आज के तकनीकी विकास का कमाल है। नई तकनीकों के चलते अगर मैं ज़रा सा भी ज़ोर से बोलूँ, ऋभु को बताना पड़ता था कि और धीरे और सरल बोलना है।

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प्रश्न: फिल्म ‘पा’ में आपकी माँ का किरदार निभा चुकी विद्या बालन इस फिल्म में आपके साथ काम कर रही हैं। उनके किरदार के विषय में बताइए।

अमिताभ: (हँसते हुए) हो सकता है कि अगली फिल्म में वे मेरी बहन या प्रेमिका के किरदार में हों।

प्रश्न: आपने कई दिग्गज, अनुभवी और कई नए फिल्म निर्माताओं के साथ काम किया है। दोनों में क्या अंतर महसूस करते हैं?

अमिताभ: मैंने दोनों में कोई कलात्मक अंतर नहीं महसूस किया। नए निर्माता भी उतने ही कलात्मक हैं, जितने पुराने। उनकी कला अत्यंत सराहनीय है। मैं उनकी कला का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ। मैं यह सोचकर बहुत विस्मित हो जाता हूँ कि अपने शुरुआती दौर में ही वे इतने कुशल कैसे हो सकते हैं! मैं अब तक सीख रहा हूँ और अक्सर कई गलतियाँ करता हूँ। इस उम्र में सेट्स पर जाने में भी मैं थोड़ी हिचकिचाहट महसूस करता हूँ, क्योंकि वहाँ उपस्थित लोगों की औसतन उम्र 25 वर्ष होती है। मैं सोचता हूँ कि मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ। वास्तव में मैं उनको काम करते देख बहुत आनंदित होता हूँ। वे लोग काम करते वक़्त कितने सहज होते हैं जो मैं अब तक नहीं हो पाता।

प्रश्न: आप अभिनेताओं और अभिनेत्रियोंं को प्रोत्साहित करने के लिए पत्र भेजते हैं, कभी किसी निर्देशक को भी भेजा?

अमिताभ: (हँसते हुए ) मैं अक्सर भेजता हूँ, फर्क सिर्फ इतना है कि अभिनेता और अभिनेत्रियों को लिखे गए पत्र सोशल मीडिया पर आ जाते हैं और निर्देशकों के नहीं आते।

प्रश्न: दर्शकों की बदलती पसंद के विषय में आपका क्या कहना है?

अमिताभ: आज दर्शक दुनिया भर की जानकारियों से वाकिफ़ हो चुके हैं। उनकी पसंद बदल गई है। अब उन्हें और ज़्यादा आकर्षक और तकनीकी रूप से उम्दा फिल्में देखनी हैं क्योंकि अब उनके पास टीवी और इंटरनेट पर ऐसी चीज़ें देखने की सुविधा उपलब्ध है। अगर उन्हें ऐसा कंटेंट न मिले तो वे आपकी फिल्में देखने की बजाय घर बैठे टेलीविज़न देखना बेहतर समझेंगे।

प्रश्न: फिल्म निर्माण में आपने कौन कौन- से बड़े बदलाव अनुभव किए हैं?

अमिताभ: आज के फिल्म निर्माताओं के समक्ष पैसों की दिक्कत नहीं होती। वास्तव में, उसके विषय में उन्हें सोचना ही नहीं होता। फंडिंग आसानी से उपलब्ध हो जाती है, जैसा कि हमारे समय में नहीं था। हम लोगों को कर्ज़ लेना पड़ता था। मान लीजिए, यदि हमारे पास 7-8 दिनों की फिल्म शूट करने के पैसे हों, तो निर्माताओं को पहले उतनी फिल्म शूट कर ऋण दाताओं को दिखानी पड़ती थी और ऋण की उम्मीद लगानी पड़ती थी। इसलिए हम लोग एक साथ 10-12 फिल्मों में काम करते थे, एक दिन में 2-3 फिल्में। हम लोग अगले ऋणदाता के इंतज़ार में बैठ नहीं सकते थे, वर्ना हम लंबे समय तक बिना काम धाम के घर पर बैठे रह जाते।

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