मिलिंद देवड़ा: जनता के द्वारा चुना गया मेयर ही मुंबई को ‘गड्ढे’ से निकाल सकता है

कोमल झा| Navpravah.com

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई आम लोगों की जिंदगी के लिए लगातार खतरनाक होती जा रही है. कूड़े-कचरे से निजात पाने की अप्रभावी व्यवस्था, जगह-जगह जल भराव, कई तरह के जल प्रदूषण और खराब स्वास्थ्य सेवाएं शहर में राजनीतिक और नागरिकीय उदासीनता के जीते जागते उदाहरण बन गए हैं. इस उदासीनता और जवाबहीनता के चलते मुंबई का ऊर्जावान चरित्र धीरे-धीरे ढह रहा है. इसका ताजा उदाहरण घाटकोपर इलाके में देखने को मिला जहां एक इमारत गिरने से 17 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई.

मॉनसून दर मॉनसून मुंबई की सड़कों पर उभर आने वाले गड्ढे लोगों के लिए मुसीबत बन जाते हैं, इन गड्ढों के शिकार होकर बड़ी तादाद में लोग जख्मी होते रहते हैं, कई लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ती है. हादसों की इस कड़ी में एक 35 वर्षीय महिला भी शामिल है, पिछले दिनों डहाणू-जवाहर रोड पर जिसकी बाइक एक गड्ढे में गिर जाने से उसकी मौत हो गई. पिछले हफ्ते चेंबूर इलाके में नारियल का पेड़ गिरने से एक महिला बुरी तरह कुचल गई और उसने दम तोड़ दिया. आंकड़ों के मुताबिक मुंबई में साल 2015 से अबतक इस तरह के हादसों में करीब 9 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं.

हालात की गंभीरता को देखते हुए ये कहना गलत नहीं होगा कि अब इस तरह की लचर व्यवस्था और उदासीन शासन के खिलाफ सख्त आवाज उठाने का वक्त आ गया है. इसके अलावा जरूरी जन सेवाओं के निरीक्षण तंत्र के पुनर्गठन पर भी जोर देने की जरूरत है. जैसे- आवास, कानून व्यवस्था और यातायात. इन सेवाओं के लिए महाराष्ट्र और केंद्र सरकार में अलग-अलग मंत्रालय हैं. लिहाजा मुंबई में सरकार की नीतियों के कार्यान्वयन, निगरानी और मूल्यांकन का काम अलग-अलग एजेंसियों को सौंपा जाना चाहिए. ऐसा करने से शायद इन जरूरी जन सेवाओं के बीच समन्वय स्थापित हो सके.

मुंबई में एक मनगढ़ंत बात लोकतंत्र के लिए काफी अवांछनीय परिणाम लेकर आ रही है, और वो ये है कि मुंबईवासी नहीं जानते हैं कि खराब व्यवस्था के लिए किसे उत्तरदायी ठहराया जाए. कायदे से मुंबई के मेयर चुनाव में सीधे तौर पर शहरवासियों की भागीदारी होनी चाहिए. हमें लोगों को उत्साहित करना होगा कि वो सत्ता और शक्ति के हस्तांतरण में हिस्सा लें और एक ऐसे व्यक्ति को कुर्सी सौंपें जिसने मुंबई की संस्कृति और राजनीति में उचित योगदान दिया हो. हम योग्य और जिम्मेदार व्यक्ति को जनादेश देकर कार्यकारी अधिकारियों पर दबाव बना सकते हैं ताकि वो शहर की व्यवस्था में जरूरी बदलाव लाए. इस तरह से हम ये भी सुनिश्चित कर सकते हैं कि चुना गया व्यक्ति ही किसी भी तरह की असुविधा या अव्यवस्था का जिम्मेदार होगा. हमें मुंबई को यहां के लोगों की सोच और जज्बे के मुताबिक बनाना होगा.

मुंबई का ऐसा हाल संरचनात्मक मुद्दा होने के साथ-साथ राजनीतिक उदासीनता का भी मुद्दा है. बीएमसी यानी बृहन्न मुंबई महानगरपालिका पर बीते दो दशकों से काबिज राजनीतिक दलों ने मुंबई को दर्द देने वाले मुद्दों के टिकाऊ समाधान खोजने के लिए बहुत कम ही प्रयास किए हैं. बीएमसी एशिया की सबसे अमीर नगरपालिका निगमों में से एक गिनी जाती है, लेकिन वहां संसाधनों का जबरदस्त कुप्रबंधन है. ऐसा लगता है कि महानगरपालिका के काम और योजनाएं इलाके के रहने वालों की माली हालात को देखकर बनाई जाती हैं. यही वजह है कि शहर के पॉश इलाकों में गड्ढे न के बराबर नजर आते हैं, जबकि बाकी इलाके में गड्ढों के बीच सड़कें हैं. इनके अलावा सरकारी विभागों के हेडक्वार्टर्स को भी चकाचक रखा जाता है, शहर के भीतरी की ओर रास्तों का भी कुछ ऐसा ही हाल है, वहीं बाकी इलाके भगवान भरोसे हैं.

साफ कहा जाए तो ये तकनीक या क्षमताओं में कमी का मसला नहीं बल्कि ये इच्छाशक्ति का मुद्दा है. मुंबई की सभी सड़कों को गड्ढा मुक्त करने के लिए बीएमसी के पास पर्याप्त संसाधन मौजूद हैं, लेकिन भ्रष्टाचार और लापरवाहियों के चलते ऐसा नहीं हो पा रहा है.

लिहाजा मतदाताओं को अब अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और अपना वोट डालते वक्त जागरुक होना चाहिए. हमें धर्म, जाति और भाषा के आधार पर उम्मीदवारों को वोट डालने की प्रवृत्ति को खत्म करना होगा. वोट करते वक्त हमारी प्राथमिकता शहरवासियों की सुरक्षा और विकास होना चाहिए. जब हम इन बातों का ध्यान रखेंगे तभी हम उम्मीदवार की योग्यता परख पाएंगे. इस तरह से हम सही और ईमानदार व्यक्ति का चुनाव कर सकेंगे, जो कि शहर को विकास और सुविधाओं की और ले जा सकता है.

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