फिल्म समीक्षा- न्यूटन

FILM REVIEW(newton)
कलाकार- राजकुमार राव, पंकज त्रिपाठी, रघुबीर यादव, अंजलि पाटिल
 
निर्देशक- अमित वी मसूरकर
 
नवप्रवाह रेटिंग- ⭐️⭐️⭐️
कोमल झा  | Navpravah.com
बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में नाम करने के बाद अब फिल्म ‘न्यूटन’ भारत में रिलीज़ के लिए तैयार है। अगर आप ये सोच रहे हैं कि ये फिल्म वैज्ञानिक न्यूटन की जिंदगी पर बेस्ड है, तो आप गलत हैं, क्योंकि ये न्यूटन जरा हट के है। दरअसल इस फिल्म में रा‍जकुमार राव का नाम न्यूटन है। ब्लैक कॉमेडी से भरपूर फिल्म न्यूटन अपने विषय को लेकर दर्शकों में उत्साह जगाने में कामयाब रही। फिल्म के ट्रेलर ने दर्शकों का उत्साह और भी बढ़ा दिया था। जिसकी किसी को भी उम्मीद नहीं थी।आइए देखते हैं ‘न्यूटन’ घरेलू दर्शकों का मनोरंजन कर पाती है या नहीं।
छत्तीसगढ़ के रहने वाले एक नौजवान विचारवादी न्यूटन उर्फ नूतन कुमार (राजकुमार राव) किताबों पर चलने में विश्वास करता है। वो एक लड़की से शादी करने के लिए जाता है, लेकिन शादी से मना कर देता है। क्योकि लड़की नाबालिक होती है। वैसे न्यूटन सरकारी विभाग का एक इमानदार क्लर्क है, सरकार उसे वोटिंग अधिकारी बनाकर छत्तीसगढ़ के पिछड़े इलाके में भेज देती है, जहां वह माओवादियों से बेफिक्र है, जहाँ कभी भी वोटिंग प्रक्रिया सफल नहीं हो पाई है। लेकिन न्यूटन अपनी ड्यूटी पूरे फर्ज के साथ निभाता है। उसको सबसे ज्यादा चिंता है कि वो गांव के 76 स्थानीय लोगों का वोट रजिस्टर करे। उसकी टीम में एक शिक्षिका माल्को (अंजली पाटिल), क्लर्क (रघुवीर यादव) हैं। इन सबके बीच न्यूटन की ड्यूटी आत्मा सिंह (पंकज त्रिपाठी) के साथ लगती है, जो सिक्योरिटी टीम का हेड है जो न्यूटन की बातों के खिलाफ होता है। फिल्म की कहानी इन्हीं 76 लोकल लोगों के वोट के इर्द गिर्द घूमती है, जिसके लिए न्यूटन को भारी मशक्कत करनी पड़ती है। न्यूटन इन लोगों के वोट रजिस्टर कर पता है या नहीं, ये देखने के लिए आपको सिनेमाघर की ओर रुख करना होगा।
निर्देशन-
अमित मसूरकर ने काफी शानदार प्लॉट चुना है, जिसमें न्यूटन पूरी कहानी बिना किसी तामझाम के बताता है। फिल्म का आज के समय से संबंध जरूर है। फिल्म में कई सामाजिक मुद्दो पर जोर दिया गया है। जो काबिले तारीफ है। सच्चाई आपको चौंका देगी, लेकिन आप कई जगहों सिर्फ हंसेंगे और फिल्म इंज्वॉय करेंगे। इस काम के लिए अमित की भी जितनी तारीफ़ की जाए उतनी कम होगी।
राजकुमार राव एक संजीदा अभिनेता हैं, बरेली की बर्फी में छोटी सी भूमिका कर उन्होंने सभी को आकर्षित किया था। इस फिल्म में भी राजकुमार ने अपनी बेहतरीन अदाकारी से अपने किरदार को ज़िंदा कर दिया है। न्यूटन के किरदार को उन्होंने जीवंत कर दिया है। उनकी आखों में भोलापन आपको प्रभावित करेगा। पंकज त्रिपाठी उर्फ आत्मा सिंह का व्यंग्य भी काफी मजेदार है। रघुवीर यादव भी अपने रोल में परफेक्ट लगे हैं। अंजली पाटिल भी स्क्रीन पर नैचुरल लगी हैं।
म्यूजिक-
फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक काफी शानदार है। नरेन चंदावरकर और बेनेडिक्ट टेलर ने फिल्म का संगीत दिया है। ‘चल तू अपना काम कर ले’ फिल्म के क्रेडिट में है, जिसके बोल बहुत खूबसूरत हैं।
वैसे तो फिल्म में कोई कमी नज़र नहीं आती लेकिन कहीं लगता है कि कुछ दृश्यों का संपादन और अच्छे तरीके से हो सकता था। न्यूटन एक बेहतरीन फिल्म है जो हंसाती है और बहुत कुछ दर्शाती भी है। फिल्म में राजकुमार राव एक ऐसे इलाके में जाते हैं, जहां बुलेट से अधिक बैलेट मजबूत है। यह फिल्म आपको बताएगा कि लोकतंत्र सिर्फ बूथ और बटन तक सीमित नहीं है।

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