तिकड़मी नेता: नक़ली ‘सेकुलरिज्म’ से जनता को बरगलाने की जुगत में!

जटाशंकर पाण्डेय | Navpravah.com

भारतीय राजनेताओं के अनुसार, एक बहुत बड़ा मुद्दा, जिसमें जनता को लपेटा जा सकता है, वह है ‘सेकुलरिज्म’। हर पार्टी अपने को सेकुलर घोषित करने पर तुली रहती है , हर बड़ा नेता अपने को सेकुलर दिखाने की कोशिश करता है। नेताओं ने दरअसल सेकुलरिज्म की परिभाषा ही बदल दी है। भारत वर्ष में सेकुलरिज्म को सिर्फ हिन्दू-मुस्लिम समानता, या तमाम वर्ण जाति की समानता का नाम भर दे दिया गया है, जबकि यही असमानता फैलाकर तमाम राजनीतिक पार्टियां अपने वोट बैंक भरती हैं। यादवों के हितैषी सिर्फ हम, दलितों के हितैषी सिर्फ हम, मुस्लिमों के हितैषी सिर्फ हम, जाटों के हितैषी सिर्फ हम, वगैरह, वगैरह, वगैरह।

भारत में जितनी राजनैतिक पार्टियां हैं, उनमें से अधिकतर पार्टियों को भारतीय जनता पार्टी बदबू आती है। सभी विपक्षी पार्टियां एक जगह पर एक मत हो जाती हैं कि भाजपा जनता के अंदर जाति-वाद, प्रान्त-वाद, धर्म-वाद फैलाती है, देश को तोड़ने का काम करती है, हिन्दू मुस्लिम के बीच फूट डालने का काम करती है, लेकिन फिर वही बात साहब, “ये जो पब्लिक है सब जानती है।”

पिछले 60 सालों से सभी पार्टियाँ जनता के बीच यही जहर घोल कर सत्ता पर काबिज रहने के लिए जनता को बेवकूफ बना रही थीं। ये जनता को बताते रहे कि हम धर्म निरपेक्ष हैं। जातीय भेद भाव से परे एक मात्र हम हैं जो तुम्हें स्थिर और स्वच्छ सरकार दे सकते हैं। जनता का भोलापन और इनका बड़बोलापन! ये जनता को गुमराह करते रहे और राजसुख भोगते रहे लेकिन भैया, “ये पब्लिक है ये सब जानती है, ये जो पब्लिक है।”

इस बार के विधानसभा चुनाव में जनता ने इन्हें करारा जबाब दिया। ऐसी शिकस्त दी की एक इतिहास रच गया। आज तक के इतिहास में ऐसी जीत उत्तर प्रदेश में किसी पार्टी की नहीं हुई थी, जैसी जीत भा ज पा ने इस बार हासिल की है। आज तक किसी पार्टी को जनता का ऐसा समर्थन नहीं मिला था। पूरे भारत में न किसी पार्टी को, न किसी नेता को, न किसी मीडिया के पास ऐसा आंकड़ा था कि भाजपा इतनी सीट से विजयी होगी, लेकिन जनता जुबानी पुलाव खाते खाते ऊब चुकी है। झूठे वादे, झूठे दावे, खयाली रसगुल्ले, वो साइकिल, वो लैपटॉप, फ़ोन, बाग़- बगीचे, हाथी, पुतले, कुछ गले के नीचे नहीं उतरा और जनता ने ऐसी करारी चपत जड़ दी कि विपक्षियों के जबड़े हिल गए।

