‘बाबूमोशाय बन्दूकबाज़’, फैज़ल खान बिलकुल नहीं है! :फिल्म समीक्षा

आनंद रूप द्विवेदी | Navpravah.com

नवप्रवाह रेटिंग★★★★ 

कलाकार: नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, बिदिता बाग़, श्रद्धा दास, जतिन गोस्वामी, दिव्या दत्ता, अनिल जॉर्ज

निर्देशक: कुशान नन्दी

कहानी/गीत: ग़ालिब असद भोपाली

फ़िल्म कैटेगरी: एक्शन

अवधि: 2 घंटे 2 मिनट

फ़िल्म में बाबू बिहारी  यानी नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने एक कॉन्ट्रैक्ट किलर की भूमिका निभाई है. बांके  यानी जतिन भी एक कॉन्ट्रैक्ट किलर है. एक नामचीन शख्स की हत्या का कॉन्ट्रैक्ट संयोग से दोनों को ही मिल जाता है जिसके बाद हत्याओं की संख्या में प्रतिस्पर्धा दोनों के बीच शुरू हो जाती है. जो जितने ज्यादा क़त्ल करेगा वो ही नम्बर वन कहलायेगा.  बाबू बचपन से ही हत्याएं कर रहा है. बाबू और बांके दोनों ही इस बात से अनजान होते हैं कि उनकी हत्याओं की प्रतिस्पर्धा के बीच कुछ अलग ही गेम चल रहा है.

फिल्म को बिलकुल भी संस्कारी न समझें. अगर आप पहलाज निहलानी साहब का संस्कारी चश्मा पहन कर प्रगतिशील सिनेमा देखने जायेंगे तो असहज महसूस कर सकते हैं, क्योंकि गोली बारी के बीच आपको भरपूर सेक्स सीन्स देखने को मिलेंगे. यास्मीन यानि श्रद्धा डांसर है और बाबू के लिए सुपारी लाती है. फुलवा यानि बिदिता बाग़ ने अपने किरदार के साथ पूरी ईमानदारी बरती है. फुलवा फिल्म में बाबू की प्रेमिका की भूमिका में है जिसे देखने के बाद बांके को भी उससे प्यार हो जाता है. अब कहानी इन्हीं प्रेम त्रिकोण, हत्याओं , राजनीति के चारों तरफ घूमती नजर आती है. सुमित्रा यानी दिव्या दत्ता और दुबे यानि अनिल दोनों राजनेताओं के आपसी संघर्ष में कैसे दोनों किलर्स बाबू और बांके अपने खुद के मनमुटाव को डील करते हैं ये तो आपको फिल्म देखने के बाद ही पता चलेगा.

 

 

फिल्म की कहानी लिखने वाले ग़ालिब असद भोपाली ने बेहतरीन कथानक पेश किया है. फिल्म के गाने भी ग़ालिब ने ही लिखे हैं जो काफ़ी हद तक फिल्म की आत्मा के साथ मैच करने में कामयाब हुए हैं. फिल्म का संगीत औसत है. बर्फानी, चुलबुली और घुंघटा गाने फिल्म में आपको अच्छे लगेंगे.  हलांकि फिल्म का स्क्रीनप्ले थोड़ा और बेहतर बनाया जा सकता था. नवाजुद्दीन सिद्दीकी की बेजोड़ अदाकारी के लिए जितना कहें कम होगा. बाबू के रोल में नवाजुद्दीन सिद्दीकी आपको गैंग्स ऑफ़ वासेपुर का फैजल खान लग सकता है लेकिन ऐसा बिलकुल भी नहीं है.

अगर आप गैंग्स ऑफ़ वासेपुर देखकर बाबूमोशाय बन्दूकबाज़ की कल्पना कर रहे हैं तो ये बिलकुल भी न करें क्योंकि इस फिल्म का कथानक अलग है. राजनीति, प्रेम, और हत्याओं साजिशों के बीच बेहद होशियारी से रची गई इस कहानी से आपको वासेपुर की तस्वीर नजर नहीं आएगी. बेशक बाबूमोशाय बंदूकबाज अलग अलग टेस्ट की फिल्म है. बतौर निर्देशक  कुशान नंदी नंदी की ये फिल्म, नवाज़ुद्दीन और बिदिता बाग़ की बेजोड़ अदाकारी के लिए चार स्टार डिज़र्व करती है.

 

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