गुरु से बड़ा न कोय..

भारत भूषण भारतेंदु @ नवप्रवाह.कॉम,

Bhartendu

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः | गुरु साक्षात् पर ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः ||

परिवर्तनशील संसार में मानव शरीर इश्वर का बनाया का बनाया हुआ शुद्ध,पावन,निर्छल,चमचमाता हुआ घर है | जैसे घरों में कई द्वार  होते हैं उसी तरह शरीर में नव द्वार होते है जिस प्रकार घर को बनाने में पत्थर,रेती,सारिया,सीमेंट आदि लगता है उसी प्रकार शरीर रूपी घर बनाने में रक्त,मांस,हड्डी,मज्जा आदि की आवश्यकता पड़ती है |एक बात तो स्पष्ट है कि छोटे से कर्मचारी से लेकर बड़े इंजिनीअर तक का कोई न कोई गुरु अवश्य है इसमें कोई दो राय नहीं | जिनकी दिशानिर्देश से यह शरीर रूपी भवन का निर्माण हुआ है जिनका नाम मात्र लेने से शरीर के अन्दर अदभुत विद्युत् संचार हो जाता है जिनका वेद-पुराण प्रशंशा करने में थकते नहीं वही तो गुरु तत्व है | देविओं-सज्जनों गुरु तत्व इतना गूढ़ विषय है कि इनकी महिमा के आगे बड़े बड़े ऋषि महर्षि की प्रतिभा भी कुंठित हो जाती है |

अनेक गुरुओं के क्रम में महर्षि वशिष्ट ने माता पिता को प्रथम क्रम रख्खा है |

उपाध्यायान्द्शाचार्य आचार्याणा शतं पिता | पितुर्द्शगुणं माता गौरवेणातिरिच्यते ||(अ० ३)

सज्जनों इया संसार में माता से अधिक कष्ट सहने वाला सहने वाला कोई और नजर नहीं आता जसने हमें नव महीने गर्भ में रख्खा जन्मोपरांत जिस लाड-प्यार से हमारी सेवा की जरा सा बुखार होने पर रात्रि जागरण की बिस्तर गिला होने पर अपने गिले बिस्तर पर हमें सूखे विस्तर पर सुलाई तथा तमाम कष्ट सहे परन्तु हमें कष्ट नहीं होने दिया | उसके द्वारा किये उपकार से जन्म जन्मान्तर तक मुक्त नहीं हो सकते | उनकी सेवा तन,मन,धन से निःस्वार्थ भाव से करनी चाहिये वही पिता भी बड़े परिश्रम से हमारा पालन पोषण किया पढाया-लिखाया किसी योग्य बनाया कहीं कहीं देखने को मिलता है उनके उपकार तो छोड़ दीजिये उनसे बात तक करना फजीहत समझते हैं | देविओं सज्जनों आप अपने प्रथम गुरु रूपी माता पिता का सेवा करेंगे उन्हें प्रसन्न रखेंगे तो आपको जीवन भर अकारण सुख मिलता रहेगा |

माता,पिता,बड़ा भाई,राजा,मामा,श्वसुर,नाना,बाबा,वर्णज्येष्ट(ब्राह्मण),उपाध्याय ये दस गुरु कहे गए हैं |

वेदों में कही कही ब्रह्मज्ञानी पुत्र भी पिता को विलासी जीवन दूर व अध्यात्मिक जीवन पथ पर चलने का मार्ग दर्शन किया है जैसा की सामवेद में आंगिरस ऋषि ने अपने पिता को पुत्र कह के पुकारा था |

अंगिरा का पुत्र छोटी आयु में ही ऐसा विद्वान हो गया वह मंत्र द्रष्टा ऋषियों से भी आगे बढ़ गया और वेदों का रोचक व बैज्ञानिक ब्याख्यान करने में प्रसिद्द हो गया उन्होंने वेद का ब्याख्यान करते समय अपने पिता आदि लोंगो को पुत्रों कहकर संबोधित कर दिया जिससे पिता व वृधजनो ने बुरा मानते हुए कहने लगे तुम वेद वक्ता होकर हम लोगों का अपमान किया है यह सुन कर आंगिरस ने कहा “मै आपका गुरु हूँ” परन्तु वृद्धजन संतुस्ट नहीं हुए इसके निवारण के लिए देवताओं के पास गए देवो ने विचार के बाद कहा कि आंगिरस निश्चय आपके गुरु है क्यों कि वे मंत्र द्रष्टा व वेदिक तत्वज्ञान के ज्ञाता और ब्याख्यान करने वाले हैं |

विश्व का कोइ कार्य बिना किसी अनुभवी गुरु के बिना असंभव है जो मनुष्य उस काम को करके सफल हो चुका है यदि कठिन कार्य हो तो उसके पास रहकर सेवाकर प्रसन्न करके सिखाना पड़ता है जब लौकिक कार्यों का ये हाल है तब अध्यात्मिक साधना में तो गुरु की नितांत आवश्यकता होगी जहाँ पर कदम-कदम पर गिरने का डर रहता है | भारतीय साधना में गुरु परंपरा का बहुत ऊँचा स्थान है क्यों की गुरु बिन होत न ज्ञान, गुरु और इश्वर में कोई अंतर नहीं बल्कि शिष्य के लिए गुरु इश्वर से भी बड़ा है | जैसा की विदित है गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागू पाय बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दिओ बताय|

यही गुरु तत्व है | योग्य गुरु बामुश्किल से मिलते है आजकल तो गुरु घंटालों के घंटे ज्यादा बज रहें है बहुत से कामी,लोभी,कपटी गुरु का चोला धारण करने के कारण गुरुवेश कलंकित सा हो गया है | अर्थात गुरु को बनाने में सावधानी बरतना आवश्यक है | योग्य गुरु के गुण – सत्य को प्राप्त कर चुका हो,वेद  शास्त्रों का ज्ञान हो,परोपकारी हो,स्वभाव शुध्ध हो,इन्द्रियों को वश में किया हो,धन का लोभी न हो,ध्यानी व साधक हो,शांतिप्रिय हो,दयालु हो,योगविद्या में निपुण हो,धैर्य्शालिहो,चतुर हो,अब्यसनी हो,प्रियभाषी हो,पापों से परे हो,निश्कपटी हो,सदाचारी हो,निर्भय हो,स्त्रियों में अनासक्त हो,रहन सहन सादा हो,धर्म प्रेमी हो,शिष्य को पुत्र से बढ़कर प्यार करता हो |

स्त्रियों को किसी अन्य पुरुष से दीक्षित होने या किसी परपुरुष को गुरु बनाने की आवश्यकता नहीं है, परम गुरु पति ही है| विधवा स्त्री केवल परम पिता परमेश्वर को गुरु मानकर उन्ही का वंदन कर सकती है |जो धन और कामिनी का लोभी हो ऐसे गुरु घंटाल से दुरी बनाके रहने में ही भलाई है बाकि जानो आप | इससे ये भी नहीं समझना चाहिये की सद्गुरु है ही नहीं सच्ची चाह होने पर सद्गुरु मिल ही जाते हैं |भारत में हमारे पूर्वज बड़े बड़े धुरंधर ब्रह्मवेत्ता होते थे और उन्ही से हमारा भारत देश सर्वोन्नत माना जाता था जिसका मूल कारण उनके अंदर गुरु भाव,गुरु श्रद्द्दा,गुरु भक्ति,गुरु श्नेह प्रचुर मात्र में था |                          

        सर्वेषां शान्तिर्भवतु | सर्वेषां मंगलमभवतु 

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