हिन्दू ने भाजपा को चुना, मुस्लिम ने भाजपा को चुना। ब्राह्मण ने, क्षत्रिय ने, वैश्य ने, शुद्र ने, सबने भाजपा को चुना! सेक्युलर पार्टियां मुह ही ताकती रह गईं! अब इतनी बुरी तरह हार के बावजूद ये अपनी हार और हार का कारण स्वीकारने को राज़ी नहीं हैं। इन्हें आज भी लग रहा होगा कि ये रात्रि में कोई भयानक स्वप्न देख रहे हैं। बात इनके गले से नीचे नहीं उतर रही है कि ये या इनकी पार्टी हार गई है। हार किसी तरह मानते भी हैं, तो यह कहकर कि इवीएम मशीन में गड़बड़ी हुई है। बटन कोई भी दबाया गया है, ‘हाथी’ का, ‘साईकिल’ का, या ‘पंजे’ का, लेकिन मुहर ‘कमल’ पर ही लगी है। आज भी ये चुनाव आयोग के सामने यही दुहाई दे रहे हैं क्योंकि इन ‘सेक्युलर’ पार्टियों की दलील है कि हिंदुत्ववादी भाजपा का जीतना ‘भ्रष्टाचारमुक्त भारत’ जितना असंभव था।

सपा-कांग्रेस गठबंधन की समझ में कतई नहीं आ रहा कि इस क्षेत्र में 80% मुस्लिम, 15% यादव, 5% बाकी लोग, तो 95% वोट तो पक्का हमारा था, भाजपा आखिर जीती कैसे! बहन मायावती सोच रही हैं, 70% हरिजन, 20% बाकी सब, ये तो बसपा की सीटें थीं, फिर ये भाजपा कहाँ से टपकी! असली टक्कर तो बुआ-भतीजे में थी, ये गड़बड़ घोटाला कैसे हुए?

आज भी ये लोग जनता को गाँधी जी का पाठ, हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई, आपस में सब भाई-भाई, पढ़ाते रहते हैं और खुद पढ़ते रहते हैं तिकड़मी गणित, मुसलमानों का इतना वोट मेरा, यादवों का इतना वोट मेरा, हरिजनों का इतना वोट मेरा। एक मात्र सवर्ण ऐसे हैं जो सभी पार्टियो को वोट देते हैं, क्योंकि सभी पार्टियों में ये लोग कुछ न कुछ टिकट पाते हैं। इसलिए इनका वोट बट के थोड़ा बहुत सब पार्टियों को मिलता है, लेकिन इनको यह नहीं पता है कि इतने दिनों की शिक्षा के बाद भारतीय जनता में कुछ तो ज्ञान जरूर उत्पन्न हुआ है। उसका प्रमाण इस चुनाव में देखने को मिला और जनता ने बता दिया कि नेता जी! हम ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र नहीं हैं, हम हिन्दू या मुस्लिम नहीं हैं, हम भारतीय हैं और देश के विकास के लिए नेता का चयन करने के ज्ञान की शिक्षा हम ले चुके हैं। अपने हिसाब किताब की चौपड़ी अब अपने तकिये तले रखिये, और मीठे मीठे सपने देखिये।

नोट बंदी के बाद जनता को केंद्र सरकार के खिलाफ तरह तरह से भड़काने वाले, भाजपा को कट्टर हिंदूवादी करार देने वाले , जनता को तमाम प्रलोभन देने वाले ये जान लें, कि जनता ने इस बार किसी वर्ण को नहीं, धर्म को नहीं, जाति को नहीं, प्रलोभन में आकर नहीं, राज्य हित में मतदान किया है, राष्ट्र हित में मतदान किया है। मुख्यमंत्री का चेहरा न जानते हुए भी अपने देश के प्रधानमंत्री पर विश्वास किया है, उनके तमाम प्रयासों को सराहने का प्रमाण दिया है।

बैलेट पेपर द्वारा दोबारा वोटिंग कराने की मांग कर रही ‘गुंडाराज’ पार्टियों के दिन लदते नज़र आ रहे हैं। इसीलिए खलबली मची हुई है। लेकिन उन तमाम महानुभावों को जनता ने अपना प्रेम भरा सन्देश दे दिया है कि ज़्यादा खलबलाइये मत, अब भारत वास्तव में ‘गणतंत्र’ पर चलेगा, ‘सेक्युलर’ तंत्र

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