इलाहाबाद विवि: छात्र राजनीति का गिर रहा स्तर, जाति, धर्म और क्षेत्र के नाम पर मांगे जा रहे वोट

अनुज हनुमत

इलाहाबाद। पूरब का आक्सफोर्ड कहा जाने वाला इलाहाबाद विश्वविद्यालय इन दिनों चारों तरफ से छात्र संघ चुनावों के रंग में रंगा हुआ नजर आ रहा है। महज कुछ घण्टे बाद देश के सबसे प्रतिष्ठित शिक्षा के केंद्र को अपना नया छात्र संघ पैनल मिल जायेगा। सबसे ख़ास बात ये है कि इस विवि ने देश को कई प्रधानमन्त्री सहित सैकड़ों बड़े नेता दिए हैं, लेकिन आज की स्थिति अब वैसी नहीं रही।

जब से विवि को केंद्रीय विवि का दर्जा प्राप्त हुआ है, तब से शिक्षा के साथ साथ राजनीती की प्राथमिक पाठशाला का स्तर भी गिरा है। आज विवि, देश के प्रमुख 50 शिक्षण संस्थानों में अपनी जगह नहीं बना पा रहा है और अगर राजनीति की प्राथमिक पाठशाला ‘छात्र संघ’ की बात करें, तो स्थिति और भी दयनीय हो चुकी है। पहले चुनाव छात्रों की प्रमुख समस्यायों पर आधारित एजेंडों के दम पर लड़ा जाता था, लेकिन आज जातीय-क्षेत्रीय और धार्मिक समीकरण परिणाम को जबरदस्त तरीके से प्रभावित करते हैं।

पिछले कई चुनावों में स्पष्ट रूप से देखा गया है कि चुनाव लड़ने वाले सभी प्रत्याशी जोर शोर से छात्र संघ चुनाव को एक पर्व की तरह लेते हैं और शुरू शुरू में तो सभी संभावित प्रत्याशी कैम्पस की प्रमुख समस्यायों पर ही छात्रों से संवाद स्थापित करना शुरू करते हैं। लेकिन जैसे जैसे मतदान का दिन पास आता है, यही मुद्दे हवा होते जाते हैं और अंत में जातीय, क्षेत्रीय और धार्मिक समीकरण ही जीत के खाने में फिट बैठते हैं। छात्र संघ चुनाव के सबसे महत्वपूर्ण अध्यक्ष पद पर इस बार कुल 9 उम्मीदवार, उपाध्यक्ष पद पर 8 उम्मीदवार, महामन्त्री पद पर 6 उम्मीदवार, संयुक्त मंत्री पद पर 8 उम्मीदवार और सांस्कृतिक सचिव पद पर 9 उम्मीदवार चुनावी मैदान में भाग्य आजमाने उतरे हैं। इन सभी में सबसे खास महत्वपूर्ण पद अध्यक्ष का होता है, जिस पर सभी की नजरें टिकी रहती हैं।

चन्द घंटे बाद दक्षता भाषण होगा और उसके बाद चुनावी परिणाम की तस्वीर काफी हद तक स्पष्ट हो जायेगी। आइये समझने का प्रयास करते हैं कि आखिर इस बार के चुनाव में कौन-कौन से फैक्टर मुख्य भूमिका निभा सकते हैं –

जातीय फैक्टर-

विवि के छात्र संघ चुनावों के इतिहास में अध्यक्ष पद पर लड़ाई हमेशा ब्राह्मण बनाम ठाकुर ही रही है और मौजूदा समय में भी कुछ ऐसी हे तस्वीर देखने को मिलती है। पिछले कई वर्षों से चुनाव में समीकरण इतना प्रभावी हो गए हैं कि अब तो तमाम पैनल भी इस फैक्टर को ध्यान में रखकर ही अपना उपयुक्त उम्मीदवार मैदान में उतारते हैं। जानकारों की मानें तो इस बार भी असल लड़ाई ब्राह्मण और ठाकुर प्रत्याशियों में ही है। इस लिहाज से अगर अध्यक्ष पद पर देखा जाये तो मैदान में ब्राह्मण, ठाकुर और यादव जाति से कई अलग अलग उम्मीदवार मैदान में हैं।

अगर जातीय फैक्टर के चश्मे से इस बार के चुनाव को देखें तो जानकारों के मुताबिक अध्यक्ष पद पर दो उम्मीदवार टक्कर में नजर आते हैं। पहले उम्मीदवार हैं abvp पैनल से ब्राह्मण उम्मीदवार रोहित मिश्रा और दूसरे हैं युवा छात्र अधिकार मंच से ठाकुर उम्मीदवार अतुल नारायण सिंह। सबसे खास बात यह है कि पिछले कई चुनावों से इस पद पर ठाकुरों का वर्चस्व रहा है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आखिर ये फैक्टर इस चुनाव में कितना प्रभाव डाल पायेगा!

धार्मिक फैक्टर-

अगर इस फैक्टर की बात करें तो अभी तक तो इसका प्रभाव कम ही देखने को मिला है। यानि कि कुछ मात्रा में धार्मिक फैक्टर भी नजर आता है, जो चुनावी परिणाम को प्रभावित करता है।

क्षेत्रीय फैक्टर-

अगर इस फैक्टर के मुताबिक मौजूदा चुनाव का आंकलन करें, तो सबसे चौंकाने वाली स्थिति ये है कि विवि के इतिहास में अब तक जिस फैक्टर ने चुनावों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है, वो क्षेत्रीय फैक्टर ही है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनावों में क्षेत्रीय स्तर पर दो क्षेत्रों का प्रमुख प्रभाव देखने को मिलता है। पहला ‘पूर्वांचल’ और दूसरा ‘बुन्देलखण्ड’। सबसे ज्यादा प्रभाव पूर्वांचल का देखने को मिलता है, लेकिन पिछले कुछ समय से बुन्देलखण्ड का भी प्रभाव बढ़ा है। जानकारों के मुताबिक इस चुनाव में भी क्षेत्रीय फैक्टर सबसे अहम रोल अदा करेगा ।

पैनल का फैक्टर-

राजनीति की प्राथमिक पाठशाला कहे जाने वाले छात्र संघ चुनावों में विभिन्न पार्टियों के छात्र संघठनों का भी काफी अहम रोल रहता है। इन तमाम छात्र संगठनों द्वारा जाँच पड़ताल के बाद सभी पदों पर उम्मीदवार चुनकर सभी को एक पैनल के रूप में मैदान में उतारा जाता है। पिछले चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पैनल ने तीन पद जीते थे और एक पद समाजवादी छात्र सभा के खाते में गया था। जानकारों की मानें तो सभी पैनलों का अपना एक बंधा हुआ वोट बैंक होता है।

अगर विद्यार्थी परिषद की बात करें तो, दिल्ली विश्वविद्यालय में जबरदस्त जीत मिलने के बाद तुरन्त जेएनयू में करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। इसके बाद अभी हाल में ही महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के छात्र संघ चुनावों का परिणाम आया, जिसमें अभाविप को सिर्फ एक पद पर ही जीत हासिल हुई और बाक़ी सभी पदों पर समाजवादी छात्र सभा ने कब्जा कर लिया। इन सभी परिणामों पर अगर गौर किया जाए तो अभाविप के लिए इविवि के छात्र संघ चुनावों में काफी दिक्कतों का सामना करना पड सकता है, क्योंकि टिकट बंटवारें के समय कुछ ऐसे उम्मीदवारों को टिकट नही दिया गया, जो वर्षों से संगठन की सेवा में लगे थे।

महिला छात्रावास के वोटों का फैक्टर-

इलाहाबाद विवि के छात्र संघ चुनावों में महिला छात्रावास के वोट चुनाव परिणाम में काफी असर डालते हैं। सबसे बड़ी बात ये भी है कि उम्मीदवारों को सबसे ज्यादा मशक्कत भी इन्ही वोटों के लिए करनी पड़ती है। पिछले चुनाव में महिला छात्रावास के वोटों का ही असर था कि विवि इतिहास में पहली बार आजादी के बाद एक महिला अध्यक्ष पद पर काबिज हुई ।

किसी को नहीं पता कि इन चुनावों का भविष्य क्या होगा, लेकिन वर्तमान तो सबके सामने है। अगर छात्र संघ -2017 के लिए अध्यक्ष पद पर कब्जा ज़माने वाले तीन संभावित उम्मीदवारों की बात करें, जो एक दूसरे को जबरदस्त टक्कर दे रहे हैं वो हैं – रोहित मिश्रा, अतुल नारायण सिंह और अजीत यादव ‘विधायक’।

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